खुले आसमान के नीचे
प्रशांत महासागर के तट
पर
शिशिर ऋतु की भीषण
सर्दी में
अपने चहरे से टकराती
ठंडी हवाओं की
बर्फीली छुअन को याद
कर रही हूँ !
एक चहरे के अलावा
बाकी सारा बदन
गर्म कपड़ों से कस कर
लिपटा होता है
चेहरे पर जैसे बर्फ सी
मल देती है हवा !
नाक ठण्ड से सुर्ख
हो जाती है
पलकों पर रुई के
फाहे सी हिम जम जाती है
फिर भी शिशिर की यह
शीतल छुअन
मुझे बड़ी सुखदाई लगती
है !
फूलों के सौरभ से बोझिल
वासंती बयार जब
बदन को छूकर मदालस
कर जाती है
मन में ढेर सारे अरमान
जगा जाती है
बागेश्री और मालकौंस
की मधुर रागिनी
मन में अनुराग जगा मुझे
मदहोश सा कर जाती है
तब
वासंती पवन की यह नशीली
छुअन
मुझे बहुत सुहाती है
!
ज्येष्ठ मास की भीषण
गर्मी
विकट गर्मी से
व्याकुल प्राण
स्वेद बिन्दुओं से सिक्त
बोझिल शरीर
कोमल बदन को भस्मसात
सा करतीं
गर्म हवाएं और लू के
सुलगते थपेड़े
इन हवाओं की छुअन
मुझे सदा ही
आकुल कर जाती है !
वर्षा ऋतु के आगमन
के साथ
माटी की सौंधी-सौंधी
सुगंध से
प्राणों का एक बार
पुन: खिल उठना
बारिश की नमी सोखते
ही धरा में दबे
असंख्य बीजों का
अंकुरित हो जाना
हथेलियों पर झरती पहली
फुहार की
नन्ही नन्ही बूंदों के
सपर्श से पुलकित हो
मन मयूर का झूम के
नाच उठना
वर्षा की यह तरल
छुअन मेरे लिए
जैसे संजीवनी सा
जादू कर जाती है !
शरद ऋतु का शांत निरभ्र
आकाश
चहुँ ओर फ़ैली उज्जवल
धवल चाँदनी
प्रकृति का हर रंग
हर रूप
पूर्ण रूप से मनोहारी
एवं नयनाभिराम
जैसे कैनवस पर उकेरी
गयी कोई नयी पेंटिंग !
शरद ऋतु की शीतल
स्निग्ध चाँदनी की यह छुअन
मेरे मन में जाने
कितनी कल्पनाओं,
जाने कितनी कामनाओं,
जाने कितनी भावनाओं को
स्फुरित कर जाती है
!
और लो अब आ गयी हेमन्त
ऋतु
साथ ले आई ढेर सारा
उत्साह, सुख,
स्वास्थ्य, खुशियाँ और
पर्व ही पर्व !
सुबह शाम की गुलाबी
सर्दी की छुअन
कर जाती है मन प्राण
आल्हादित
हो जाता है मन सुमन
मुकुलित
और नव आवरण में
लिपटी वसुधा
लगती है प्रफुल्लित !
हे माँ प्रकृति
तुमने हर मौसम में
बड़े प्यार से
दिया है मुझे अपनी गोद
में संरक्षण
तुम्हारे वात्सल्य
का यह मृदुल स्पर्श
करता रहा है मुझमें
जीवन का संचरण
मेरी प्रणाम स्वीकार
करो माँ
वर दो कि कर सकूँ
मैं आने वाली पीढ़ियों को
इस प्राणदायी प्रीतिकर
छुअन का
अक्षुण्ण हस्तांतरण !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
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