Tuesday, July 7, 2020

बाशिंदे



हम तो बाशिंदे थे तेरे मोहल्ले के  
तूने मोहल्ला बदल लिया  
बता क्या करें हम !
हम बाशिंदे बने रहे तेरे शहर के 
तूने शहर ही छोड़ दिया 
बता क्या करें हम !
हमने तेरे दिल में रहना चाहा 
तूने दिल ही दे दिया किसी और को 
बता क्या करें हम !
अब बस इतनी सी इल्तिज़ा है 
बस जाने दे हमें इन आँखों में 
क़ुबूल है हमें तेरी आँखों में रहना भी 
और कोई ठिकाना भी तो नहीं  
बता क्या करें हम !
बना सकते थे बाशिंदा तुझे
हम अपनी ही आँखों का 
लेकिन फिर कैसे लगाते पाबंदी 
तेरी बेवफाई की फितरत पर !
रोना तो है हर हाल में हमें  
डरते हैं आँसुओं का सैलाब 
बहा न ले जाये तुझे 
इन नैनों की दहलीज से बाहर !
हाँ ; तेरी आँखें कभी नम न होंगी 
तो हमारा आवास भी न बदलेगा 
इसका पूरा भरोसा है हमें ! 


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

7 comments:

  1. हकीकत बयान करती रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार !

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  3. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !

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  4. बहुत मुश्किल है संवेदनशील लोगों के लिये कि जरा सी जगह चाहते हैं पर वह भी नहीं मिलती . अपनी पलकों में जगह देना चाहते हैं पर वहाँ भी आँसुओं की समय्या है ...फिर क्या करें ...अुनत्तरित प्रश्न उठाती सुन्दर कविता दीदी

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