पद्मावती का बवाल इतना विकट होता जा रहा है कि यह कब और कैसे थमेगा समझ ही नहीं आ रहा है ! संजय लीला भंसाली जी की प्रवृत्ति तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने की है इसमें तो कोई शंका शुबहा है ही नहीं ! कलात्मक स्वतन्त्रता की आड़ लेकर वे मूल कथा की किस तरह गर्दन मरोड़ते हैं देवदास इसका ज्वलंत उदाहरण है लेकिन इतने नामी निर्माता निर्देशक होने के साथ ही थोड़ी सी व्यावहारिक बुद्धि भी विकसित कर लेते कि कहाँ और किस चरित्र के साथ कितनी छेड़छाड़ करनी चाहिए तो आज उन्हें ये दिन न देखने पड़ते ! पारो, चंद्रमुखी और मस्तानी की पंक्ति में ही पद्मावती को रख कर उन्होंने बहुत बड़ी भूल की है ! देवदास फिल्म में पारो और देवदास का किस तरह से कैरेक्टर एसेसिनेशन किया गया है इसकी पीड़ा उनसे पूछिए जिनके दिलों के बहुत करीब यह उपन्यास है !
भंसाली जी को मुख्य पात्रों को नचवाने का बहुत शौक है ! शायद भीड़ को सिनेमा हॉल तक जुटाने का एक यही नुस्खा उन्हें आता है ! शरतचंद्र के उपन्यास में जिन पारो और चंद्रमुखी ने एक दूसरे को कभी रू ब रू देखा भी नहीं भंसाली जी ने अपनी फिल्म में दोनों को एक साथ नचवा दिया ! बाजीराव मस्तानी में भी उन्होनें कलात्मक स्वतन्त्रता के नाम पर लिबर्टी लेकर मराठा रानी और मस्तानी को नचवा दिया ! बाजीराव के वंशजों ने इस बात पर अपना असंतोष भी व्यक्त किया था लेकिन पब्लिक ने इस असंतोष पर अपनी कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं जताई ! शायद इसी बात से उनका हौसला बढ़ गया और फिल्म पद्मावती में भी उन्होंने खुले आँगन में तमाम दरबारियों और प्रजा के सामने अंग प्रदर्शित करते कपड़े पहना कर पद्मावती से घूमर डांस करवा दिया ! लेकिन पद्मावती में उनकी यह चाल उन्हीं पर भारी पड़ गयी ! रानी पद्मावती का आज भी लोगों के दिलों में कितना सम्मान है और क्या स्थान है इसका अनुमान भंसाली जी नहीं लगा पाए !
भंसाली जी तो खैर फिल्म के निर्माता हैं इसलिए इसके प्रदर्शन के लिए वे आकाश पाताल एक करने में लगे हुए हैं तो आश्चर्य की कोई बात नहीं लेकिन हमारी सुप्रीम कोर्ट को क्या हुआ है ? उन्हें फिल्म रिलीज़ करने की अनुमति देने के लिए २५ जनवरी का दिन ही सबसे उपयुक्त लगा जबकि गणतंत्र दिवस समारोह कल होना है ? आतंकी धमकियों से राजधानी में हाई अलर्ट जारी किया गया है और दस देशों के राष्ट्राध्यक्ष और अन्य कई राजनेता विशिष्ट अतिथि के तौर पर गणतंत्र दिवस के अवसर पर समारोह में सम्मिलित होने के लिए भारत आ रहे हैं ! ऐसे समय में इस फिल्म का रिलीज़ होना क्या इतना आवश्यक है कि प्रदेशों की सारी पुलिस और सेना को लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने के लिए बाकी सारे अहम् मुद्दों की अनदेखी करनी पड़ जाए और इस फिल्म के सफल प्रदर्शन की ड्यूटी में उसे जुटना पड़ जाए ? फिल्म के प्रदर्शन के लिए दो एक हफ्ते और नहीं रुका जा सकता था ?
साधना वैद
No comments:
Post a Comment