मत कुरेदो घाव मन के
फिर वही शिकवे गिले और चाँदमारी
हर समय ज़िल्लत सहें किस्मत हमारी
अब न बाकी ताब है जर्जर हृदय में
कह नहीं पायेंगे शब कैसे गुज़ारी !
बस तुम्हें तो दोष देना सोहता है
भूल कर भी फ़िक्र कब की है हमारी
हम अगर कहने पे कुछ जो आ गए तो
खामखाँ जग में हँसी होगी तुम्हारी !
इसलिए तुम मत कुरेदो घाव मन के
दर्द सहना बन चुकी आदत हमारी
तुम रहो खुशहाल अपनी ज़िंदगी में
रंजो गम से दोस्ती है अब हमारी !
साधना वैद
बहुत ही अच्छी शायरी की है आपने साधना जी। आपने अपने परिचय में न्यायप्रिय होने की बात कही है। इस ज़माने में किसी (सच्चे अर्थों में) न्यायप्रिय व्यक्ति का मिलना ही दुर्लभ है। ऐसे में आपकी न्यायप्रियता सत्य ही एक बड़ी उपलब्धि है, विरला गुण है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी ! न्यायप्रियता का गुण मुझे विरासत में मिला है ! मेरे पिताजी अत्यधिक अनुशासन प्रिय एवं कड़क न्यायाधीश के रूप में जाने जाते थे ! इसलिए न्यायप्रियता का यह गुण मेरे रक्त में सतत प्रवाहित है ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteमार्मिक सृजन - -
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद भारती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteभूल कर भी फ़िक्र कब की है हमारी
ReplyDeleteहम अगर कहने पे कुछ जो आ गए तो
खामखाँ जग में हँसी होगी तुम्हारी !
इसलिए तुम मत कुरेदो घाव मन के
दर्द सहना बन चुकी आदत हमारी
तुम रहो खुशहाल अपनी ज़िंदगी में
रंजो गम से दोस्ती है अब हमारी !
अत्यंत मार्मिक सृजन मैम!
आपको अच्छा लगा मेरा लिखना सार्थक हुआ ! हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteअब हमें तो आदत हो गयी है ,हमारी फिक्र छोड़ो । अपने में खुश रहो ।
ReplyDeleteमन के भावों को सुगढ़ता से सहेजा है ....
Nice post
ReplyDelete