Sunday, August 23, 2020

अतिक्रमण हटा


 बेघर पंछी

अतिक्रमण हटा

पेड़ है कटा

 

सड़क चौड़ी

आवागमन बढ़ा

सुकून घटा

 

क्रूर मानव

हृदयहीन सोच

पंछी हैरान !

  

क्या मिला तुझे

उजाड़ मेरा घर

स्वार्थी इंसान 

  

व्यर्थ हो गयी

लंबी संघर्ष यात्रा

एक पल में 

 

प्यारा घोंसला

मेहनत से बना

गिरा जल में

 

शिखर पर

संवेदनहीनता

मौन ईश्वर

 

किसे सुनाएँ

दास्ताने दर्द यहाँ

प्राणी पत्थर

  

पीर हमारी

किसीने कब जानी

बड़ी हैरानी

 

जान न सका

परेशानी हमारी

ये क्षुद्र प्राणी

 

कैसे बसाऊँ

फिर अपना घर

   थके पंखों से !  


कोई तो ला दे

दाने तिनके चाहे

मेरे पंखों से


किसी का दोष

भुगतता निर्दोष

पंछी बेचारा

 

किसी का पाप

खामियाजा भरता

ये बेसहारा

 

क्यों काटे वृक्ष  

हुई वायु अशुद्ध

   पेड़ क्या लेते   

 

ये तो केवल

 जीवन रक्षक हैं

 छाया हैं देते

 

 

 

साधना वैद 

 


8 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !

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  3. बहुत सुन्दर और मार्मिक हाइकु।

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  4. सुन्दर और मार्मिक

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  5. कमाल के हाइकू ... मौसम, पंछियों का दर्द समेटे ...
    लाजवाब ...

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी ! आभार आपका !

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