ये लीजिये ! इस ‘बातों
वाली गली’ में एक बार जो घुस जाए उसका निकलना क्या आसान होता है ! इसकी उसकी न
जाने किस-किस की, यहाँ की वहाँ की न जाने कहाँ-कहाँ की, इधर की उधर की न जाने
किधर-किधर की बस बातें ही बातें ! और इतनी सारी बातों में हमारा तो मन ऐसा रमा कि
किसी और बात की फिर सुध बुध ही नहीं रही ! आप समझ तो गए ना मैं किस ‘बातों वाली
गली’ की बात कर रही हूँ ! जी यह है हमारी हरदिल अजीज़ बहुत प्यारी ब्लॉगर वन्दना अवस्थी दुबे जी की किताब ‘बातों वाली गली’ जिसमें उनकी
चुनिन्दा एक से बढ़ कर एक २० कहानियाँ संगृहीत हैं ! सारी कहानियाँ एकदम चुस्त
दुरुस्त ! मन पर गहरा प्रभाव छोड़तीं और चेतना को झकझोर कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर
करतीं !
इन कहानियों को पढ़
कर इस बात का बड़ी शिद्दत से एहसास होता है कि नारी मन की गहराइयों को नाप लेने की
वन्दना जी में अद्भुत क्षमता है ! यूँ तो सारी ही कहानियाँ बहुत बढ़िया हैं लेकिन कुछ
कहानियों में नारी मन की अंतर्वेदना का वन्दना जी ने जिस सूक्ष्मता के साथ चित्रण
किया है वह देखते ही बनता है ! इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते कई बार अचंभित हुई कि अरे
मेरी तो कभी वन्दना जी से बात ही नहीं हुई फिर इस घटना के बारे में इन्हें कैसे
पता चल गया और इतने सटीक तरीके से
इन्होंने इसे कैसे लिख दिया ! क्या यह भी संयोग है कि स्वयं पर बीती हुई अनुभूत
बातें ठीक उसी प्रकार औरों के साथ भी बीती हों ? चित्रण इतना सजीव और सशक्त कि
जैसे चलचित्र से चल रहे उस घटनाक्रम के हम स्वयं एक प्रत्यक्षदर्शी हों ! लेखिका
की यह एक बहुत बड़ी सफलता है कि पाठक कहानियों के चरित्रों के साथ गहन तादात्म्य
अनुभव करने लगते हैं ! भाषा और शैली इतनी सहज और प्रांजल जैसे किसी मैदानी नदी का एकदम
शांत, निर्द्वन्द्व, निर्बाध प्रवाह !
नारी को कमतर आँकने
की रूढ़िवादी पुरुष मानसिकता पर करारा प्रहार करती कहानियाँ ‘सब जानती है शैव्या’ और
‘प्रिया की डायरी’ बहुत सुन्दर बन पडी हैं ! कुछ कहानियाँ जो मन के बहुत करीब लगीं
उनके नाम अवश्य लूँगी ! ‘अहसास’, ‘विरुद्ध’ और ‘बड़ी हो गयी हैं ममता जी’ मुझे विशेष
रूप से बहुत अच्छी लगीं ! ‘दस्तक के बाद’, ‘नीरा जाग गयी है’, ‘बड़ी बाई साहेब’ और ‘डेरा
उखड़ने से पहले’ कहानियों में हम भी स्त्री की हृदय की विषम वीथियों में जैसे वन्दना
जी के हमराह बन जाते हैं ! ‘हवा उद्दंड है’, ‘बातों वाली गली’ और ‘आस पास बिखरे
लोग’ वास्तव में इतनी यथार्थवादी कहानियाँ हैं कि ज़रा इधर उधर गर्दन घुमा कर देख
लेने भर से ही इन कहानियों के पात्र सशरीर हमारे सामने आ खड़े होते हैं !
‘बातों वाली गली’
कहानी संग्रह की हर कहानी हमें एक नए अनुभव से तो परिचित कराती ही है हमारी
ज्ञानेन्द्रियों को नए स्वाद का रसास्वादन भी कराती है !
पुस्तक नि:संदेह रूप
से संग्रहणीय है ! इतने सुन्दर संकलन के लिए वन्दना जी को बहुत-बहुत बधाई ! वे इसी
तरह स्तरीय लेखन में निरत रहें और हमें इसी प्रकार अनमोल अद्वितीय कहानियाँ पढ़ने
को मिलती रहें यही हमारी शुभकामना है ! आपकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी
वन्दना जी ! हार्दिक अभिनन्दन !
साधना वैद
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