बावरे पंछी
जानती हूँ
जानती हूँ
तेरी
प्यास अनंत है
और
नियति निर्मम अत्यंत है !
ज्येष्ठ
का महीना है
और
सूर्य की तपिश
अपने
चरम पर है !
लेकिन
नन्हे नादान पंछी
क्या
करेगा तू जब
अपनी
विपुल प्यास को
बुझाने
के लिये तुझे
बूँद भर
पानी भी
नसीब न
हो सकेगा !
तृषित हृदय
चातक की तरह
तू भी बड़ी आस लिये
अपनी चोंच खोल
नल के नीचे आ बैठा है !
लेकिन ओस के चाटे
प्यास बुझती है क्या ?
तू भी बड़ी आस लिये
अपनी चोंच खोल
नल के नीचे आ बैठा है !
लेकिन ओस के चाटे
प्यास बुझती है क्या ?
क्या
करेगा तू जब
स्त्रोत ही सूख गया हो !
स्त्रोत ही सूख गया हो !
इतनी
ज़रा सी बूँद तो
तेरे
विदग्ध हृदय की
आँच से
वाष्पित हो
तेरे
शुष्क कंठ तक
पहुँचने
से पहले ही हवा में
विलीन
हो जायेगी !
मासूम
परिंदे
मुझसे
तेरी यह विकलता
देखी
नहीं जाती !
बस तेरे
लिए सूर्य देव से
इतनी ही
प्रार्थना कर सकती हूँ
कि वे
तनिक बादलों में छिप जाएँ
जिससे ये
तपते नलके
इतने
ठन्डे हो जाएँ कि
तृषातुर
अधरों को तर करने के लिए
जब तुम
उन्हें पकड़ो तो
तुम्हारे
नाज़ुक पंजे जल न जाएँ !
वैसे तो
ज्येष्ठ का महीना
हर
विदग्ध हृदय के लिए
रिमझिम शीतल
फुहार की
कल्पना
लिए आता है लेकिन
नन्हे
परिंदे आज का सच यही है
और इस
सच से
समझौता करने के अलावा
कोई
उपाय भी तो नहीं !
नन्हे
परिंदे
इन सूखे
नलों से
अमृतधारा
के बहने
की
प्रत्याशा निर्मूल है !
पर तेरा
जीवन अनमोल है !
उड़ जा
मेरे प्यारे पंछी !
जीवन
रक्षा के लिये
तुझे
कोई और ठिकाना
ढूँढना
ही होगा !
जहाँ तू
जी भर पानी पीकर
अपने
शुष्क कंठ को
तर कर
सके
और
तृप्त भाव से
एक ऐसी
मीठी तान भर सके
जिसे
सुन कर
सारा
संसार झूम उठे !
साधना
वैद
No comments:
Post a Comment