Tuesday, October 29, 2019

समीक्षा “तीन अध्याय-कथा संग्रह” समीक्षक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति
अदबी दुनिया में साधना वैद अब तक ऐसा नाम था जो काव्य के लिए ही जाना जाता था। किन्तु हाल ही में इनका कथा संग्रह “तीन अध्याय” और बाल कथा संग्र “एक फुट के मजनूँमियाँ” प्रकाशित हुआ तो लगा कि ये न केवल एक कवयित्री है अपितु एक सफल कथाकारा और गद्य लेखिका भी हैं।
एक सौ बीस पृष्ट के इस कहानी संग्रह में कुल 24 कहानियाँ हैं। जिसका मूल्य 400 रुपये मात्र है। जिसे “निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स” आगरा से प्रकाशित किया है। लगभग एक महीने से यह संग्रह मेरे पास समीक्षा की कतार में था। आज समय मिला तो “तीन अध्याय” के बारे में कुछ शब्द लिख रहा हूँ।
साहित्य की दो विधाएँ हैं गद्य और पद्य, जो साहित्यकार की देन होती हैं और वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती हैं। कथाकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ प्रेरणा देने का प्रयास किया है। “तीन अध्याय” भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो साधना वैद की कलम से निकला है। इस कथा संग्रह के शीर्षक की सार्थकता के बारे में स्वयं लेखिका ने ही अपने समर्पण में स्पष्ट कर दिया है-
“मेरा मानना है कि हर नारी को अपने जीवन काल में तीन अध्यायों से अवश्यमभावी रूप से गुजरना पड़ता है...”
मैं लेखिका के कथ्य को और अधिक स्पष्ट करते हुए यह कहूँगा कि नारी ही नहीं अपितु समस्त चराचर जगत को जीवन के तीन अध्यायों (बचपन-यौवन और वृद्धावस्था) से रूबरू होना पड़ता है। “तीन अध्याय” संग्रह में लेखिका ने अपनी चौबीस कहानियों में जन जीवन से जुड़ी कड़ियों को कथाओं का रूप दिया है।
--
लेखिका ने अपने कथा संग्रह का श्री गणेश “जमाना बदल गया है” की कहानी से किया है जिसमें प्रचीन और अर्वाचीन का तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत किया है। जिसमें सभी कुछ तो वही पहले जैसा है मगर उसका रूप बदल गया है जिसमें पहले जैसी आत्मीयता नहीं है। वैभव का दिखावा अधिक है और अपनापन और प्यार कहीं खो गया है।
--
संकलन की दूसरी कथा “सुनती हो शुभ्रा” पुरुष प्रधान समाज में एक महिला को महिला होने का आभास कराया गया है। जिसमें गृहणी पर ही सारे काम की जिम्मेदारी का बोझ लाद दिया जाता है।
--
“तीन अध्याय” कथा संग्रह में “नई फ्रॉक” एक निम्न वर्ग के लोगों की जिन्दगी की मार्मिक कहानी है। जो सीधे मन पर असर करती है।
--
इस संग्रह में एक और कथा “फैशनपरस्त” के नाम से एक कामवाली की कथा है। जो हमारे समाज की विडम्बना को दर्शाती है। जिसके पास अपने वेतन से नये कपड़े खरीदने की हैसियत नहीं है। वह जिन घरों में काम करती है वहाँ से ही कभी-कभार कुछ पुराने कपड़े मिल जाते हैं। मगर जब वह उनको पहनती है तो उसे फैसनपरस्त होने के उलाहने मिलते हैं।
--
“अनाथ-सनाथ” नामक कथा में कथा लेखिका साधना वैद ने नन्हीं दिशा के उसकी दादी के प्रति निश्छल प्यार की कहानी है। जिसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। देखिए इस कथा का उपसंहार-
“...आतंकित दिशा आज एक बार फिर अनाथ हुई जा रही थी।
इस बार अनाथाश्रम की जगह वह होस्टल भेजी जा रही थी,
नितान्त अपरिचित और अनजान लोगों के बीच।“
हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कहानीकार साधना वैद ने बाखूबी अपनी लेखनी से चित्रित किया है। कहानी के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर कथा शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी लेखिका ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है।
कुल मिलाकर देखा जाये तो इस कथा संग्रह की सभी कहानी बहुत मार्मिक और पठनीय है। यह श्लाघा नहीं किन्तु हकीकत है और मैं बस इतना ही कह सकता हूँ कि यह कथायें कथा जगत में मील का पत्थर साबित होंगी।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “तीन अध्याय” की कहानियाँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
--

आपका  हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

साधना वैद

4 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आपका बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

      Delete
  2. बहुत सुंदर समीक्षा ...
    बहुत बधाई हो आपको साधना जी ...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर समीक्षा |बहुत बहुत बधाई साधना |

    ReplyDelete