काम अनगिनत अभी पड़े हैं
रस्ते में अवरोध खड़े हैं
हैं चिंताएं अभी अनंत
अभी न होगा मेरा अंत !
किसे सौंप दूँ फिक्रें सारी
किस पर लादूँ गठरी भारी
किसे पुकारूँ मेरे कन्त
अभी न होगा मेरा अंत !
जीवन जकड़ा है उलझन में
व्याकुलता उमड़ी है मन में
नैनन नीर बहे बेअंत
अभी न होगा मेरा अंत !
हर कर्तव्य निभाना होगा
हर दायित्व उठाना होगा
पतझड़ हो कि या हो बसंत
अभी न होगा मेरा अंत !
भाग नहीं सकता मैं वन में
नहीं मिलेगी मुक्ति भजन में
ना मैं साधू ना हूँ संत
अभी न होगा मेरा अंत !
बदलूँगा किस्मत की भाषा
पूरी होगी हर प्रत्याशा
मुझमें अभी हौसला बुलंद
अभी न होगा मेरा अंत !
साधना वैद
सुंदर प्रेरक रचना है आदरणीया साधना दीदी
ReplyDeleteव्वाहहह..
ReplyDeleteसादर नमन..
हृदय से धन्यवाद दिग्विजय जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 03 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteजनाब मिर्जा गालिब का शेर है कि
ReplyDeleteरंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
ऐसी ही आपकी कविता बोलती है।
कमाल है।
आपकी लेखनी को नमन।
हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी ! कविता आपको अच्छी लगी जान कर हर्ष हुआ ! दिल से आभार आपका !
Deleteवाह बहुत सुन्दर प्रेरक रचना दी 👏👏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी !
Deleteबदलूंगा किस्मत की परिभाषा
ReplyDeleteपूरी होगी हर प्रत्याशा
मुझमें अभी हौसला बुलंद... सकारत्मक प्रेरित करती रचना
हार्दिक धन्यवाद ऋतु जी ! आभार आपका !
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ReplyDeleteबहुत खूब ,लाज़बाब सृजन दी ,सादर नमस्कार आपको
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !
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