मेरा यात्रा वृत्तांत द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ा जा रहा है ! देखिये ना चौथे भाग पर आ गयी हूँ लेकिन अभी ताशकंद पहुँचने के बाद पहले दिन की शाम भी पूरी तरह से सुरमई नहीं हुई है ! क्या करूँ वहाँ इतना कुछ है बहुत ही खूबसूरत, देखा हुआ, समझा हुआ, सराहा हुआ कि समझ में ही नहीं आता मन में संचित किन स्मृतियों का सम्पादन करके उन्हें छोटा कर दूँ, किन्हें मिटा दूँ और किन्हें सेव करके सुरक्षित कर लूँ ! सच कहूँ तो ताशकंद शहर मेरी कल्पनाओं और प्रत्याशाओं से कहीं अधिक सुन्दर, आधुनिक, और शानदार निकला इसलिए मेरी प्रसन्नता अपने चरम पर थी ! अमेरिका और यूरोप के कई बड़े बड़े शहर देख कर भी ऐसी अनुभूति शायद इसलिए नहीं हुई थी कि वे इतने भव्य और आलीशान तो होंगे ही यह धारणा मन में कहीं अपनी जड़ें मजबूती से जमाये हुए थी ! ताशकंद लेकिन निश्चित तौर पर आशातीत निकला !
तो चलिए ताशकंद की सैर पर चलते हैं आगे ! संध्या हो चली थी ! व्हाईट मॉस्क देखने के बाद हम देखने गये ‘मोनुमेंट ऑफ़ करेज’ ! २६ अप्रेल १९६६ को ताशकंद शहर में रिक्टर स्केल पर ८.३ की तीव्रता से बहुत ही ज़बरदस्त भूकंप आया जिसका केंद्र ज़मीन के १० किलो मीटर्स अन्दर ठीक इसी स्थान के नीचे था जहाँ पर यह स्मारक बना हुआ है ! यह भूकंप इतना तीव्र था कि आधे से अधिक ताशकंदवासी बेघर हो गए और शहर पूरी तरह से तबाह हो गया ! मोनुमेंट ऑफ़ करेज के बहुत विशाल परिसर में एक बड़ी सी काली चट्टान पर एक स्त्री पुरुष और छोटे से एक बच्चे की बहुत ही भव्य मूर्ति बनी हुई है ! परिवार का मुखिया पुरुष अपने परिवार को हर विपदा से बचाने की मुद्रा में है ! वह अपने सीने पर प्रकृति का हर वार सहने के लिए तत्पर है ! उसके पीछे उसकी पत्नी है जिसकी पीठ पर एक नन्हा शिशु सवार है ! माँ अपने बच्चे को सुरक्षा देने के लिए चिंताग्रस्त है ! पत्थर से बनी इन मूर्तियों के चहरे पर जो भाव उकेरे गए हैं वे हृदय पर अमिट प्रभाव अंकित कर जाते हैं और उस दंपत्ति के लिए घनघोर पीड़ा मन में जागृत हो जाती है ! स्टेचू के सामने काले ग्रेनाईट का एक पत्थर है जिस पर एक तरफ भूकंप की तारीख २६ अप्रेल १९६६ अंकित है और एक तरफ घड़ी बनी हुई है जिस पर सुबह के पाँच बज कर २४ मिनट का समय अंकित है जिस समय यह भूकंप आया था ! पत्थर बीच में से चटका हुआ है जो भूकंप के कारण फटी हुई धरती का प्रतीक है ! यह बहुत ही सुन्दर स्थान है और उस वक्त यहाँ कई स्थानीय निवासी और उनके बच्चे सैर के लिए आये हुए थे ! एक युवा सी दिखने वाली स्थानीय महिला के साथ मेरा मुस्कराहट का आदान प्रदान हुआ ! मैं पहले भी बता चुकी हूँ कि वहाँ के लोग बहुत ही हँसमुख और मिलनसार हैं ! वे बहुत जल्दी हम लोगों के साथ घुलमिल जाते थे ! स्टेचू के नीचे दो छोटे छोटे बच्चे खेल रहे थे ! एक नौजवान उन बच्चों की देख रेख कर रहा था और उनको खेल खिला रहा था ! मैंने ऐसे ही उस महिला से पूछ लिया आपकी बेटियाँ है ? उसने बताया एक उसकी पोती है और दूसरी बच्ची पोती की सहेली है ! और जो नौजवान उन बच्चों को खिला रहा था वह उस महिला का बेटा था ! उस नौजवान सी दिखने वाली महिला को देख कर बिलकुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसका इतना बड़ा बेटा और पोते पोतियाँ होंगे ! बहुत खुशी हुई देख कर कि ताशकंद में लोग अपने स्वास्थ्य और रख रखाव के लिए इतने जागरूक हैं !
‘मोनुमेंट ऑफ़ करेज’ देखने के बाद हम एक और बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान देखने गए जिसका नाम है ‘इंडीपेंडेंस स्क्वेयर’ जिसे ‘मुस्तकलिक स्क्वेयर’ के नाम से भी जाना जाता है ! यह ताशकंद शहर के केंद्र में बना हुआ है ! यहाँ आते आते शाम गहराने लगी थी ! बहुत विशाल परिसर में यह स्थान स्थित है ! बड़े लम्बे लम्बे गलियारे ! चारों तरफ घनी हरियाली और खूबसूरत पेड़ ! गार्डन में दूब और पेड़ पौधों को पानी से सींचने के लिए जगह जगह चलते स्प्रिन्कलर्स और शीतल जल की सुहानी फुहार के मदमस्त झोंके ! सब कुछ बहुत भला लग रहा था ! सैर के लिए ताशकंद वासियों का यह सबसे पसंदीदा स्थान है ! यहाँ बहुत ही खूबसूरत फव्वारे हर वक्त चलते रहते हैं जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं !
यहाँ पर उज्बेकिस्तान की सीनेट का बहुत सुन्दर भवन है और उसके आस पास सभी महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तर भी हैं ! सारे सरकारी समारोह यहाँ आयोजित किये जाते हैं ! रूसी शासन काल में यहाँ लेनिन की मूर्ति लगी हुई थी और इस स्थान का नाम लेनिन स्क्वेयर था लेकिन सन १९९१ में जब उज्बेकिस्तान स्वतंत्र हो गया तो सन १९९२ में लेनिन की मूर्ति हटा कर यहाँ एक गोल्डन ग्लोब स्थापित किया गया जिसमें उज्बेकिस्तान का नक्शा उकेरा गया है ! इसी स्तम्भ पर एक प्रसन्न वदन स्त्री की मूर्ति बनी हुई है जिसकी गोद में एक बच्चा है ! यह स्त्री सुखी मातृभूमि की और बच्चा देश के भविष्य का प्रतीक है ! ९ मई और नए साल पर यहाँ फूल अर्पित करने की प्रथा है जिसके लिए सभी ताशकंद वासी नियम से यहाँ आते हैं !
इंडीपेंडेंस स्क्वेयर के पास जो पार्क है वह बहुत ही खूबसूरत है और देखने लायक है ! पार्क के केंद्र में व्यथित मातृभूमि की एक बहुत ही भव्य प्रतिमा रखी हुई है जो बहुत उदास है और उसकी आँखों में आँसू भरे हुए हैं ! यह उदास माँ अपने उन बहादुर बेटों का इंतज़ार कर रही है जो देश की खातिर अपनी जान कुर्बान करने गए थे और फिर लौट कर नहीं आये ! युद्ध भूमि से लौट कर आने वाले सैनिकों को राह दिखाने के लिए इस स्थान पर नीचे शाश्वत आग जलती रहती है ! यह स्मारक उन बहादुर सैनिकों की याद में बनाया गया है जो दूसरे विश्व युद्ध में अपने देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए ! हमारे गाइड ने हमें बताया कि उन दिनों उज्बेकिस्तान की आबादी बहुत कम थी ! और उनमें से भी छ: लाख सैनिकों को युद्ध में लड़ने के लिए भेजा दिया गया ! जिनमें से केवल दो लाख सैनिक ही लौट कर आये ! इस पार्क के एक बरामदे में धातु से निर्मित अनेकों बड़ी बड़ी किताबें दीवारों पर लटकाई गयी हैं जिनमें उन सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं जो अपने देश के लिए शहीद हो गए और लौट कर नहीं आये ! बहुत ही भावुक कर देने वाला प्रसंग था ! भरे मन से हम वहाँ से लौटे !
हमारा उस दिन का आख़िरी पड़ाव आमिर तैमूर स्क्वेयर था ! यहाँ आमिर तैमूर की घोड़े पर सवार बहुत ही भव्य प्रतिमा बनी हुई है ! ताशकंद का यह केन्द्रीय स्थल है ! हमारा होटल ग्रैंड प्लाज़ा, होटल उज्बेकिस्तान सब इसीके आस पास ही हैं ! कहीं भी जाना हो तो इस स्क्वेयर से गुज़रना लाजिमी होता था ! सुबह से कई बार इसे देखा था इसलिए रात को वहाँ बस से उतरे नहीं ! रात के भोजन का समय भी हो रहा था ! सुबह समरकंद के लिए भी निकलना था ! इसलिए यही तय हुआ कि खाना खाकर ही होटल जाया जाए ताकि समय से सब सो सकें और सुबह की यात्रा के लिए तरोताज़ा उठ सकें !
रात का खाना खाने जिस होटल में गए वहाँ पहुँचते ही कई प्रकार की ड्रिंक्स और कोल्ड ड्रिंक्स के साथ कुछ स्नैक्स भी सर्व किये गए ! दिन भर घूम घूम कर थक भी चुके थे और भूख भी लग आई थी !
गरमागरम स्नैक्स बड़े स्वादिष्ट लग रहे थे ! हमारे ग्रुप का वेजीटेरियन खाना बनने में शायद देर थी ! होटल में आने वाले शाम के नियमित ग्राहकों की संख्या बढ़ती जा रही थी ! बाहर हॉल में बार बालाओं का डांस आरम्भ हो चुका था ! वहाँ काफी लोग थे ! होटल का स्टाफ उन्हें भोजन सर्व करने में व्यस्त था ! हमारा काम तो उन स्नैक्स से ही चल गया था ! जिन्हें ज़रुरत थी उन्होंने हॉल के खाने से ही निरामिष भोजन चुन कर अपना काम चला लिया ! सब थके हुए थे और जल्दी सोना चाहते थे ! सबको सुबह का इंतज़ार था ! सुबह ठीक सात बजे समरकंद जाने के लिए बुलेट ट्रेन में सवार हो जाना था ! उससे पहले नहा धोकर तैयार भी होना था और नाश्ता भी कर लेना था !
होटल पहुँच कर जल्दी ही सो गए हम भी ! संस्मरण लिखते लिखते बहुत रात हो गयी है यहाँ भी ! अब मैं भी सोने जाती हूँ ! आपके साथ हमारी अगली मुलाकात होगी समरकंद के संस्मरणों के साथ ! तब तक के लिए आज्ञा दें ! नमस्कार !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को "आज रामजी लौटे हैं घर" (चर्चा अंक- 3515) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ रवीन्द्र जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सादर वन्दे !
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