Thursday, September 3, 2020

ज़रा सुनिए

Reinsurance in India: all that glitters is not gold 


न न.. उधर मत जाइए

मेरे अंतरमहल के उस कोने में 

आप जैसे सम्मानित लोगों के लिए जाना

पूर्णत: निषिद्ध है !

दरअसल वहाँ आपके मनोरंजन के लिए

कोई साधन उपलब्ध नहीं है !

वहाँ तो बस एक गोदाम है

जिनमें कुछ जर्जर दस्तावेज़ रखे हुए हैं

जिनमें हिसाब किताब लिखा हुआ है

उन चोटों का, उन घावों का,

उन ज़ख्मों का, उन प्रहारों का

जो कभी परिवार ने, कभी समाज ने

तो कभी नियति ने मुझे पहुँचाए हैं

सिर्फ इसलिए कि मैं एक लड़की हूँ !

जब पैदा हुई तब दादी के उदगार थे

“कौन पाप किये थे री बहुरिया

जो इतनी भारी बोझ की गठरी

उठा लाई अस्पताल से ?

अब भुगतो जनम भर !”

“बेटी तुझे पढ़ाना तो चाहते हैं

लेकिन पैसे मेरे पास उतने ही हैं कि

एक ही बच्चे की फीस भर सकूँगा !

तुझे तो तेरा पति भी पढ़ा लेगा

अगर चाहेगा तो ,

लेकिन तेरे भाई को अगर मैं न पढ़ाऊँगा

तो कौन पढ़ायेगा !”

“हमारे घर में बहुएँ स्कूल कॉलेज नहीं जातीं

तुम घर से बाहर जाओगी तो

घर के बाकी लोगों की सुख सुविधा का

ख़याल कौन रखेगा, हमारी सेवा कौन करेगा,

घर के सारे काम कौन करेगा ?”

अरे छोड़िये ये ना सारे झमेले !  

आप इधर आइये ना !

यहाँ है आपके स्वागत का पूरा प्रबंध !

आइये विराजिये महानुभाव

आपकी अभ्यर्थना में बनी

इस सुन्दर अल्पना को निहारते हुए

प्रवेश करिए मेरे घर में !

बिजली की खूबसूरत झालरों से, 

आलीशान झाड़ फानूसों से

बड़े ही कलात्मक और सुरुचिपूर्ण तरीके से

सजाया गया है यह स्वागत कक्ष

आप जैसे अतिथियों के लिए !

मेरे जीवन की सारी सुन्दर तस्वीरें

इसमें दीवारों पर लगी हैं

जिनके बदरंग बदनुमाँ दाग़ धब्बों को

बड़े जतन से नये रंगों और कूँची से

सँवार दिया गया है !

गालों पर बहते आँसुओं को मिटा

सुर्ख रंग से सजा कर मुस्कराहट का

मुलम्मा चढ़ा दिया गया है !

मेरी कई सारी उपलब्धियाँ करीने से

मेंटल पीस पर सजी हैं जो

कौड़ियों के मोल कबाड़ी बाज़ार में

मिल जाया करती हैं !

आखिर स्वयं को आधुनिक और

प्रगतिशील दिखाने के लिये

इतनी कीमत तो चुकाई ही जा सकती है !

इतना भी न करेंगे तो

पत्रकारों के सवालों का जवाब क्या देंगे  

और चुनाव में इन्हें वोट कौन देगा ?

और चुनाव है तो अर्धांगिनी होने के नाते

हर जगह, हर मंच पर

हमारा साथ में घिसटना तो तय है ना !

कैसे जानेंगे ये कि हर वो चीज़ 

जो चमकती है सोना नहीं होती !

 

साधना वैद

 

 


16 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 04-09-2020) को "पहले खुद सागर बन जाओ!" (चर्चा अंक-3814) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. वाह।नारी की अवहेलना और दुर्दशा को उजागर करती अप्रतीम रचना सखी।बहुत-बहुत बधाई।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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    1. सराहना भरे उत्साहवर्धक शब्दों के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  4. आदरणीया साधना वैद्य जी, नारी की अस्मिता को उजागर करती सुंदर रचना !--ब्रजेन्द्रनाथ

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    1. हार्दिक धन्यवाद मर्मज्ञ जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. सब झेला है, लड़ के पढ़ी और लड़ के बढ़ी। अब ऐसी कविताएँ मुझे अच्छी नहीं लगती दीदी....शायद ये शब्दचित्र उन जख्मों को हरा कर देते हैं। धृष्टता के लिए क्षमा चाहती हूँ। बहुत सारा स्नेह आपके लिए....

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    1. नमस्कार मीना जी ! खेद है मेरी रचना ने आपको पीड़ा पहुँचाई ! नहीं समझ पा रही इसे अपने लेखन की सफलता मानूँ या विफलता ! लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहती हूँ अपने ज़ख्मों को मशाल बना कर ही हम औरों की अंधेरी राहें प्रकाशित कर सकते हैं ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! संघर्ष करके जो जीत जाते हैं जगत में सबके लिए मिसाल बन जाते हैं ! सप्रेम वन्दे !

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    2. सफलता ही मानिए दी। यदि कोई पाठक रचना से खुद को जोड़ पाता है तो यह रचनाकार की सफलता ही हुई। सादर अभिवादन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद राकेश जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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  7. मार्मिक एवं वेदनाओं से भरी रचना में मेरी संवेदना भी संलग्न है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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