सदियों से प्रतीक्षा में रत
द्वार पर टिकी हुई
उसकी नज़रें
जम सी गयी हैं !
नहीं जानती उन्हें
किसका इंतज़ार है
और क्यों है
बस एक बेचैनी है
जो बर्दाश्त के बाहर है !
एक अकथनीय पीड़ा है
जो किसीके साथ
बाँटी नहीं जा सकती !
रोम रोम में बसी
एक बाँझ विवशता है
जिसका ना कोई निदान है
ना ही कोई समाधान !
बस एक वह है
एक अंतहीन इंतज़ार है
एक अलंघ्य दूरी है
जिसके इस पार वह है
लेकिन उस पार
कोई है या नहीं
वह तो
यह भी नहीं जानती !
वर्षों से इसी तरह
व्यर्थ, निष्फल, निष्प्रयोजन
प्रतीक्षा करते करते
वह स्वयं एक प्रतीक्षा
बन गयी है
एक ऐसी प्रतीक्षा
जिसका कोई प्रतिफल नहीं है !
साधना वैद !
हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteवाह बाँझ सी प्रतीक्षा . बहुत ही व्यंजनामय उपमा . बहुत गहरी कविता दीदी .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गिरिजा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteप्रतीक्षा तो अन्तहीन इन्तजार है।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत ही सुंदर और मार्मिक सृजन आदरणीय दीदी .
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत ही सुन्दर एवं मार्मिक सृजन....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विकास जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन और मार्मिक रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! हृदय से आभार आपका !
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