न न पीछे मुड़ कर न देखना
क्या
पाओगे वहाँ वीभत्स सचाई के सिवा
जिसे
झेलना तुम्हारे बस की बात नहीं
तुम कोई
गाँधी तो नहीं !
सामने
देखो तुम्हें आगे बढ़ना है
वह रास्ता
भी तो आगे ही है
जिसका
निर्माण तुमने स्वयं किया है
आगे
जलसे हैं, जश्न है, जलवा है
मेवा
मिष्ठान्न हैं, पूरी है, हलवा है !
तुम्हारे
सामने समूचा सुनहला संसार है
जहाँ
आनंद ही आनंद है
झूठ के कच्चे
झिलमिल धागों से
बुना हुआ
है तो क्या, है तो खूबसूरत
आँखों
को ठंडक, दिल को तसल्ली देता है
मुख पर हँसी,
अधरों पर गीत ले आता है
यहाँ तुम्हारा
रसूख, रुतबा, रुआब रोज़ बढ़ता है
तुम्हारी
शान में दो चार कसीदे रोज़ पढ़ता है ! !
ऐसे में
पीछे मुड़ कर कोई देखता है क्या !
और फिर पीछे
रखा ही क्या है
जिसे मुड़
कर तुम देखना चाहते हो
वहाँ हैं
कड़वे कसैले सत्य के अम्बार
ज़िंदगी
से कभी न ख़त्म होने वाली जंग
जद्दोजहद,
गरीबी, भुखमरी, बीमारी
बदनीयती,
बदहाली, भ्रष्टाचार, और मक्कारी
जो
तुम्हारी आत्मा को झिंझोड़ देंगे
तुम्हारी
चहरे से हँसी गायब हो जायेगी
आँखों
में आँसू भर आयेंगे
दिल का
सुकून छिन जाएगा
गीत कंठ
ही में घुट जायेंगे
मुझे डर
है तुम्हारे अन्दर का
सोया
हुआ गाँधी कहीं जाग न जाए
और पल
भर में ही तुम्हारा परम सुखदाई
मिथ्या
आडम्बर का यह सुनहला संसार
भरभरा
कर भूमि पर धराशायी न हो जाए !
बोलो है
तुममें इतना आत्मबल,
इतना
त्याग, इतना समर्पण और
इतनी
संवेदनशीलता कि गाँधी की तरह
सारे
सुख त्याग एक धोती में आ जाओ ?
उस समय कम
से कम आँखों की
इतनी
शर्म तो बाकी थी कि
तमाम
विरोधों के बावजूद भी
जीवित
रहते बापू सम्मान से जिए
यहाँ तक
कि गोली मारने से पहले
हत्यारे
ने भी हाथ जोड़ कर उनके प्रति
अपनी
श्रद्धा, अपना सम्मान प्रकट किया !
इस युग
में इसकी आशा भी व्यर्थ है
भाषणों
में ही सही इतने सालों बाद भी
लोग उनका
नाम तो आदर से लेते हैं
लेकिन तुम
काल के किस लम्हे में,
किस गह्वर
में, कहाँ गुम हो जाओगे
किसीको पता
भी नहीं चलेगा
और
तुम्हारा नाम ?
तुम्हारे
पोते पोतियों को भी याद रहेगा
इसमें
भी संदेह है मुझे !
‘गाँधी’
का मुखौटा पहनना आसान है
लेकिन ‘गाँधी’
होना बिलकुल अलग बात है
सोच लो कि
तुम्हें क्या करना है ?
साधना
वैद
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