Thursday, October 31, 2019

ऐसी ही होती है माँ




दिख जाती है मुझे स्वप्न में

आँचल से दुलराती माँ !

कभी गरजती, कभी बरजती

आँखों से धमकाती माँ !

कान पकड़ती, चपत लगाती

जाने क्यों तड़पाती माँ !

फिर मनचाही चीज़ दिला कर

घंटों हमें मनाती माँ !

सारे दिन चौके में खटती

चूल्हे को सुलगाती माँ ! 

अपने हाथों थाल सजा कर

खाना हमें खिलाती माँ !

रूठी बिटिया को खुश करने

मुँह में कौर खिलाती माँ !

माथे पर पट्टी रख-रख कर

ज्वर को दूर भगाती माँ !

नींद ना टूटे, कहीं हमारी

आँखों से बतियाती माँ !

राई नोन से नज़र उतारे

सीने से लिपटाती माँ !

बिन बोले जो बूझे सब कुछ

चहरे को पढ़ जाती माँ !

रंगबिरंगी चूनर रँग कर

हाथों में लहराती माँ !

रात-रात भर जाग-जाग कर

गोटे फूल लगाती माँ !

मंदिर में भगवन् के आगे

सबकी खैर मनाती माँ !

चौबारे में दीपक रख कर

सारे शगुन मनाती माँ !

बच्चों की सारी पीड़ा को

हँस-हँस कर पी जाती माँ !

छोटी सी भी चोट लगे तो

हाथों से सहलाती माँ !

बच्चे की हर उपलब्धि पर

फूली नहीं समाती माँ !

दुनिया भर में जश्न मनाती

इठलाती फिरती है माँ !

                     हर पल आँखों में बसती है                        

सपनों में आती है माँ !

मेरी हर पीड़ा को हर कर

मुझे हँसा जाती है माँ !

छूकर अपने कोमल कर से

मुझे रुला जाती है माँ !

ऐसी ही होती है शायद

जग में हर बच्चे की माँ !

जीवन के तपते मरुथल में

बादल बन छाती है माँ !

जीवन पथ के शूल बीन कर

फूल बिछा जाती है माँ !

बच्चा चाहे जैसा भी हो

माँ तो बस होती है ‘माँ’ !  

हो कोई भी देश विश्व में

ऐसी ही होती है माँ ! 



साधना वैद

Tuesday, October 29, 2019

समीक्षा “तीन अध्याय-कथा संग्रह” समीक्षक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति
अदबी दुनिया में साधना वैद अब तक ऐसा नाम था जो काव्य के लिए ही जाना जाता था। किन्तु हाल ही में इनका कथा संग्रह “तीन अध्याय” और बाल कथा संग्र “एक फुट के मजनूँमियाँ” प्रकाशित हुआ तो लगा कि ये न केवल एक कवयित्री है अपितु एक सफल कथाकारा और गद्य लेखिका भी हैं।
एक सौ बीस पृष्ट के इस कहानी संग्रह में कुल 24 कहानियाँ हैं। जिसका मूल्य 400 रुपये मात्र है। जिसे “निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स” आगरा से प्रकाशित किया है। लगभग एक महीने से यह संग्रह मेरे पास समीक्षा की कतार में था। आज समय मिला तो “तीन अध्याय” के बारे में कुछ शब्द लिख रहा हूँ।
साहित्य की दो विधाएँ हैं गद्य और पद्य, जो साहित्यकार की देन होती हैं और वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती हैं। कथाकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ प्रेरणा देने का प्रयास किया है। “तीन अध्याय” भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो साधना वैद की कलम से निकला है। इस कथा संग्रह के शीर्षक की सार्थकता के बारे में स्वयं लेखिका ने ही अपने समर्पण में स्पष्ट कर दिया है-
“मेरा मानना है कि हर नारी को अपने जीवन काल में तीन अध्यायों से अवश्यमभावी रूप से गुजरना पड़ता है...”
मैं लेखिका के कथ्य को और अधिक स्पष्ट करते हुए यह कहूँगा कि नारी ही नहीं अपितु समस्त चराचर जगत को जीवन के तीन अध्यायों (बचपन-यौवन और वृद्धावस्था) से रूबरू होना पड़ता है। “तीन अध्याय” संग्रह में लेखिका ने अपनी चौबीस कहानियों में जन जीवन से जुड़ी कड़ियों को कथाओं का रूप दिया है।
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लेखिका ने अपने कथा संग्रह का श्री गणेश “जमाना बदल गया है” की कहानी से किया है जिसमें प्रचीन और अर्वाचीन का तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत किया है। जिसमें सभी कुछ तो वही पहले जैसा है मगर उसका रूप बदल गया है जिसमें पहले जैसी आत्मीयता नहीं है। वैभव का दिखावा अधिक है और अपनापन और प्यार कहीं खो गया है।
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संकलन की दूसरी कथा “सुनती हो शुभ्रा” पुरुष प्रधान समाज में एक महिला को महिला होने का आभास कराया गया है। जिसमें गृहणी पर ही सारे काम की जिम्मेदारी का बोझ लाद दिया जाता है।
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“तीन अध्याय” कथा संग्रह में “नई फ्रॉक” एक निम्न वर्ग के लोगों की जिन्दगी की मार्मिक कहानी है। जो सीधे मन पर असर करती है।
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इस संग्रह में एक और कथा “फैशनपरस्त” के नाम से एक कामवाली की कथा है। जो हमारे समाज की विडम्बना को दर्शाती है। जिसके पास अपने वेतन से नये कपड़े खरीदने की हैसियत नहीं है। वह जिन घरों में काम करती है वहाँ से ही कभी-कभार कुछ पुराने कपड़े मिल जाते हैं। मगर जब वह उनको पहनती है तो उसे फैसनपरस्त होने के उलाहने मिलते हैं।
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“अनाथ-सनाथ” नामक कथा में कथा लेखिका साधना वैद ने नन्हीं दिशा के उसकी दादी के प्रति निश्छल प्यार की कहानी है। जिसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। देखिए इस कथा का उपसंहार-
“...आतंकित दिशा आज एक बार फिर अनाथ हुई जा रही थी।
इस बार अनाथाश्रम की जगह वह होस्टल भेजी जा रही थी,
नितान्त अपरिचित और अनजान लोगों के बीच।“
हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कहानीकार साधना वैद ने बाखूबी अपनी लेखनी से चित्रित किया है। कहानी के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर कथा शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी लेखिका ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है।
कुल मिलाकर देखा जाये तो इस कथा संग्रह की सभी कहानी बहुत मार्मिक और पठनीय है। यह श्लाघा नहीं किन्तु हकीकत है और मैं बस इतना ही कह सकता हूँ कि यह कथायें कथा जगत में मील का पत्थर साबित होंगी।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “तीन अध्याय” की कहानियाँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
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आपका  हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

साधना वैद

Friday, October 18, 2019

आज खुशियों भरी दीवाली है

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !


हर घर के स्वागत द्वार पर
छोटे-छोटे दीपों का हार है
प्रभु की स्नेहिल अनुकम्पा का
यह अनुपम उपहार है !
उर अंतर का हर कोना
आज खुशियों के उजास से
जगमगा रहा है
दीप मालिकाओं का
उज्जवल प्रकाश
घनघोर तिमिर को परास्त कर
गगन के सितारों को भी
लजा रहा है !
आज मन से यही दुआ
उच्छ्वसित होती है कि
हर घर झिलमिल दीपों की
रोशनी में नहाया हो   
हर हृदय ने हर्ष और उल्लास से
आनंद के छोर को गहाया हो !  
हर अधर पर खुशी के तराने हों  
मन में बसे दुःख, अवसाद
हताशा और अन्धकार को
जला डालने के सारे बहाने हों !
उठी मेरे भी मन में
यही कामना मतवाली है
हर्ष और उत्साह से
सब त्यौहार मनायें
आज खुशियों भरी दीवाली है !

साधना वैद





Wednesday, October 16, 2019

चलनी में चाँद




करवा चौथ की सभी बहनों को हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई ! 

भारतीय महिलाएं अपने सारे तीज त्यौहार पारंपरिक तरीके से ही मनाना पसंद करती हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! फिर बात अगर सुहाग के व्रत की हो तो उनकी भक्ति भावना, निष्ठा और समर्पण की बानगी ही कुछ और होती है ! परम्पराओं और नियमों के पालन में कोई कमी न रह जाए, हर अनुष्ठान हर विधि विधान पूरी सजगता सतर्कता के साथ संपन्न किया जाए इसका वे विशेष ध्यान रखती हैं ! आखिर अपने प्रियतम की दीर्घायु, सुख व सान्निध्य की कामना जो जुड़ी रहती है इस व्रत के साथ ! इन त्यौहारों का आकर्षण और लोकप्रियता बढ़ाने में फिल्मों और टी वी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ! यह इसी बात से सिद्ध होता है कि धार्मिक मान्यताओं को परे सरका कर इन त्यौहारों को मनाने वालों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है !

कल करवा चौथ का त्यौहार है ! उत्तर भारत में यह त्यौहार बड़े जोश खरोश के साथ मनाया जाता है ! सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु व मंगलकामना के लिये सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जल निराहार व्रत रखती है और संध्याकाल में सारे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर चन्द्रमा के निकलने की आतुरता से प्रतीक्षा करती हैं ! जब आसमान में चाँद निकल आता है तब चाँद को अर्घ्य दे अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है ! पति के लिये इस तरह का अनन्य प्रेम, सद्भावना और भावनात्मक लगाव सभीको प्रभावित करता है ! मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है आप सबसे यह बात साझा करते हुए कि हमारे शहर आगरा में गत वर्ष कई मुस्लिम बहनों ने भी इस व्रत को रखा ! उनका कहना था कि अपने पति की मंगलकामना के लिये तो वे भी यह व्रत रख सकती हैं ! इसमें धर्म को कहीं से आड़े नहीं आना चाहिये !

बात विषय से कुछ हट गयी है ! दरअसल इस पोस्ट को लिखने का मेरा आशय केवल इतना जानना था कि फिल्मों और टी वी को देख कर चलनी में चाँद देखने की यह जो नई परम्परा चल पड़ी है उसका औचित्य क्या है ? करवा चौथ की कहानी के अनुसार सात भाइयों की इकलौती लाड़ली बहन को चलनी में जो चाँद दिखाया गया था वह तो नकली था ! और चलनी के आर पार उस नकली चाँद की पूजा करने के बाद उसे नुक्सान भी उठाना पड़ा था ! गगन का चाँद तो स्पष्ट गोल दिखाई दे ही जाता है फिर चलनी की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? कहानी कहती है कि व्रत के कारण भूख प्यास से आकुल व्याकुल बहन की हालत भाइयों से जब देखी ना गयी तो उन्होंने पेड़ पर चढ़ कर मशाल जला कर चलनी के पीछे से नकली चाँद बना कर बहिन को दिखा दिया और उसे कह दिया कि चाँद को अर्घ्य देकर वह अपना व्रत खोल ले ! पेड़ के पत्तों के पीछे चलनी के अंदर गोलाई में मशाल का प्रकाश देख बहन को विश्वास हो गया कि चाँद सच में निकल आया है और उसने उस नकली चाँद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लिया ! इस तरह इस कहानी के अनुसार चलनी के माध्यम से जो देखा गया था वह तो नकली चाँद था फिर स्त्रियों का अपनी असली पूजा में चलनी के पीछे से चाँद देखने का क्या औचित्य है ? क्या हम गलत परम्परा को खाद पानी नहीं डाल रहे हैं या फिर हम इस परम्परा को सिर्फ इसलिए मानने मनाने लगे हैं क्योंकि फिल्मों में और धारावाहिकों में बड़े ही भव्य तरीके से इस परम्परा की स्थापित किया जाने लगा है जहाँ सजधज कर और चित्ताकर्षक अदाओं के साथ नायिका आसमान के चाँद के बाद नायक का चेहरा चलनी में देखती है और नायक अत्यंत रूमानी तरीके से पानी पिला कर नायिका का व्रत खुलवाता है ! मुझे याद है अपने मायके ससुराल में किसीको भी मैंने चलनी के माध्यम से चन्द्र देव के दर्शन करते हुए नहीं देखा ! न ही बाज़ार में इस तरह से सजी हुई चलनियाँ मिला करती थीं ! बाज़ारवाद की परम्पराएँ तो केवल हानि लाभ के सिद्धांतों से परिचालित होती हैं लेकिन धार्मिक विश्वास और आस्थाएं जिन रीति रिवाजों से पालित पोषित होते हैं क्या उनका तर्क की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक नहीं ? अधिकाँश महिलायें अब चलनी के माध्यम से चाँद क्यों देखने लगी हैं मैं इसका उत्तर जानना चाहती हूँ ! आशा है मेरी शंका का समाधान कर मेरा ज्ञानवर्धन आप में से कोई न कोई अवश्य करेगा !

सभी बहनों को करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई !



साधना वैद


Thursday, October 10, 2019

क्योंकि यह प्यार है





















क्यों वक्त के साथ
ख्वाहिशों की कभी
उम्र नहीं बढती !
क्यों आँखों के सपने
बार-बार टूट कर भी
फिर से जी उठते हैं !
क्यों उम्मीदें हमेशा
नाकाम होने के बाद भी
जवान बनी रहती हैं !
क्यों प्यार का सरोवर
ज़माने का भीषण ताप
सहने के बाद भी
कभी नहीं सूखता !
क्यों नैनों में बसा इंतज़ार
जब तक अपने प्रियतम को
सामने ना देख ले कभी
खत्म ही नहीं होता !
हज़ार अजनबी आहटों में से
कान कैसे बिना देखे ही
उस चिर प्रतीक्षित आहट को
पहचान लेते हैं जिसे सुन
शिराओं में रक्त की गति
अनायास ही तीव्र हो जाती है !
क्यों गुज़रे पलों के
फूलों से नाज़ुक एहसास
किसी भी हाल में
कभी मुरझाते नहीं !
क्यों भावनाएं हमेशा
बूढ़े होते जिस्म में भी
एक षोडशी की तरह
अल्हड़ और मासूम
ही बनी रहती हैं !
क्यों मन को महकाने वाली
मदमस्त मोहक खुशबू
सालों के इतने लंबे
अंतराल के बाद भी
कभी मंद नहीं पड़ती !
क्यों प्यार के भीगे जज़्बात  
बेरुखी और अवमानना की
आँच सहने के बाद भी
कभी शुष्क नहीं होते ! 
क्यों बढ़ती उम्र की झुर्रियाँ
मन की कोमल भावनाओं के
चहरों पर दिखाई नहीं देतीं !
क्यों वक्त का खुरदुरापन
हृदय की दीवारों पर अपने
निशाँ नहीं छोड़ पाता !
क्यों अंतर में प्रदीप्त
प्यार की प्रखर लौ
किसी आँधी किसी
तूफ़ान के आगे
कभी बुझती नहीं !
क्यों दिल हज़ारों सदमे
झेलने के बाद भी   
हताश हुए बिना
ताउम्र यूँ ही बेसबब 
धड़कता रहता है !
क्योंकि यह प्यार है
और प्यार का कभी
दमन नहीं होता !  



साधना वैद  

Wednesday, October 9, 2019

रावण की गुहार


मैं रावण हूँ लेकिन
तुमने मुझे रक्तबीज बना दिया है
हर वर्ष जलाते हो मुझे
और मैं हर वर्ष फिर नया जन्म लेता हूँ
फिर से मारे जाने के लिए !
मेरा वध करने के लिए तुम्हें भी
हर साल जन्म लेना पड़ता है राम
तुमने ही मुझे अजर अमर बना दिया है !
हर साल जहाँ मेरी जली देह के
अंश धरा पर गिरते हैं
मेरा प्रतिशोध लेने के लिये
असंख्यों रावण फिर से
उस धरती पर जन्म ले लेते हैं !
लेकिन इनका वध करने के लिए
तुम तो एक ही रह जाते हो राम
कितने रावण मारोगे ?
क्यों न इस सिलसिले को यहीं रोक दें ?
इस बार अंतिम रूप से
मेरे पुतले को जला कर
मुझे मोक्ष दे दो
मैं भी हर साल जल जल कर
बहुत थक गया हूँ राम
अब मुझ पर कृपा करो
और इस धरा पर जो
असंख्यों जीवित सदेह रावण
सज्जनों का मुखौटा चढ़ाए
समाज में छिपे बैठे हैं
तुम उनके संहार पर
अपना ध्यान केन्द्रित करो !
मेरी इतनी विनती सुन लो राम
इस बार तुम मुझे
निर्माण और विध्वंस की इस
त्रासदी से स्थायी रूप से
मुक्ति दे दो !

साधना वैद

Monday, October 7, 2019

ताशकंद यात्रा - २




दूसरा दिन – २५ अगस्त, २०१९

अनिर्वचनीय उल्लास, उत्साह और ऊर्जा लेकर २५ अगस्त का सूर्योदय ताशकंद में हो चुका था ! रात की रौनक और तिलस्म दिन के प्रकाश में छूमंतर हो चुका था और एक सजग, सतर्क, तरोताज़ा शहर अंगड़ाई लेकर उठ गया था ! सुबह नौ बजे से साहित्यिक सम्मलेन की गतिविधियाँ आरम्भ होने वाली थीं ! उससे पहले तैयार होना था नीचे डाइनिंग हॉल में नाश्ते के लिए जाना था और कार्यक्रम से सम्बंधित आवश्यक सामग्री को भी एक स्थान पर संजो कर रखना था ! उस दिन तो जल्दबाजी में चाय भी नहीं बनाई ! फ़िक्र थी कहीं देर ना हो जाए ! बस जल्दी से नहा धोकर नीचे पहुँच गए ! देखा हमारे सिवा वहाँ कोई नहीं था ! होटल से बाहर निकल कर आस पास का नज़ारा लिया ! प्रवेश द्वार के सामने ही बेहद खूबसूरत फव्वारे चल रहे थे जिनकी बूँदों की शीतल फुहार बड़ी सुहानी लग रही थी ! बाहर कुछ तस्वीरें खींचीं !  
होटल ग्रैंड प्लाज़ा जितना बाहर से शानदार है उतना ही खूबसूरत वह अन्दर से भी है ! उसकी साज सज्जा देखते ही बनती है ! हार्दिक प्रसन्नता हुई यह देख कर कि होटल ग्रैंड प्लाज़ा के दूसरे फ्लोर पर स्थित रेस्टोरेंट का नाम हमारे देश के प्रसिद्ध अभिनेता राजकपूर के नाम पर रखा गया है और यहाँ का भारतीय भोजन अत्यंत स्वादिष्ट माना जाता है ! यह राजकपूर का पसंदीदा होटल था और वे जब भी ताशकंद जाते थे तो इसी होटल में रुकते थे ! वहाँ उनकी स्मृति में एक  पियानो भी रखा हुआ है जिसे बजाते हुए ग्रुप के लगभग हर सदस्य ने अपनी फोटो खिंचवाई ! उस प्यानो के ऊपर अनाड़ी वादकों को बरजते हुए बड़ा मजेदार सा एक पोस्टर भी रखा हुआ है ! छत से कीमती फानूस लटक रहे हैं और दीवारों पर बेहद सुंदर पेंटिंग्स लगी हुई हैं ! होटल के अन्दर का भाग पूरा पक्का बना हुआ है लेकिन डाइनिंग हॉल के पास के एरिया में ग्रेनाईट के चिकने फर्श पर इतनी हरियाली है कि लगता है किसी बहुत ही सुन्दर बगीचे में बैठे हुए हैं ! बड़े बड़े गमलों में तरह तरह के इनडोर प्लांट्स लगे हुए हैं जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है  ! कई प्लांट्स के तनों को बड़ी कारीगरी से गूँथ कर बहुत सुन्दर एवं कलात्मक आकार दिया गया है !
ग्रुप के सदस्यों का नीचे आना शुरू हो गया था ! हमने भी नाश्ते के लिए डाइनिंग हॉल में प्रवेश किया ! विविध तरह की भारतीय और कॉन्टिनेंटल डिशेज़ नाश्ते के लिये उपलब्ध थीं ! अनेक तरह की पेस्ट्रीज़, केक्स, कुकीज़, बेकरी आइटम्स, मिल्क सीरल्स, जूस, चाय, कॉफ़ी, फ्रूट्स, सलाद, भारतीय नाश्ते, डेज़र्ट्स, ड्राई फ्रूट्स सब करीने से सजे हुए थे ! जो चाहे आप खाइये और विदेशी धरती पर भारतीय स्वाद को सराहिये ! बस एक ही कमी थी कि वहाँ हिन्दुस्तानी पूरियाँ, पराँठे या पतली रोटियाँ नहीं होती थीं ! उसके स्थान पर वहाँ के लोकप्रिय मोटे मोटे रोट ही सर्व किये जाते थे जिन्हें नॉन कहते हैं ! भारत में प्रचलित नान से मिलता जुलता नाम ज़रूर है लेकिन साइज़, स्वाद और देखने में बिलकुल अलग ! उन पर बड़े खूबसूरत डिज़ाइंस बने हुए थे और वे बिलकुल सुर्ख सिके हुए थे ! खाने में ज़रूर कुछ दिक्कत सी लगी लेकिन देखने ये बहुत ही आकर्षक थे ! ताशकंद के फ्रूट्स का तो कोई जवाब ही नहीं ! तरबूज हमारे देश में भी बहुत स्वादिष्ट मिलता है और आगरा का तरबूज तो वैसे भी बहुत प्रसिद्ध है ! लेकिन इतना मीठा और इतना रसीला तरबूज मैंने इससे पहले कभी नहीं खाया ! सलाद इतना महीन कटा हुआ कि खाने से पहले तो नज़र भर उसे देखते रहने का मन होता था ! वहाँ एक विशिष्ट तरह का खीरा देखा ! अंगूठे की मोटाई का, गहरे हरे रंग का यह खीरा मुश्किल से तीन चार इंच लंबा था लेकिन स्वाद इतना लाजवाब कि क्या बताएँ ! इन्हें छीलने की भी ज़रुरत नहीं ! ऐसे ही खाए जाते हैं ! डेज़र्ट सभी कम चिकनाई के, कम मीठे, पूरी तरह से स्वास्थ्यवर्धक !
नाश्ते के तुरंत बाद नौ बजे से साहित्य सम्मलेन का शुभारम्भ होना था ! सेकंड फ्लोर पर विंटर गार्डन हॉल में पहुँचने का निर्देश मिला था ! हम अपने भारतीय चलन के हिसाब से नीचे की मंज़िल को ग्राउंड फ्लोर मान कर सेकण्ड फ्लोर अर्थात तीसरी मंज़िल पर पहुँच गए ! इसी फ्लोर पर हमारा रूम भी था ! लेकिन कहीं विंटर गार्डन हॉल दिखाई नहीं दिया ! फिर नीचे पहुँचे ! तब यह पता चला की यहाँ ग्राउंड फ्लोर को फर्स्ट फ्लोर कहा जाता है ! विंटर गार्डन हॉल में सम्मलेन की तैयारियाँ बड़े ज़ोर शोर से चल रही थीं ! हमारी टीम लीडर श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी की देख रेख में सारी व्यवस्थाएं शीघ्र ही चुस्त दुरुस्त हो गयीं ! विश्व मैत्री मंच के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का बड़ा सा बैनर मंच पर बैकग्राउंड में शोभित हो रहा था ! देश विदेश से आये ३२ मेहमान सभागार में अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे ! नौंवे अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का शुभारम्भ माँ शारदे के फोटो पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ ! तत्पश्चात सुश्री अनीता राज ने सरस्वती वन्दना पर अत्यंत मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया ! इस खूबसूरत प्रस्तुति के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा ! इसके बाद पुस्तकों के लोकार्पण का कार्यक्रम संपन्न होना था ! मेरे नवीन कहानी संग्रह, ‘तीन अध्याय’ का विमोचन भी इस कार्यक्रम में होना था ! बहुत प्रसन्नता हो रही थी मुझे !
मुम्बई की लक्ष्मी यादव जी के कहानी संग्रह, ‘रिश्तों की जंजीर’, ज्योति गजभिये जी के कथा संग्रह, ‘बिना मुखौटे के दुनिया’, सविता चड्ढा जी के लेख संग्रह, ‘पाँव ज़मीन पर निगाह आसमान पर, मेरे कहानी संग्रह, ‘तीन अध्याय’, डॉ, यास्मीन मूमल के कविता संग्रह, ‘संवेदना के स्वर’ तथा सुश्री अनीता राज के यात्रा संस्मरण, ‘मेरी यात्रा वृत्तांत’ का लोकार्पण संस्था की अध्यक्ष श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. विद्या सिंह, मुख्य अतिथि डॉ. स्वामी विजयानंद तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. विजयकांत वर्मा एवं डॉ. सुभाष पाण्डेय जी के कर कमलों द्वारा हुआ ! मुम्बई की प्रभा शर्मा सागर जी ने , ‘पानी की कहानी पानी की जुबानी’ की एकल नृत्य नाटिका प्रस्तुत की ! मंच पर कार्यक्रम का संचालन मधु सक्सेना जी कर रही थीं ! जगदलपुर से आईं सुषमा झा जी ने सभी प्रतिभागियों का परिचय दिया और सभीको स्मृति चिन्ह भेंट किये गए !
बीच में चाय कॉफ़ी का ब्रेक भी था ! अल्पाहार के बाद प्रमुख विषय, ‘२१ वीं सदी के काव्य में स्त्री विमर्श’, पर बहुत ही सटीक व सार्थक चिंतन परक आलेख, कवितायें एवं भाषणों का सत्र चला ! सत्र का आरम्भ श्रीमती संतोष श्रीवास्तव के सारगर्भित भाषण से हुआ ! इस सत्र में डॉ. प्रमिला वर्मा, डॉ. विद्या सिंह, डॉ. स्वामी विजयानंद, फ्लोरिडा अमेरिका से आई हुई साहित्यकार आशा फिलिप, उज्बेकिस्तान के लेखक अबरार व थॉमस तथा डॉ. सविता चड्ढा के वक्तव्य एवं डॉ. क्षमा पांडे व डॉ. राकेश सक्सेना जी का काव्य पाठ उल्लेखनीय रहा !
कार्यक्रम विषय परक था तथा सबके वक्तव्य इतने सारगर्भित थे कि लग रहा था सुनते ही जाएँ ! लेकिन घड़ी की सूइयाँ किसीका इंतज़ार नहीं करतीं ! २ बजे तक लंच लेकर हमें ताशकंद के दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए निकलना भी था ! समय के पाबन्द हमारे गाइड मोहोम्मद ज़ियाद अपनी बस लेकर आ चुके थे ! इसलिए ना चाहते हुए भी सम्मलेन के तीसरे सत्र को, जिसमें प्रतिभागियों को काव्यपाठ और लघुकथा का वाचन करना था, २८ तारीख तक के लिए स्थगित करना पड़ा ! दोनों सत्रों का संचालन मधु सक्सेना जी व आभा दवे ने किया ! श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी ने आभार प्रदर्शन कर उस दिन के कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की ! मैं भी आज का संस्मरण यहीं समाप्त करती हूँ ! अगली कड़ी में ले चलूँगी आपको ताशकंद के कुछ अत्यन्त खूबसूरत एवं महत्वपूर्ण स्थलों की सैर पर ! तब तक के लिये मुझे भी आज्ञा दें !

साधना वैद