Thursday, September 29, 2016

दर्द ने कुछ यूँ निभाई दोस्ती




दर्द ने कुछ यूँ निभाई दोस्ती

झटक कर दामन खुशी रुखसत हुई

मोतियों की थी हमें चाहत बड़ी

आँसुओं की बाढ़ में बरकत हुई !



रंजो ग़म का था वो सौदागर बड़ा

भर के हाथों दे रहा जो पास था

हमने भी फैला के आँचल भर लिया

बरजने को कोई ना हरकत हुई !



बाँटने में वो बड़ा फैयाज़ था

नेमतों से कब हमें एतराज़ था

दर्द देने के बहाने ही सही 

चल के घर आने की तो फुर्सत हुई !



हमको उसकी बेरुखी का पास था

चोट देने का ग़ज़ब अंदाज़ था

जायज़ा लेना था हाले दर्द का

ज़ख्म देने को नये शिरकत हुई !



हम न उससे फेर कर मुँह जायेंगे

हर सितम उसका उठाते जायेंगे

हो न वो मायूस अपनी चाल में

इसलिए बस दर्द से उल्फत हुई !



साधना वैद






            

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