Friday, May 1, 2020

शोहरत का दर्द



जब नयी नयी शोहरत मिलती है,
प्रशंसकों की भीड़ घेरती है ,
लोग ऑटोग्राफ लेने के लिए
धक्कामुक्की करते हैं ,
दूर से देख कर ही लोग
खुशी के मारे पागल से हो जाते हैं
बड़ा अच्छा लगता है !
हम कुछ ख़ास हैं
लोगों की नज़रों में चढ़ चुके हैं
उनके दिल के बिलकुल पास हैं
यह अहसास अच्छा लगता है !  
लेकिन यही शोहरत जब
कुछ पुरानी हो जाती है
तो गले की फाँस बन जाती है  
हम कुलीन जनों के शिष्टाचार की
औपचारिकताओं में घिर जाते हैं,
हमारी मौज मस्ती के सारे रास्ते
बंद हो जाते हैं और हम
अपने सुरक्षाकर्मियों से घिरे
बेबस कैदी से बन कर रह जाते हैं !
अब हम मशहूर जो हो गए हैं
आम जन से ख़ास जन हो गए हैं
अब हम ठेल पर खड़े हो
मज़ेदार मिसल पाव नहीं खा सकते ,
ढाबे पर मिट्टी की हाँडी में पका सौंधा सौंधा
चने का साग मक्की की रोटी नहीं खा सकते,
समंदर के किनारे चना ज़ोर गरम और
चुस्की का लुत्फ़ नहीं उठा सकते,
लोकल ट्रेन में पायदान पर लटक
आम लोगों के साथ सफ़र नहीं कर सकते,
स्टेशन पर बर्फ का रंगीन गोला
चाट चाट कर नहीं खा सकते,
बारिश में बिना छाते के भीगते हुए   
बीच सड़क पर दौड़ नहीं लगा सकते
ठेले पर गुड़ अदरक की गरमागरम चाय
और टोस्ट का आनंद नहीं उठा सकते !
क्यों ?
क्योंकि अब हम मशहूर हो गए हैं
हमारी शोहरत आड़े आ जाती है
हम आम आदमी से ख़ास बन गए हैं
हमारी यही नामुराद खासियत
हमारी खुशियों के रास्ते में आ जाती है !
कोई ले लो यह शोहरत, ये नाम,
ये रुतबा, ये ऐशो आराम, ये पैसा
और बना दो मुझे एक गुमनाम
भीड़ का मामूली सा चेहरा,
और पूरी शिद्दत से जी लेने दो मुझे
ज़िंदगी का हर एक पल
कौन जाने ज़िंदगी का ये चमन
किसी दिन बन के रह जाए
एक तपता धधकता रेत का सेहरा !

साधना वैद



6 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !

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  2. वाह ब्लिकुल सही *शोहरत का दर्द *सटीक प्रस्तुति

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका ! बहुत बहुत आभार !

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  3. शोहरत का नशा ऐसा ही होता है ... चढ़ जाए तो बहुत कुछ खो भी जाता है ...
    शायद इसलिए बेलेंस बनाए रखना जरूरी है ...

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    1. जी बिलकुल सही कहा आपने नासवा जी ! हार्दिक आभार आपका !

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  4. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार एवं सप्रेम वन्दे प्रिय सखी !

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