न तुझे पास अपने बुला सके
न तेरी याद को ही भुला सके
एक आस दिल में जगी रही
न जज़्बात को ही सुला सके !
तू पलट के ऐसे चला गया
ज्यों कभी न देखा हो हमें
न आवाज़ देते ही बना
न नज़र से तुझको बुला सके !
तुझे ज़िंदगी की तलाश थी
तू खुशी की राह पे चल पड़ा
हमें चाह दरिया ए दर्द की
कि खुदी को उसमें डुबा सकें !
तुझे रोशनी की थी चाहतें
तूने चाँद तारे चुरा लिये
हमें हैं अंधेरों से निस्बतें
कि ग़मों को अपने छिपा सकें !
तेरे लब पे खुशियाँ खिली रहें
या खुदा दुआ ये क़ुबूल कर
जो मोती गिरें मेरी आँख से
तेरी राह में वो बिछा सकें !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी! हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteतुझे रोशनी की थी चाहतें
ReplyDeleteतूने चाँद तारे चुरा लिये
हमें हैं अंधेरों से निस्बतें
कि ग़मों को अपने छिपा सकें !
बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।
बहुत ख़ूब साधना जी. बहादुरशाह ज़फर की नज़्म याद आ गयी -
ReplyDelete'पसे मर्ग मेरी मज़ार पर, जो दिया किसी ने जला दिया,
उसे आह ! दामन-ए-चाक ने, सरे-शाम ही से बुझा दिया.'
वाह !बहुत सुन्दर दी जी
ReplyDeleteसादर
तेरे लब पे खुशियाँ खिली रहें
ReplyDeleteया खुदा दुआ ये क़ुबूल कर
जो मोती गिरें मेरी आँख से
तेरी राह में वो बिछा सकें !
बहुत ही लाजवाब रचना...
हार्दिक धन्यवाद सिन्हा साहेब ! आभार आपका !
ReplyDeleteओह ! हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! मेरी रचना ने आपको बहादुर शाह ज़फर की रचना याद दिला दी सुन कर संकुचित हो उठी हूँ ! लेकिन खुश भी हूँ ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी ! इसी तरह स्नेह बनाए रखें !
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रीना जी ! आपकी दस्तक मन मुग्ध कर गयी !
ReplyDeleteतुझे रोशनी की थी चाहतें
ReplyDeleteतूने चाँद तारे चुरा लिये
हमें हैं अंधेरों से निस्बतें
कि ग़मों को अपने छिपा सकें...
हर पंक्ति लाजवाब ही है, इस रचना को बार बार पढ़ने का मन होता है।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन सखी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय सखी सुजाता जी ! आभार आपका !
Deleteन तुझे पास अपने बुला सके
ReplyDeleteन तेरी याद को ही भुला सके
एक आस दिल में जगी रही
न जज़्बात को ही सुला सके !
बेहतरीन सृजन । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
हार्दिक धन्यवाद सिन्हा साहेब ! आभार आपका !
Deleteजो मोती गिरें मेरी आँख से
ReplyDeleteतेरी राह में वो बिछा सकें !"
बहुत सुन्दर रचना रची है आपने। बहुत बढ़िया।
हार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! आभार आपका !
Deleteहृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी ! सादर वन्दे !
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