छलका मधु घट
आया बसंत
प्रतीक्षा रत
विरहिणी नायिका
नैन बिछाये
खिली कलियाँ
भ्रमर गीत गाते
छाया बसंत
हर कलिका
करती अभिसार
वारे पराग
दूँ मैं दुहाई
मधु ऋतु है आई
आनंद लाई
छाया बसंत
घर आओ ना कंत
मैं देखूँ पंथ
उड़ चला है
बसंत संग दिल
कहाँ मानेगा
खोया बेसुध
प्रिय की स्मृतियों में
दीवाना दिल
लागे न जिया
फागुन का महीना
आ जाओ पिया
कोरी चूनर
भीगने को आतुर
प्रेम रंग में
कैसे बचोगे
मेरी पिचकारी से
बोलो कन्हैया
होके अधीर
रंग डालूँगी भीर
कालिंदी तीर
साधना वैद
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