Saturday, November 21, 2020

तमाशबीन

 


सड़क पर भीड़ थी,

कोलाहल था, हलचल थी

आँखों के सामने

चलती बस से कूद कर

सड़क पर गिरी घायल लड़की की

तड़पती हुई देह थी !

यह दम तोड़ती लड़की

सड़क वाली भीड़ में

किसीकी बेटी, बहन, दोस्त, बीबी  

या परिचित नहीं थी

इसलिए उनके वास्ते वह

सिर्फ एक तमाशा थी 

और यह भीड़ थी तमाशबीन !

किसीने यह जानने की

कोशिश नहीं की लड़की

चलती बस से क्यों कूदी ?  

उसके कपड़े फटे क्यों थे ?

उसके हाथों पर और चहरे पर

खरोंचें क्यों थी ?

और इन जख्मों और खरोंचों का

ज़िम्मेदार कौन था ?  

हाँ उसके जिस्म पर

कहाँ कहाँ जख्म थे

इसे ज़रूर सब अपनी पैनी नज़रों से

ताड़ने की कोशिश कर रहे थे !

तमाशबीन अपनी नज़रों से ही

उसके शेष कपड़े फाड़ने में जुटे थे

और एक दूसरे को इशारों में

लड़की के बदन पर पड़े

जख्मों को दिखा रहे थे !

तभी सायरन बजाती आ गयी

पुलिस की गाड़ी !

तमाशबीनों की भीड़ छँटने लगी

पुलिस वालों के सवालों का जवाब

किसीके पास न था

अगर था भी तो कोई

देना नहीं चाहता था !

जब तक पुलिस नहीं आई

खूब आँखें सेक लीं !

पुलिस के आते ही 

तमाशा ख़त्म हुआ और

अपनी अपनी राह मुड़ गये

सारे तमाशबीन !


चित्र -- गूगल से साभार 


साधना वैद    

 

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 23 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. सत्य को उजागर करती सुंदर कृति..।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. बहुत खूब। सच्चाई यही है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद वीरेन्द्र जी ! आभार आपका !

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