Thursday, October 22, 2020

राम ने कहा था



    

हे पति अनुगामिनी सीता, हे परम आदर्श सहधर्मिणी !
संसार के हर अर्थ में सर्वोच्च पति परायणा पत्नी सिद्ध होने के बाद भी क्या बताओगी कि अशोक वाटिका से मुक्त होने के बाद अपने निष्कलुष चरित्र पर लोगों के घिनौने आक्षेप तुमने क्यों सहे? अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिये तुमने अपमानजनक अग्नि परीक्षा देने का प्रस्ताव क्यों स्वीकार किया?

शांत और संयत सीता का उत्तर -“राम ने कहा था !”

अच्छा तो क्या तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारे आत्म नियंत्रण, तुम्हारी आस्था, तुम्हारे आत्म समर्पण, तुम्हारे चरित्र, तुम्हारे पातिव्रत धर्म किसी पर भी तुम्हारे पति मर्यादा पुरुषोत्तम राम को तनिक भी विश्वास न था जो अग्नि परीक्षा के लिए धधकते अंगारों पर चलने के लिए तुम्हें विवश करते हुए उन्हें तनिक भी दुःख न हुआ? चलो मान लेते हैं ! शत्रु के उद्द्यान में इतने दिनों अपहृत होने के बाद एक बंदिनी की तरह रहने के कारण और अन्य सभी उपस्थित समाज के गणमान्य व्यक्तियों की शंका के निवारण हेतु राम ने एक बार तुम्हारी अग्नि परीक्षा ले ली और तुम्हारी पवित्रता को सिद्ध कर तुम्हें अपने साथ अयोध्या ले जाने का मार्ग भी प्रशस्त कर लिया ! अत्यंत त्रासदायक यह समस्त प्रक्रिया व्यर्थ ही सही लेकिन इससे कम से कम तुम्हारी शुचिता तुम्हारी निष्कलंकता तो सिद्ध हो गयी इतनी बात तो समझ में आती है ! लेकिन एक नितांत अनपढ़, असंवेदनशील और मूढ़ मति धोबी की बात पर विचलित हो उन्होंने बिना विचारे तुम्हारा परित्याग कर छल के साथ जो तुम्हें वन में भेज दिया उस बारे में तुम क्या कहोगी ? तुम उस समय गर्भवती थीं उन्होंने इसका भी विचार नहीं किया ? तुम्हारे मर्यादा पुरुषोत्तम पति, भक्त वत्सल एवं प्रजा प्रेमी श्रीराम इतने कच्चे कानों के निकले कि कायरों की तरह वे स्वयं महल में कपाट बंद कर बैठे रहे और तुम्हें दर दर की ठोकरें खाने के लिए और वन के हिंसक जानवरों के बीच उनका निवाला बन जाने के लिए छोड़ आने का आदेश उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को दे दिया ? क्या श्रीराम का यह आचरण पुरुषोचित था ? क्या प्रजा के प्रति ही उनका कर्तव्य था पत्नी के लिए उनका कोई दायित्व नहीं था ? बोलो सीता तुमने इसका प्रतिकार क्यों नहीं किया ? क्यों तुम बिना कोई प्रतिवाद किये बिना कोई सवाल किये लक्ष्मण के साथ वन में चली गयीं ?” 

अधीर और विचलित सीता का उत्तर – “राम ने कहा था !”

चलो यह अत्यंत क्षीण सा तर्क भी मान लेते हैं कि एक राजा को अपनी प्रजा की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है ! राजा बनने के बाद उसका निजी जीवन, इच्छाएं, अपेक्षाएं गौण हो जाते हैं और उसका सम्पूर्ण जीवन अपनी प्रजा और समाज के लिए ही पूरी तरह से समर्पित हो जाता है लेकिन वर्षों अपना जीवन वन में अत्यंत विषम परिस्थितियों में बिताने के बाद जब तुम्हारे पुत्रों लव और कुश को उनके पिता का परिचय मिला और उन्हें पता चला कि वे आश्रम में रहने वाले अकिंचन ऋषिकुमार नहीं है वरन अयोध्या के राजवंश के कुलदीपक हैं और तुम एक साधारण स्त्री नहीं वरन अयोध्या की महारानी सीता हो तथा अयोध्या के राजमहल में तुम्हारा सम्मान और स्थान अभी भी सुरक्षित है फिर तुम्हें धरती माता की गोद में समा जाने की आवश्यक्ता क्यों पड़ गयी ? बोलो सीता ! यह समय तो तुम्हारे सभी दुखों के अंत का था ! तुम्हें तुम्हारा पति, बच्चों को उनका पिता और राजा राम को उनका बिछड़ा हुआ परिवार मिल रहा था ! फिर ऐसा क्यों हुआ कि राम को फिर से तुम्हारी शुचिता तुम्हारी पवित्रता की परीक्षा लेने की आवश्यक्ता हुई और एक बार फिर अपनी असहिष्णुता और असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए मूढ़ प्रजा के तर्कहीन लांछनों को महत्त्व दे उन्होंने पुन: तुम्हें अस्वीकार कर दिया ? बोलो सीता तुमने माता धरती का आह्वान क्यों किया था ?”

व्याकुल और विह्वल सीता का उत्तर – “राम ने कहा था !“

जानती हो सीता इस तरह आँख मूँद कर पति की हर सही गलत बात का अनुसरण कर तुमने नारी जाति के लिए कितनी मुश्किलें पैदा कर दी हैं ! आज भी हर पुरुष स्वयं को राम समझता है और अपनी पत्नी से अपेक्षा रखता है कि वह आँख मूँद कर सीता के अनुरूप आचरण करे और अपने साथ हुए हर अन्याय, हर अपमान को चुपचाप बिना कोई प्रतिवाद किये, बिना कोई प्रतिकार किये उसी तरह सहन करती जाए जैसे तुमने जीवन भर किया था ! तुमने पति परायणता के नाम पर कायरता और भीरुता के ऐसे उदाहरण स्थापित कर दिए हैं कि इस परुष प्रधान समाज में नारी का स्थान अत्यंत शोचनीय हो गया है ! जो तुम्हें आदर्श मान तुम्हारे अनुरूप आचरण करे वह तो हर अन्याय, हर अपमान, हर आक्षेप सहने को उसी तरह विवश है ही जिस तरह तुमने किया है जीवन भर ! पर जो विरोध करे विद्रोह करे उसका परिणाम और भी भीषण होता है ! सीता आज की नारी शिक्षित होते हुए भी भ्रमित है कि वह तुम्हारे स्थापित किये आदर्शों को अपनाए या उन्हें सिरे से नकार दे क्योंकि परिणाम तो हर हाल में उसके विपरीत ही होंगे ! जानती हो सीता नारी का जीवन आज भी एक चिरंतन संघर्ष का पर्याय बन चुका है ! हर दिन हर लम्हा हर पल उसे स्वयं को स्थापित करने के लिए युद्धरत होना पड़ता है और हर पल अपनी पवित्रता अपनी शुचिता को बचाए रखने के लिए इस युग में भी भाँति भाँति के असुरों से जूझना पड़ता है ! काश सीता, राजा जनक की अत्यंत दुलारी विदुषी राजकुमारी एवं अयोध्या नरेश श्रीराम की सबल सशक्त महारानी होने के उपरान्त भी तुम इतनी अबला, इतनी अशक्त, इतनी कातर और इतनी निरीह न होतीं !

साधना वैद




6 comments:

  1. 'राम ने निष्कासित किया था', 'राम ने त्यागा था' राम ने ठुकराया था'

    लेकिन दिखावे को निर्वासित सीता की स्वर्ण-मूर्ति को अपने पार्श्व में स्थापित कर यज्ञ किया था.

    और अबोध सीता सब कुछ सह गयी क्यों कि - 'राम ने कहा था.'

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    1. इतनी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. बहुत सुन्दर और सटीक रचना

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  4. Replies
    1. हृदय से आभार आपका शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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