Thursday, March 7, 2019

चौराहों के बच्चे


टेलकम पाउडर की तरह
रास्ते की धूल से
लिपटा बदन ,
और ढेर सारे तेल से पुते
चिपचिपाते
कस कर काढ़े गये बाल  ,
आँखों में कभी ना
थमने वाली लगन
और लोगों की झिड़कियाँ
सहने की आदी
खुरदुरी मोटी खाल ! 
ज्येष्ठ अषाढ़ की
चिलचिलाती धूप हो
या अगहन पूस की
ठिठुरन भरी सर्दी ,
मिलते हैं ये ग़रीब बच्चे
सुबह से रात तक
अपनी ड्यूटी पर तैनात
पहने हुए जिस्म पर
नाम मात्र के
कपड़ों की वर्दी !
हर लाल बत्ती वाले
चौराहे पर थामे हुए
अपने दुर्बल हाथों में
किताबें या पत्रिकायें,
खिलौने या गजरे,
छिला नारियल या अखबार,
या और कई तरह के
उपयोग में आने वाले
वो सामान जिनकी सबको
होती है दरकार !
सामान के साथ-साथ
हथेलियों पर लिये
अपना आत्म सम्मान ,
दिखाई देते हैं भागते दौड़ते
उन कारों के पीछे
जिनमें बैठे होते हैं
भाँति-भाँति के
श्रीमती और श्रीमान !
पेट की भूख मिटाने को
और चार पैसे कमाने को    
मजबूरी में करते हैं यह काम ,
लेकिन चल कहाँ पाता है
उनका सोचा यह
छोटा सा भी इंतज़ाम !
अपना सामान बेचने को
सबके सामने
गिड़गिड़ाते हैं, चिरौरी करते हैं  
लेकिन चरौरी के बदले में
पाते हैं दाम कम और
उससे कहीं अधिक फटकार,
ये तो वो नीलकंठ हैं
जो शायद अपने
घर परिवार वालों की
मुस्कुुराहट को बचाये
रखने के लिये
सहते हैं हर मौसम की मार
और भगवान शिव की तरह
ज़माने भर की
उपेक्षा और अपमान,
अवहेलना और तिरस्कार
का गरल लेते हैं
अपने कंठ में उतार !


साधना वैद


7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-03-2019) को "जूता चलता देखकर, जनसेवक लाचार" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार !

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  5. बहुत खूब , यथार्थ अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार आप को

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  6. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी !

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  7. बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सटीक रचना...

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