बचपन में जब लिखना सीख रही थी
स्लेट पर बत्ती से जाने क्या-क्या
उल्टा सीधा लिखती थी
फिर उन विचित्र अक्षरों और
टेढ़ी मेढ़ी आकृतियों को देख
खूब जी खोल कर हँसती थी !
अपना ही लिखा जाने कितनी बार
मिटाया करती थी
फिर गीले कपड़े से पोंछ कर स्लेट को
खूब चमकाया करती थी !
नए सिरे से जमा-जमा कर
सुन्दर अक्षरों में फिर से कुछ
नया लिख देती थी
और अपनी अनगढ़ अधकचरी
कलाकृतियों को देख खुद ही
खूब खुश हो लेती थी !
कुछ बड़ी हुई तो कॉपी पर
पेन्सिल से लिखना शुरू हुआ
बार-बार गलत लिखा मिटाने से
जर्जर होते पन्नों की दशा देख
मलिन मन होने का
सिलसिला शुरू हुआ !
उस पन्ने पर कुछ भी दोबारा
लिखना मुश्किल हो जाता
बार-बार कोशिश करने से
पन्ना ही बिलकुल फट जाता !
धीरे-धीरे समझ में आ गया
गलतियों को दोहराने की
उम्र अब बीती जा रही है
सुलेख लिखना अब आसान नहीं रहा
भूल सुधार की गुंजाइश
कम होती जा रही है !
समय के साथ जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा
उम्र भी आगे बढ़ती रही
कल्पनाओं, सपनों, भावनाओं के
फलक को नापती टटोलती
दीवानगी भी साथ चलती रही !
स्लेट बत्ती, रबर पेन्सिल के
बचकाने खेल सब पीछे छूट गए
हाथों में आ गयी सुनहरी डायरी
खूबसूरत कलम और स्याही की दवात
जो पता नहीं कब और कैसे
दिनों का चैन और रातों की नींद
सब लूट ले गए !
अब वक्त के सफों पर गहरी स्याही से
जो तहरीरें लिखनी होतीं उनका
पाबंदी के साथ एक ही बार में
सत्य शिव और सुन्दर होना
परम आवश्यक हो गया !
असावधानीवश कुछ भी लिख देना और
खाम खयाली में डूब पन्नों पर
कुछ भी उकेर देना जैसे
अब गुनाह सा हो गया !
लेकिन जैसा होना चाहिए
वैसा होता कहाँ है
जो लिख दिया सही गलत
वह मिटता कहाँ है !
ज़िंदगी की डायरी के हर पन्ने पर उकेरी हुई
जाने कितनी कटी पिटी लाइनें हैं,
जाने कितनी आधी अधूरी कवितायें हैं,
जाने कितने आधे अधूरे किस्से हैं
जो किसी अंजाम तक
या तो पहुँच ही नहीं पाए
या जहाँ पहुँच गए वहाँ से
यह जानते हुए भी कि
वो उनके मुकाम न थे
लौट नहीं पाए !
जो लिख गया सब गलत हो गया
सारा अर्थ का अनर्थ हो गया !
सोचती ही रह जाती हूँ
गहरी स्याही में लिखी इन
गलत सलत तहरीरों को मिटाने के लिए
कोई तो चमत्कारिक साबुन मिल जाए
कि यह सब धुल पुँछ कर
पहले सा नया हो जाए
या फिर किसी भी जतन से
मेरी डायरी का हर कटा पिटा शब्द
किसी जादू से छूमंतर हो जाए
प्रभु की मुझ पर
बस इतनी सी दया हो जाए !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteजिंदगी की डायरी भर जाना भी एक नयी मुकाम की ओर बढना है इसीलिए उसे मिटाने का कोई साबुन नहीं ताकि मुकाम जल्द हासिल हो...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर विचारोत्तेजक लाजवाब सृजन
वाह!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमन के उमड़ते भावों को बहुत ही संवेदशीलता से उकेरती रचना | डायरी यानी मन की कल्पनाओं और भावनाओं का एक अहम् दस्तावेज . जिसकी इबारत की गलतियाँ मिटाने के लिए कोई रबड़ नहीं बनी आज तक | लाजवाब रचना आदरणीय साधना जी |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ! सप्रेम वन्दे !
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