Saturday, May 30, 2020

क्यों शलभ कुछ तो बता



क्यों शलभ कुछ तो बता,
पास जाकर दीप के क्या मिल गया
क्या यही था लक्ष्य तेरे प्रेम का
फूल सा नाज़ुक बदन यूँ जल गया !

क्यों शलभ कुछ तो बता,

लाज ना आई ज़रा भी दीप को
प्रेम के प्रतिदान में क्या फल दिया
तनिक भी ना कद्र की इस प्यार की
प्रेम की अवहेलना पर बल दिया !

क्यों शलभ कुछ तो बता,

एक दम्भी दीप के अनुराग में
क्यों भला उत्सर्ग यूँ जीवन किया
क्या मिला तुझको सिला बलिदान का
दीप की लौ का कहाँ कुछ भी गया !

बंधु तुम क्यों पूछते हो क्या मिला ?

ध्येय दीपक का बड़ा निष्पाप है
जगत से तम को मिटाना है उसे
अहर्निश जलती है बाती दीप की
पंथ आलोकित बनाना है उसे !

बंधु तुम क्यों पूछते हो क्या मिला ?

थी न मुझको लालसा प्रतिदान की
और थी ना भावना बलिदान की
मैं तो केवल एक आहुति ही बना
यज्ञ में बाती के अनुष्ठान की !

बंधु तुम क्यों पूछते हो क्या मिला ?

अलौकिक आनंद है उत्सर्ग में
जो प्रिया के वास्ते मैंने किया
पंथ को निष्कंट करने के लिए
तुच्छ यह तन ही तो बस मैंने दिया !



साधना वैद

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक।
    पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको भी अनंत शुभकामनाएं शास्त्री जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !

      Delete
  2. पंथ को निष्कंट करने के लिए
    तुच्छ यह तन ही तो बस मैंने दिया !

    अति सुंदर भावपूर्ण सृजन दी।
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद नीतीश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  4. हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना आपक साधना वैद जी👌👌।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार उर्मिला जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !

      Delete
  6. सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete