कितनी मुश्किल चुनौतियों का संकल्प ले लिया है रे तू ने मूरख मन ! कथनी और करनी में कितना अंतर होता है कभी यह भी जाना है ? यह अंतर दोनों शब्दों के मध्य के वर्ण थ और र का ही नहीं है एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन का है !
कथनी कितनी आसान है ! बस जिह्वा का खेल है सारा !
लच्छेदार पांडित्यपूर्ण भाषा में खूब बड़ी-बड़ी बातें कहलवा लो उससे ! ऊँचे-ऊँचे दुर्गम पर्वत शिखरों पर चढ़ाई करवा लो ! चाहे अतल अथाह सागर की तलहटी से दुर्लभ बेशकीमती मोतियों से भरी सीपियों का खजाना ढुँढवा लो, अंतरिक्ष के नितांत अनजान एवं अनचीन्हे ग्रहों की भूमि का निरीक्षण परीक्षण करवा लो या फिर धधकता दहकता पिघलता लावा उगलते ज्वालामुखियों की पाताल तक उतरी गहराई को नपवा लो ! जिह्वा के लिए सब कुछ आसान है क्योंकि उसे केवल हिलना भर है ! लेकिन जब बारी करने की आती है तो सारी कल्पनाएँ, सारी योजनायें, सारे हवाई किले ध्वस्त हो जाते हैं और तब सामने आई हुई बड़ी मामूली सी मुश्किलें भी इतनी अलंघ्य हो जाती हैं कि हम उन्हें पार नहीं कर पाते !
करनी के लिए अपनी समूची सामर्थ्य, क्षमता, निष्ठा और शक्ति को झोंक देना पड़ता है ! लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अदम्य धैर्य, लगन, समर्पण, आत्मविश्वास और साहस की आवश्यकता होती है ! बार-बार प्रयत्न करने पर भी जब सफलता कोसों दूर दिखाई देती है तो हताशा भी होती है ! लोगों की कटु आलोचना एवं निंदा भी सुननी पड़ती है और अक्सर उपहास का पात्र भी बनना पड़ता है ! किन्तु यदि सफलता के मधुर फल का रस चखना है तो बारम्बार असफलता के दंश झेलने के बाद भी निराशा पर विजय प्राप्त कर कर्तव्य पथ पर डटे रहना होगा और प्रयासों में निरंतरता बनाए रखनी होगी ! तब एक न एक दिन सफलता स्वयं कदम चूमने के लिए विवश हो जायेगी !
तो मूरख मन ! तू भी यह जान ले कि वाग्वीर और कर्मवीर में भी यही अंतर होता है ! वाग्वीर का प्रभाव तात्कालिक, चमत्कारिक, त्वरित और प्रबल अवश्य होता है लेकिन उसमें स्थायित्व नहीं होता ! जबकि कर्मवीर का प्रभाव भले ही आरम्भ में धीमा, धुँधला, संदेहास्पद और विलंबित हो वह दूरगामी और स्थाई होता है और कालान्तर में आने वाली पीढ़ियों के लिए दृष्टांत बन जाता है !
साधना वैद
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