Friday, July 5, 2019

किताब और किनारे


 Image result for poetry book pics

वह एक किताब थी , 
किताब में एक पन्ना था , 
पन्ने में हृदय को छू लेने वाले 
भीगे भीगे से, बहुत कोमल, 
बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ।
आँखे बंद कर उन अहसासों को 
जीने की चेष्टा कर ही रही थी कि 
किसीने हाथ से किताब छीन कर 
मेज़ पर पटक दी । 
मन आहत हुआ । 
चोट लगी कि 
किताबों पर तो औरों का हक़ भी हो सकता हैं !
उनमें संकलित भावनायें अपनी कहाँ हो सकती हैं !
कहाँ जाऊँ कि मन के उद्वेग को शांति मिले !
इसी निराशा में घिरी मैं जा पहुँची नदी के किनारे ।
सोचा प्रकृति तो स्वच्छंद है !
उस पर कहाँ किसी का अंकुश होता है !
शायद यहाँ नदी के निर्मल जल में 
मुझे मेरे मनोभावों का प्रतिबिम्ब दिखाई दे जाये ! 
पर यह क्या ? 
किनारों से बलपूर्वक स्वयम को मुक्त करता हुआ 
नदी का प्रगल्भ, उद्दाम, प्रगाढ़ प्रवाह् 
बहता जा रहा था पता नहीं 
किस अनाम, अनजान, अनिर्दिष्ट मंज़िल की ओर 
और किनारे असहाय, निरुपाय, ठगे से 
अपनी जड़ों की जंजीरों से बँधे 
अभागे क़ैदियों की तरह् 
देख रहे थे अपने प्यार का इस तरह 
हाथों से छूट कर दूर होते जाना ।
और विलाप कर रहे थे सिर पटक कर 
लेकिन रोक नहीं पा रहे थे नदी के बहाव को ।
मन विचलित हुआ ।
मैंने सोचा इससे तो बंद किताब ही अच्छी है 
उसने कितनी घनिष्टता के साथ 
अपने प्यार को, अपनी भावनाओं को, 
अपने सबसे नर्म नाज़ुक अहसासों को 
सदियों के लिये 
अपने आलिंगन में बाँध कर रखा है !
ताकि कोई भी उसमें अपने मनोभावों का
प्रतिबिम्ब किसी भी युग में ढूँढ सके । 

साधना वैद

14 comments:

  1. इससे तो बंद किताब ही अच्छी है
    उसने कितनी घनिष्टता के साथ
    अपने प्यार को, अपनी भावनाओं को,
    अपने सबसे नर्म नाज़ुक अहसासों को
    सदियों के लिये
    अपने आलिंगन में बाँध कर रखा है !
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, साधना दी।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्‍य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete

  3. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    08/07/2019 को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. बंद किताब ही अच्छी है
    उसने कितनी घनिष्टता के साथ
    अपने प्यार को, अपनी भावनाओं को,
    अपने सबसे नर्म नाज़ुक अहसासों को
    सदियों के लिये
    अपने आलिंगन में बाँध कर रखा है !
    सच ,बंद किताब ही अच्छी हैं, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति साधना जी ,सादर

    ReplyDelete
  5. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  6. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  7. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  8. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी ! सस्नेह वन्दे !

    ReplyDelete
  9. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  10. वाह!!बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति साधना जी ।

    ReplyDelete
  11. सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुन्दर...

    ReplyDelete
  13. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! हृदय से आभार आपका !

    ReplyDelete
  14. तहे दिल से शुक्रिया सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

    ReplyDelete