आसमान में
झिलमिल करता
चमका चन्दा
तारों के संग
दूर क्षितिज तक
दमका चन्दा
शीतल चंदा
गगन से उतरी
अमृत धारा
प्लावित होता
तृषित अवनि का
अंतर सारा
विहँँस उठा
सम्पूर्ण प्रकृति का
हरेक छौना
दमक उठा
सम्पूर्ण जगति का
हरेक कोना
झूम उठी है
धरा मुदित मन
इठलाई सी
शुभ्र वस्त्र में
नख से शिख तक
इतराई सी
माना तुमको
प्रियतम इसने
नभ के चन्दा
मिले कभी ना
बेहतर इससे
तुमको चन्दा
साधना वैद
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