पूजा जी ने पूछा एक सवाल
किसने कैसे मनाया अपना रविवार,
सुनाना चाहा जो हाले दिल तो
बन गयी यह कविता मज़ेदार !
दिन था रविवार
एक तो वैसे ही घर में रहती है
किस्म-किस्म के कामों की भरमार,
उस पर अगर बच्चों की छुट्टी हो तो
घर में माहौल ऐसा हो जाता है
जैसे चल रहा हो कोई
बड़ा सा उत्सव या त्यौहार !
तरह तरह की फरमाइशें
तरह तरह के इसरार,
एक खत्म हुई नहीं कि
दूसरी का इज़हार !
ऐसे में भला कौन निभा सकता है
रजाई से अपना प्यार,
उस पर आने जाने वालों का
तांता बेशुमार !
चेहरे पर कभी सच्ची तो कभी झूठी
मुस्कराहट लिये
हम करते रहे
सबका स्वागत हर बार,
खड़े रहे किचिन में
ड्यूटी पर झख मार
बनाते रहे और पीते पिलाते रहे
सबको चाय बार-बार !
और हसरत भरी निगाहों से
किचिन से ही निहारते रहे
अपनी प्यारी रजाई को मन मार,
जो सुबह एक बार तहाने के बाद
शाम होने तक खुली ही नहीं थी
एक भी बार !
याद आते हैं बचपन के
दिन वो सुहाने बार बार,
जब जाया करते थे स्कूल
और दिन भर रेडियो पर
नाटक, फ़रमाइशी गीत और साउड ट्रैक
सुन सुन कर मनाया करते थे
अपना इतवार !
बनवाया करते थे अपनी मम्मी से
गरमागरम चाय और पकौड़े
दौड़ाया करते थे नौकर को
हलवाई की दूकान से टिक्की समोसे
लाने,
होती थी खूब रौनक और पार्टी घर में
और आसमान तक ऊँची आवाज़ में
गाया करते थे फ़िल्मी तराने !
निभाते थे साथ दिन भर
रजाई और उपन्यासों का
नहीं होता था खौफ ज़माने का !
मनाते थे दिन भर इतवार की छुट्टी
न होती थी चिंता रसोई की
न झंझट झमेला था नोट कमाने का !
खो गए हैं वो प्यारे प्यारे दिन
अतीत की गहराइयों में,
अब न आता वैसा रविवार मज़ेदार
न अब है वो मज़ा ठन्डी ठन्डी सी
अनखुली रजाइयों में !
साधना वैद
वाह बहुत ही सुन्दर🌻
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteसचमुच वे कुछ दिन कितने सुंदर थे... ऐसे ही न जाने कितनों के अनुभव होंगे... आपने शब्द देकर अतीत में खो गए बालपन को आइस पाइस कर दिया.
ReplyDeleteवाह ! हार्दिक धन्यवाद प्रतुल जी ! आपको आज ब्लॉग पर देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअरे वाह।
ReplyDeleteरविवार को भी सार्थक कर दिया आपने तो अपनी रचना से।
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार ! आपबीती है यह बंधुवर ! रविवार इसी तरह से सार्थक होता हमारा !
Deleteखो गए हैं वो प्यारे प्यारे दिन
ReplyDeleteअतीत की गहराइयों में,
याद दिला दी आपने बीते दिनों की,मनभावन सृजन दी ,सादर नमन आपको
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! हृदय से आभार आपका !
Deleteबहुत खूब आदरणीय साधना जी | वो रविवार तो ना जाने कहाँ खो गए पर परिवार के लिए खुद को खटते देख कर माँ का संघर्ष समझ में आता है | भावपूर्ण शब्द चित्र जो मन को छु गया | सादर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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