वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
अरे सुलू !
यहीं हुआ करता था न आशियाँ हमारा
आम के इस घने छायादार पेड़ के नीचे ?
कितने परिंदे चह्चहाते थे हरदम और
हमारी अनवरत बातों में
अपना भी मीठा सुर मिला कर
कोयल कितने मीठे सुर में गाती थी,
कच्ची अमिया का स्वाद चखने के लिए
कितने तोते झुण्ड बना कर आ जाते थे
और तुम सुलू !
कैसी ललचाई नज़रों से
गदराई अमिया को देख कर खीझती थीं
ये तोते चोंच मार कर सारी अमिया
ऊपर पेड़ पर ही खराब कर देते हैं
ये नहीं कि दो चार नीचे भी गिरा दें !
फिर मैं कभी गुलेल से ,कभी पत्थर से
तो कभी पेड़ पर चढ़ कर तुम्हारे लिए
झोली भर अमिया तोड़ दिया करता था !
आम का वह पेड़ कहाँ गया सुलू ?
विकास के नाम पर कट गया क्या ?
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
बताओ ना सुलू
छोटे छोटे क्वार्टर्स की लम्बी सी कतार में यहाँ
एक घर तुम्हारा भी तो हुआ करता था न
जिसके दरवाज़े पर आम के कोमल मुलायम
हरे हरे ताज़े पत्तो की सुन्दर सी वन्दनवार
तुम हर रोज़ अपने हाथों से लगाया करती थीं
और जिसके आँगन में बीचों बीच तुम हर सुबह
बहुत ही चिताकर्षक रंगोली बनाया करती थीं
रात को उस रंगोली पर ढेर सारे दीपक
जला कर तुम रख दिया करती थीं
जिसके प्रकाश में वह रंगोली और भी सुन्दर
और भी मनोहारी दिखने लगती थी !
घर की दहलीज पर पाँव रखने से पहले ही
तुम्हारे आँगन में खिले
तुम्हारे आँगन में खिले
मोगरा, बेला और गुलाबों की खुशबू
माँ की बनाई सौंधी रसोई की
खुशबू के साथ मिल कर
मुझे दीवाना बना दिया करती थी !
कहाँ गया वो स्वर्ग सा छोटा सा घर सुलू ?
यहाँ तो अब कई मंज़िला मॉल
आसमान से बातें कर रहा है !
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
बताओ ना सुलू
गहन अवसाद के पलों में
अपनी स्मृतियों में बसी जिन पनाहगाहों में
मैं पल भर के लिए सुकून ढूँढा लिया करता था
मेरी यादों के वो खूबसूरत आशियाने
किसने मिटा दिये सुलू ?
वो कभी शहर से गुज़रे तो पूछेंगे
यह ‘विकास’ है या ‘विनाश’?
तो मैं उन्हें क्या जवाब दूँगी ?
साधना वैद
ReplyDeleteसुप्रभात
सुन्दर और सटीक बयान करती रचना |
शुक्रिया जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका ! बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteविकास के नाम पर विनाश ही तो देख रही है आज की पीढ़ी, बहुत प्रभावशाली लेखन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteउम्दा लेखन , कल और आज के बीच हो रहे गैप को दर्शाती सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अपर्णा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteविकास के नाम पर पेड़ों का कटाव तो विनाश ही है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह!!!
हृदय से धन्यवाद एवं आभार आपका सुधा जी ! आपने मेरे दृष्टिकोण को सराहा समझा मेरा लिखना सार्थक हुआ !
DeleteNice
ReplyDeleteLoanonline24.com