१
जीवन मेरा
समर्पित सिंधु को
सरिता हूँ मैं
२
पिघली बर्फ
पर्वत से उतरी
प्रवाहमयी
३
उथली धारा
कल-कल बहती
नीचे पहुँची
४
चंचल धारा
झर-झर गिरती
झरना बनी
५
बन गयी मैं
मिल सखियों संग
गहरी नदी
६
बहती चली
जंगल मैदानों में
बंधन मुक्त
७
बहती रही
अथक अहर्निश
युगों युगों से
८
एक ही साध
तदाकार हो जाऊँ
पिय अंग मैं
९
मीठा या खारा
सागर का जल ही
मेरा अभीष्ट
१०
पर्याय हम
सिंधु और सरिता
नि:स्वार्थ प्रेम
११
मिसाल बनूँ
समर्पण के हित
याद की जाऊँ
साधना वैद
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