धड़धड़ाते हुए कमरे में प्रवेश कर वैशाली ने हाथ में टेलर के यहाँ से लाया हुआ यूनीफॉर्म के ब्लेज़र का पैकेट सोफे पर फेंका और मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने में मशगूल अपने छोटे भाई निनाद से पूछा, “माँ कहाँ हैं निनाद ? “
मोबाइल से नज़र हटाये बिना ही निनाद ने मुँह बिचका कर उत्तर दिया, “ऊपर के कमरे में हैं दीदी ! अपने कपों की प्रदर्शनी लगा कर बॉक्सर की सफाई में लगी हैं !”
“और तू यहाँ मोबाइल पर गेम खेल रहा है ! माँ की हेल्प नहीं कर सकता ज़रा भी !” बड़बड़ाते हुए वैशाली दो-दो सीढ़ियाँ चढ़ पलक झपकते ही ऊपर पहुँच गयी !
“क्या कर रही हो माँ ? बड़ी ज़ोर से भूख लगी है !“
वैशाली माँ के कन्धों पर झूल गयी ! माँ एक पुराने से बैग से कई रंग उतरे उनकी स्टूडेंट लाइफ में उन्हें इनाम में मिले कपों को ज़मीन पर करीने से सजा कर बड़ी हसरत से निहार रही थीं ! पास ही उनके गर्ल्स रिप्रेजेंटेटिव और बैडमिंटन चैम्पियन के मोनोग्राम्स भी पड़े हुए थे जो कभी किसी ब्लेज़र पर नहीं टँक पाये ! अपने ज़माने की बड़ी मेधावी छात्रा थीं वैशाली की माँ ! एक बार पूछा था वैशाली ने कि ये मोनोग्राम्स उन्होंने अपने ब्लेज़र पर क्यों नहीं टँकवाये तो बड़ी उदासी से उन्होंने बताया था कि कभी ब्लेज़र ही नहीं बना तो लगातीं किस पर ! वैशाली की आवाज़ सुन माँ ने जल्दी से सारे कप्स समेट बैग में डाल दिये और रसोई की ओर चल दीं !
“हाँ चल, आजा जल्दी से ! तेरी पसंद के गोभी के पराँठे बनाए हैं मैंने !”
माँ के जाते ही वैशाली ने चुपके से वह बैग बाहर निकाल लिया !
“अभी आती हूँ माँ !” कह कर वह झटपट सीढ़ियाँ उतर कर फिर से अपना ब्लेज़र उठा बाहर निकल गयी !
“कहाँ चली गयी फिर से ! अभी तो भूख लग रही थी बड़ी ज़ोर से और अब फिर घूमने चल दी ! ये लड़की भी अजीब है बिलकुल ! मेरा काम भी रुकवा दिया और खाना भी नहीं खाया !” माँ बड़बड़ा रही थीं !
दो घंटे बाद जब वैशाली लौटी तो कमरे को झाड़ पोंछ कर माँ आईने के सामने खड़ी अपने बाल सँवार रही थीं ! वैशाली ने पीछे से आकर माँ की आँखें बंद कर लीं !
“कहाँ चली गयी थी मुझे रसोई में भेज कर ? भूख लगी थी ना तुझे ?” कुछ झल्लाई सी माँ बोलीं !
‘श् श् श् .... ! आँखें बंद करो ना माँ !” वैशाली ने मनुहार की ! माँ के आँखें बंद करते ही वैशाली ने एक कोट माँ को पहना दिया !
“अब आँखें खोलो माँ !” ब्लेज़र की पॉकेट पर माँ का बैडमिन्टन चैम्पियन का मोनोग्राम चमक रहा था !
माँ का गुस्सा काफूर हो चुका था ! नम आँखों में खुशी का सागर लहरा रहा था !
“ओ ओ .. मेरी बेटी !”
हर्षातिरेक से उन्होंने वैशाली को गले लगा लिया ! मुग्ध वैशाली उन्हें एकटक निहार रही थी !
मोबाइल से नज़र हटाये बिना ही निनाद ने मुँह बिचका कर उत्तर दिया, “ऊपर के कमरे में हैं दीदी ! अपने कपों की प्रदर्शनी लगा कर बॉक्सर की सफाई में लगी हैं !”
“और तू यहाँ मोबाइल पर गेम खेल रहा है ! माँ की हेल्प नहीं कर सकता ज़रा भी !” बड़बड़ाते हुए वैशाली दो-दो सीढ़ियाँ चढ़ पलक झपकते ही ऊपर पहुँच गयी !
“क्या कर रही हो माँ ? बड़ी ज़ोर से भूख लगी है !“
वैशाली माँ के कन्धों पर झूल गयी ! माँ एक पुराने से बैग से कई रंग उतरे उनकी स्टूडेंट लाइफ में उन्हें इनाम में मिले कपों को ज़मीन पर करीने से सजा कर बड़ी हसरत से निहार रही थीं ! पास ही उनके गर्ल्स रिप्रेजेंटेटिव और बैडमिंटन चैम्पियन के मोनोग्राम्स भी पड़े हुए थे जो कभी किसी ब्लेज़र पर नहीं टँक पाये ! अपने ज़माने की बड़ी मेधावी छात्रा थीं वैशाली की माँ ! एक बार पूछा था वैशाली ने कि ये मोनोग्राम्स उन्होंने अपने ब्लेज़र पर क्यों नहीं टँकवाये तो बड़ी उदासी से उन्होंने बताया था कि कभी ब्लेज़र ही नहीं बना तो लगातीं किस पर ! वैशाली की आवाज़ सुन माँ ने जल्दी से सारे कप्स समेट बैग में डाल दिये और रसोई की ओर चल दीं !
“हाँ चल, आजा जल्दी से ! तेरी पसंद के गोभी के पराँठे बनाए हैं मैंने !”
माँ के जाते ही वैशाली ने चुपके से वह बैग बाहर निकाल लिया !
“अभी आती हूँ माँ !” कह कर वह झटपट सीढ़ियाँ उतर कर फिर से अपना ब्लेज़र उठा बाहर निकल गयी !
“कहाँ चली गयी फिर से ! अभी तो भूख लग रही थी बड़ी ज़ोर से और अब फिर घूमने चल दी ! ये लड़की भी अजीब है बिलकुल ! मेरा काम भी रुकवा दिया और खाना भी नहीं खाया !” माँ बड़बड़ा रही थीं !
दो घंटे बाद जब वैशाली लौटी तो कमरे को झाड़ पोंछ कर माँ आईने के सामने खड़ी अपने बाल सँवार रही थीं ! वैशाली ने पीछे से आकर माँ की आँखें बंद कर लीं !
“कहाँ चली गयी थी मुझे रसोई में भेज कर ? भूख लगी थी ना तुझे ?” कुछ झल्लाई सी माँ बोलीं !
‘श् श् श् .... ! आँखें बंद करो ना माँ !” वैशाली ने मनुहार की ! माँ के आँखें बंद करते ही वैशाली ने एक कोट माँ को पहना दिया !
“अब आँखें खोलो माँ !” ब्लेज़र की पॉकेट पर माँ का बैडमिन्टन चैम्पियन का मोनोग्राम चमक रहा था !
माँ का गुस्सा काफूर हो चुका था ! नम आँखों में खुशी का सागर लहरा रहा था !
“ओ ओ .. मेरी बेटी !”
हर्षातिरेक से उन्होंने वैशाली को गले लगा लिया ! मुग्ध वैशाली उन्हें एकटक निहार रही थी !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
व्वाहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर नमन..
हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका!
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-09-2019) को " महत्व प्रयास का भी है" (चर्चा अंक- 3452) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Delete
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पोस्ट की चर्चा नरेंद्र मोदी से शिकायत कैसे करे ? और बेस्ट 25 में की गई है
कृपया एक बार जरूर देखें
Enoxo multimedia
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद बंधुवर ! आज प्रथम बार आपसे मुखातिब हुई हूँ ! आपका परिचय जान्ने के लिए इच्छुक हूँ ! मेरी ब्लॉग पोस्ट को आपने चुना इसके लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर... सचमुच बेटियां ऐसी ही होती हैं.....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब
जी सुधा जी ! सहमत हूँ आपकी बात से ! हार्दिक धन्यवाद !
Deleteनारी की दो पीढ़ियों के मनोदशा और मनोविज्ञान के अंतर को दर्शाती प्यारी लघुकथा ...
ReplyDeleteजी सुबोध जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDeleteप्यारी लघुकथा ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संजय ! आभार आपका !
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