बड़ा उदास है आज दिल
मेरी प्यारी बुलबुल
कुछ तो जी बहला जा
हर एक शै है दिल पर भारी
तू कोई तो गीत सुना जा
न खुशबुएँ मुस्कुराती है
न फूल गुनगुनाते हैं
न हवाएँ गुदगुदाती हैं
न परिंदों के पयाम आते हैं
दिल के हर हिस्से में
बस किसीकी चहलकदमी की
धीमी-धीमी आहट सुनाई देती है
और मन की गीली ज़मीन पर
किसीके पैरों के अध मिटे से
नक्श उभर-उभर आते हैं
उन्हें देखने से
उन्हें छूने से भी डरती हूँ
आँसुओं के उमड़ते आवेग से
वे कहीं बिलकुल ही न मिट जायें !
अंतर की उमड़ती घुमड़ती नदी को
इसीलिये मैंने बाँध बना कर
अवरुद्ध कर लिया है
कि कहीं लहरों के वेग के साथ
ये नक़्शे कदम बह न जायें !
शेष जीवन जीने के लिए
कम से कम इतनी वजह तो
बचा कर रखनी ही होगी !
है ना ?
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
No comments:
Post a Comment