ऐ चाँद
निरभ्र गगन में
जगत के सामने अपनी
शक्ति और सामर्थ्य का तुम चाहे
जितना भी प्रदर्शन कर लो
अपनी सम्पूर्ण भव्यता,
अप्रतिम सौन्दर्य और
पूरी आन बान शान के साथ
पूरे दम ख़म से चाहे
जितना भी चमक लो
मैं जानती हूँ कि आज तुम
कितने एकाकी हो
कितने विकल हो
बिलकुल मेरी ही तरह !
मैं जानती हूँ कि
तुम्हारे पास भी कोई नहीं है
जिसके कंधे पर सर रख कर
तुम दो अश्रु बहा लो
जिसकी ममता भरी गोद में
मुख छिपा तुम अपने सारे दुःख
सारी चिंताएं भुला
दो घड़ी विश्राम कर सको !
मुझसे दोस्ती करोगे ?
अगर करना चाहते हो
तो अपना सारा दंभ
सारा अहम् वहीं छोड़
नीचे आ जाओ !
देख रहे हो न तुम
सागर की उत्ताल तरंगे भी
कैसे व्याकुल होकर
बुलाती हैं तुम्हें !
वहाँ गगन में ही चढ़े रहोगे तो
निश्चित रूप से तुम
अकेले ही रह जाओगे
नीचे आ जाओगे तो तुम्हें
खूब सारे साथी मिल जायेंगे !
हम दुनिया वालों को
सबके दुःख दर्द बांटना
आता भी है और भाता भी है
बस शर्त यही है कि तुम्हें भी
हमारी तरह ही बनना होगा
एक सर्व साधारण सा आम इंसान !
राजसी ठाठ बाट से चिपके रहोगे
तो अकेले ही रह जाओगे !
अब फैसला तुम्हारा है !
साधना वैद
No comments:
Post a Comment