Wednesday, January 4, 2017

राजनीति का खेल




बाप रहा ना बाप सा, पूत रहा ना पूत

पाँसे दोनों चल रहे, बिछी हुई है द्यूत !


राजनीति के खेल में, रिश्तों का क्या काम

पापा चाचा बैठ घर, भजें राम का नाम !


सत्ता छूटे ना छुटे, समझो ना यह बात

जो आओगे बीच में, पड़ जायेगी लात !


कुर्सी से इस मोह का, सीखा तुमसे पाठ

मैं बैठा इस पर रहूँ, तुम पकड़ो अब खाट !


अवसरवादी हैं यहाँ, राजनीति में लोग

सब हैं चखना चाहते, सत्ता का सुख भोग !


कौन तुम्हारा मित्र है, याद किसे उपकार

अब सब उसके साथ हैं, जिसकी है सरकार !


सत्ता का यह रूप भी, है कितना बलवान

उगते सूरज को सभी, करते मिले प्रणाम !


साधना वैद 


चित्र - गूगल के सौजन्य से 

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