कितनी सुन्दर होती धरती, जो हम सब मिल जुल कर रहते
झरने गाते, बहती नदिया, दूर क्षितिज तक पंछी उड़ते
ना होता साम्राज्य दुखों का, ना धरती सीमा में बँटती
ना बजती रणभेरी रण की, ना धरती हिंसा से कँपती !
पर्वत करते नभ से बातें, जब जी चाहे वर्षा होती
सूखा कभी ना पड़ता जग में, फसल खेत में खूब उपजती
निर्मम मानव जब जंगल की, हरियाली पर टूट न पड़ता
भोले भाले वन जीवों के, जीवन पर संकट ना गढ़ता
जब सब प्राणी सुख से रहते, एक घाट पर पीते पानी
रामराज्य सा जीवन होता, बैर भाव की ख़तम कहानी
पंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं
पेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !
साधना वैद
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मित्र ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत....बहुत सुंदर भाव्यभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आभा जी ! स्वागत है आपका ! हृदय से आभार !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआदारणीया साधना वैद जी, नमस्ते👏! धरती और पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संदेश देती आपकी यह रचना बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteपंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं
पेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !
हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
हार्दिक धन्यवाद महोदय ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete