सुबह हुई
हमसफ़र चाँद
घर को चला
देखो तो ज़रा
क्षितिज के किनारे
कौन है आया
दानी आदित्य
लुटा रहा प्रकाश
सहस्त्र हाथों
रवि रश्मियाँ
सहलाएं तन को
पुलकी धरा
दिव्य रश्मियाँ
उतरीं धरा पर
साक्षी हैं वृक्ष
स्वागत करे
भुवन भास्कर का
मुग्ध वसुधा
मौन पर्वत
झर झर झरने
करे नमन
पग पखारें
कल कल नदियाँ
मुदित मन
करे प्रकृति
सुन्दर सुवासित
पुष्प अर्पित
लदे हुए हैं
फलों से तरुवर
भोग के लिए
मुखर हुई
विहगों के गान में
ईश वन्दना
नत मस्तक
झुकी अभ्यर्थना में
धरा सुन्दरी
आँखें तो खोलो
धन्य करो नयन
दिव्य दृश्य से
जागी संसृति
मन में आस लिए
भोर हो गयी
साधना वैद
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