Friday, February 23, 2018

साँझ हो गई


साँझ हो गई
लौट चला सूरज 
अपने घर 

उमड़ पड़ा
स्वागत को आतुर 
स्नेही सागर 

क्लांत सूर्य ने 
अतल जलधि में 
लिया बसेरा 

नीम रोशनी 
सकल जगत में 
नीम अँधेरा

मिल के गाते 
विहग डाल पर 
गीत सुरीला 

सौरभ फैला 
वन उपवन में 
बड़ा नशीला 

सांध्य सुन्दरी 
हुई अवतरित 
इठलाई सी 

ओढ़े चूनर 
झिलमिल करती 
इतराई सी 

मस्तक पर 
शोभित है सुन्दर 
चाँद का टीका 

उसके आगे 
कुदरत का हर 
रंग है फीका 

चली रिझाने 
प्रियतम को वह 
सकुचाई सी  

मुग्ध भाव से 
खड़ी सिमट कर 
शरमाई सी 

मीठी धुन में 
सुर नर करते 
गान तुम्हारा 

पलक मूँद 
डूबा इस पल में 
ये जग सारा 

चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद 





Tuesday, February 20, 2018

वजह



बड़ा उदास है आज दिल 
मेरी प्यारी बुलबुल 
कुछ तो जी बहला जा 
हर एक शै है दिल पर भारी 
तू कोई तो गीत सुना जा 
न खुशबुएँ मुस्कुराती है 
न फूल गुनगुनाते हैं 
न हवाएँ गुदगुदाती हैं 
न परिंदों के पयाम आते हैं 
दिल के हर हिस्से में 
बस किसीकी चहलकदमी की 
धीमी-धीमी आहट सुनाई देती है 
और मन की गीली ज़मीन पर 
किसीके पैरों के अध मिटे से 
नक्श उभर-उभर आते हैं 
उन्हें देखने से 
उन्हें छूने से भी डरती हूँ 
आँसुओं के उमड़ते आवेग से 
वे कहीं बिलकुल ही न मिट जायें !
अंतर की उमड़ती घुमड़ती नदी को 
इसीलिये मैंने बाँध बना कर 
अवरुद्ध कर लिया है 
कि कहीं लहरों के वेग के साथ 
ये नक़्शे कदम बह न जायें ! 
शेष जीवन जीने के लिए 
कम से कम इतनी वजह तो 
बचा कर रखनी ही होगी ! 
है ना ?


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

Saturday, February 10, 2018

इन्हें भी सम्मान से जीने दें



इसे सामाजिक न्याय व्यवस्था की विडम्बना कहा जाये या विद्रूप कि जिन वृद्धजनों के समाज और परिवार में सम्मान और स्थान के प्रति तमाम समाजसेवी संस्थायें और मानवाधिकार आयोग बडे सजग और सचेत रहने का दावा करते हैं और समय – समय उनके हित के प्रति पर अपनी चिंता और असंतोष का उद्घाटन भी करते रहते हैं उन्हींको पराश्रय और असम्मान की स्थितियों में जब ढकेला जाता है तब सब मौन साधे मूक दर्शक की भूमिका निभाते दिखाई देते हैं। 
ऐसी धारणा है कि साठ वर्ष की अवस्था आने के बाद व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं और वह शारीरिक श्रम के काम के लिये अक्षम हो जाता है और यदि वह प्रबन्धन के कार्य से जुड़ा है तो वह सही निर्णय ले पाने में असमर्थ हो जाता है इसीलिये उसे सेवा निवृत कर दिये जाने का प्रावधान है । अगर यह सच है तो संसद में बैठे वयोवृद्ध नेताओं की आयु तालिका पर कभी किसीने विचार क्यों नहीं किया ? उन पर कोई आयु सीमा क्यों लागू नहीं होती ? क़्या वे बढती उम्र के साथ शरीर और मस्तिष्क पर होने वाले दुष्प्रभावों से परे हैं ? क़्या उनकी सही निर्णय लेने की क्षमता बढती उम्र के साथ प्रभावित नहीं होती ? फिर किस विशेषाधिकार के तहत वे इतने विशाल देश के करोड़ों लोगों के भविष्य का न्यायोचित निर्धारण अपनी जर्जर मानसिकता के साथ करने के लिये सक्षम माने जाते हैं ? यदि उन्हें बढ़्ती आयु के दुष्प्रभावों से कोई हानि नहीं होती तो अन्य लोगों के साथ यह भेदभाव क्यों किया जाता है ?

अपवादों को छोड़ दिया जाये तो साठ वर्ष की अवस्था प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अधिक अनुभवी, परिपक्व और गम्भीर हो जाता है और उसके निर्णय अधिक न्यायपूर्ण और समझदारी से भरे होते हैं । ऐसी स्थिति में उसे उसके सभी अधिकारों और सम्मान से वंचित करके सेवा निवृत कर दिया जाता है जो सर्वथा अनुचित है । घर में उसकी स्थिति और भी शोचनीय हो जाती है । अचानक सभी अधिकारों से वंचित, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से क्लांत वह चिड़चिड़ा हो उठता है । घर के किसी भी मामले में उसकी टीकाटिप्पणी को परिवार के अन्य सदस्य सहन नहीं कर पाते और वह एक अंनचाहे व्यक्ति की तरह घर के किसी एक कोने में उपेक्षा, अवहेलना, असम्मान और अपमान का जीवन जीने के लिये विवश हो जाता है । उसकी इस दयनीय दशा के लिये हमारी यह दोषपूर्ण व्यवस्था ही जिम्मेदार है । साठवाँ जन्मदिन मनाने के तुरंत बाद एक ही दिन में कैसे किसीकी क्षमताओं को शून्य करके आँका जा सकता है ?
वृद्ध जन भी सम्मान और स्वाभिमान के साथ पूर्णत: आत्मनिर्भर हों और उन्हें किसी तरह की बैसाखियों का सहारा ना लेना पड़े इसके लिये आवश्यक है कि वे आर्थिक रूप से भी सक्षम हों । इसके लिये ऐसे रोज़गार दफ्तर खोलने की आवश्यक्ता है जहाँ
 साठ वर्ष से ऊपर की अवस्था के लोगों के लिये रोज़गार की सुविधायें उपलब्ध करायी जा सकें । प्राइवेट कम्पनियों और फैक्ट्रियों में बुज़ुर्ग आवेदकों के लिये विशिष्ट नियुक्तियों की व्यवस्था का प्रावधान सुनिश्चित किया जाये । इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि उनको उनकी क्षमताओं के अनुरूप ही काम सौंपे जायें । आर्थिक रूप से सक्षम होने पर परिवार में भी बुज़ुर्गों को यथोचित सम्मान मिलेगा और उनकी समजिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी । यह आज के समय की माँग है कि समाज में व्याप्त इन विसंगतियों की ओर प्रबुद्ध लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाये और वृद्ध जनों के हित के लिये ठोस और कारगर कदम उठाये जायें । तभी एक स्वस्थ समाज की स्थापना का स्वप्न साकार हो सकेगा जहाँ कोई किसीका मोहताज नहीं होगा !   


साधना वैद

Wednesday, February 7, 2018

पहाड़ी नदी



स्वर्ग से नीचे
धरा पर उतरी
पहाड़ी नदी

करने आई
उद्धार जगत का
कल्याणी नदी

बहती जाती 
अथक अहर्निश
युगों युगों से 

करती रही 
धरा अभिसिंचित 
ये सदियों से 

जीवन यह 
है अर्पित तुमको 
हे रत्नाकर 

उमड़ चली 
मिलने को तुमसे 
मेरे सागर 

सूर्य रश्मि से 
 पिघली हिमनद  
सकुचाई सी 

 हँसती गाती  
छल छल बहती 
इठलाई सी 

उथली धारा
बहती कल कल
प्रेम की धनी

उच्च चोटी से 
झर झर झरती 
झरना बनी 

नीचे आकर 
बन गयी नदिया 
मिल धारा से 

उन्मुक्त हुई
निर्बंध बह चली 
हिम कारा से

बहे वेग से 
भूमि पर आकर 
मंथर धारा 

मुग्ध हिया में 
उल्लास जगत का 
समाया सारा 

एक ही साध
हो जाऊँ समाहित
पिया अंग मैं

रंग जाऊँगी 
इक लय होकर 
पिया रंग मैं 

मेरा सागर 
मधुर या कड़वा 
मेरा आलय 

सुख या दुःख 
अमृत या हो विष
है देवालय 

चाहत बस 
पर्याय प्रणय की
मैं बन जाऊँ

मिसाल बनूँ
साजन के रंग में 
मैं रंग जाऊं 



साधना वैद     
   

Thursday, February 1, 2018

इन्द्रधनुष




देखो
अप्रतिम सौंदर्य के साथ
सम्पूर्ण क्षितिज पर
अपनी सतरंगी छटा बिखेरता
इन्द्रधनुष निकल आया है !
भुवन भास्कर के
उज्जवल मुख पर
आच्छादित बादलों के
अवगुंठन को
पल भर में उड़ा कर  
सूर्य नारायण की
प्रखर उत्तप्त रश्मियों ने  
वातावरण में व्याप्त
वाष्प कणों को 
उद्दीप्त कर ऐसे
अनूठे इन्द्रधनुष का
निर्माण कर दिया है कि  
धरा से अम्बर तक
समूचा विस्तार इन्द्रधनुष के
अलौकिक रंगों से रंग गया है !   
दिव्य सौंदर्य से प्रदीप्त
नवोढा सृष्टि सुन्दरी
अपने प्रशस्त भाल पर
सलोने सूर्य की
स्वर्णिम टिकुली लगा ,
सतरंगी इन्द्रधनुष की
झिलमिलाती चूनर अपने
आरक्त आनन पर ओढ़
इठलाती इतराती
सबको विस्मय विमुग्ध
कर रही है और
सुदूर देवलोक में
सृष्टि सुन्दरी के इस
पल पल बदलते दिव्य
सौंदर्य पर आसक्त हो
कामदेव ने अपने धनुष की
प्रत्यंचा पर फूलों के
बाणों को साध लिया है !


साधना वैद