कैसे हो कलाकार ?
सुना था कलाकार तो
बहुत ही
संवेदनशील होते हैं
उनके हृदय में अपार
करुणा होती है
लेकिन तुम तो ......
तुम भी औरों जैसे ही
निकले
स्वार्थी, हृदयहीन और निर्मम !
तुम्हें तो बस औरों
की
वाहवाही लूटने से
मतलब है
महसूस किया है कभी
मुझ जैसी शहनाई का
दर्द
कभी सोचा है मुझ पर
क्या गुज़रती है
जब मेरे तन के हर
छेद पर
तुम्हारी ये
उँगलियाँ नाचती हैं !
ये मुझे कितना आहत
कर जाती हैं
कभी जानने की कोशिश
की है तुमने ?
जीवन पर्यंत बजती
रही हूँ मैं
हर विवाह, हर उत्सव, हर समारोह में
मेरे मन में कितनी
पीड़ा है
कितना दर्द है किसने
जाना है !
मेरी आत्मा की
चीत्कार
लुभाती है श्रोताओं
को !
शहनाई की हर बंदिश
पर
वे विभोर हो झूम
उठते हैं
बारम्बार सुनने का
आग्रह करते हैं
और अपनी इस कला के
प्रदर्शन पर
कितना सम्मान, कितने पुरस्कार,
कितने पारितोषिक
मिलते हैं तुम्हें
कलाकार !
लेकिन कौन जानता है
मेरे दिल का हाल !
मन्द्र हो, मध्य हो या तार
हर सप्तक के सुर
मेरे मन की
व्यथा कथा ही सुनाते
हैं
सुन कर समझने वाला
चाहिए !
मेरे हृदय के छेदों
पर
ऊँगलियाँ रख स्वर
निकालने में
बहुत आनंद आता है ना
तुम्हें !
आये भी क्यों ना ?
दर्द में भी तो बहुत
मिठास होती है,
एक आकर्षण होता है
और होती है
सम्मोहित कर लेने की
एक अद्भुत क्षमता !
तभी तो कहते हैं सब
हैं सबसे मधुर वो
गीत
जिन्हें हम दर्द के
सुर में गाते हैं
धन्य हो तुम कलाकार
जो मेरे अंतर के हर
क्रंदन को
इतनी दक्षता से ऐसे
मधुर संगीत में
परिवर्तित कर देते
हो कि श्रोता
मंत्रमुग्ध हो
स्वरों के इस
अलौकिक संसार में खो
से जाते हैं
और मैं धन्य हो जाती
हूँ
कि दर्द सह कर भी
मैं जगत को
कुछ तो सुखी कर पाई
!
साधना वैद
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