Sunday, May 28, 2017

नसीब की बात



आँसुओं से सींच कर
दिल की पथरीली ज़मीन पर
मैंने कुछ शब्द बोये थे
ख़्वाबों खयालों और
दर्द भरे अहसासों का
खूब सारा खाद भी डाला था
उम्मीद तो कम थी लेकिन
एक दिन मुझे हैरान करतीं
मेरे दिल की क्यारी में
कुछ बेहद मुलायम बेहद खूबसूरत
नर्मो नाज़ुक सी कोंपलें फूट आईं
जिनमें चन्द नज़्में, चंद गज़लें,
चंद कवितायें और चंद गीत
खिल उठे थे ।
मेरा फौलादी बंजर सा मन
अनायास ही मद भरे गुलशन में
तब्दील हो गया ।
ऐसा लगा मैं खुद भी
फूल सी हल्की हो गयी हूँ
और जहान भर की खुशियाँ
मेरे दामन में समा गयी हैं ।
उन रचनाओं की खूबसूरती
उनकी खुशबू और उनकी
नशीली अक्सरियत को मैं
भरपूर जी भी न पाई थी कि
वक्त का हैवान एक दिन
बड़े बड़े डग भरता आया और
बड़ी बेदर्दी से उन कलियों को
रौंदता हुआ निकल गया ।
नसीब अपना अपना !
अब वहाँ वही चंद कुचली हुई
नज़्में, ग़ज़लें, कवितायें और गीत
बिखरे पड़े हैं जिन्हें बटोर कर
सहेजना मेरे लिए
नामुमकिन हो गया है ।

साधना वैद

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