Wednesday, May 5, 2021

शब्द बाण

 



कब तक इसी तरह
विष बुझे बाणों से
बींधते रहोगे तुम मुझे !
स्वर्ण मृगी बन कर
सनातन काल से
आखेट के लिये आतुर
तुम्हारे बाणों की
पिपासा बुझाने के लिये  
अपनी कमनीय काया पर
मैं अनगिनत प्रहारों को
झेलती आयी हूँ !
युग परिवर्तन के साथ
बाणों के रूप रंग
आकार प्रकार में भी
परिवर्तन आया है !
इस युग के बाण
पहले से स्थूल नहीं वरन
अति सूक्ष्म हो गये हैं !
इतने कि दिखाई भी नहीं देते !
अब ये धनुष की
प्रत्यंचा पर चढ़ा कर
नहीं चलाये जाते !  
ये चलते हैं
जिह्वा की कमान से
और जब चलते हैं
रक्त की एक बूँद भी
दिखाई नहीं देती
लेकिन मन प्राण आत्मा को
निमिष मात्र में घायल कर
निर्जीव बना जाते हैं !
प्रयोजन कुछ भी हो,
स्वार्थ किसी का भी
सिद्ध हो रहा हो
निमित्त नारी ही बनती है !
लेकिन अब अपने मन की
इस कोमल स्वर्ण मृगी की  
रक्षा करने के लिये
प्रतिकार में नारी ने भी
धनुष बाण उठा लिया है !
सावधान रहना
इस बार तुम्हारा सामना
अत्यंत सबल और प्रबल
शत्रु से है
जिसके पास हारने के लिये
कदाचित कुछ भी नहीं है
लेकिन जब वह
कुपित हो जाती है
तो उसका रौद्र रूप देख
देवता भी काँप जाते हैं
और पल भर में
चंडिका बन वह
असुरों का नाश कर  
समस्त विश्व को
भयहीन कर देती है !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद  


26 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3020...अपना ऑक्सीजन सिलिंडर साथ लाइए!) पर गुरुवार 6 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! बहुत बहुत आभार !

      Delete
  3. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

      Delete
  4. सही कहा आपने दीदी कि
    जब वह
    कुपित हो जाती है
    तो उसका रौद्र रूप देख
    देवता भी काँप जाते हैं
    परंतु कठिनाई तो यही है कि अपनी शक्ति पहचानने, कुपित होने और रौद्र रूप धारण करने में बड़ी देर लगा देती है नारी !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी ! नारी अपनी शक्ति को पहचान ले और सही वक्त पर उसका प्रयोग करे तो अनेकों समस्याओं का निराकरण हो सकता है लेकिन धरती की तरह सब कुछ सह लेने का उसका जज्बा उसे ऐसा करने से यथासंभव रोकता है और वह प्रताड़ित शोषित होती रहती है ! हार्दिक आभार आपका !

      Delete
  5. जी अद्भुत! वाकई वर्तमान में एक ही बाण और वह जिह्वा ही है....इसमें कोई संदेह नहीं। इस बाण से तो हम रोज ही घायल होते हैं....पर आपने सही कहा इसके सबसे अधिक पीड़िता स्त्री हैं।
    मैं आशा करता हूं कि आपके इस रचना से लोगों के विचारों में बदलाव आए। आपकी यह रचना वाकई बेहतरीन है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! मेरा लेखन आपको अच्छा लगा आपका बहुत बहुत आभार !

      Delete
  6. आदरणीया मैम, हर स्त्री अपने आप में माँ दुर्गा होती है, इसी सत्य को उभारते हुए और स्त्री पर अत्याचार करनेवाले को चेतावनी देती हुई बहुत ही सुंदर और सशक्त रचना के लिए हार्दिक आभार व प्रणाम ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनंता जी ! मेरी रचना आपको पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ !

      Delete
  7. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  8. सही कहा मैम आपने
    इस बार तुम्हारा सामना
    अत्यंत सबल और प्रबल
    शत्रु से है,
    जिसके पास हारने के लिए
    कदाचित कुछ नहीं है!
    बहुत ही प्रभावशाली रचना!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  9. बहुत अद्भुत रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रीती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  10. वाह ! नारी शक्ति को नमन, अब अपने सम्मान की रक्षा करना सीख लिया है नारी ने

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आशा की किरण कहीं तो उदित होती सी लगती है ! दिल से आभार आपका अनीता जी ! बहुत बहुत शुक्रिया !

      Delete
  11. स्वर्ण मृगी बन कर
    सनातन काल से
    आखेट के लिये आतुर
    तुम्हारे बाणों की
    पिपासा बुझाने के लिये
    अपनी कमनीय काया पर
    मैं अनगिनत प्रहारों को
    झेलती आयी हूँ !---स्वर्ण मृगी बन कर
    सनातन काल से
    आखेट के लिये आतुर
    तुम्हारे बाणों की
    पिपासा बुझाने के लिये
    अपनी कमनीय काया पर
    मैं अनगिनत प्रहारों को
    झेलती आयी हूँ !---बेहतरीन रचना---

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  12. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से धन्यवाद आपका आलोक जी ! बहुत बहुत आभार !

      Delete
  13. बहुत प्रभावशाली रचना, साधना दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ज्योति जी ! हृदय तल से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

      Delete
  14. अद्भुत रचना"जिह्वा के कमान से.....दिखाई नही देती" शानदार रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका स्वागत है इस ब्लॉग पर उर्मिला जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

      Delete