कुछ यादे हैं जो गुदगुदाया करती हैं
कभी अधरों पर बन मुस्कुराहट
तो कभी आँखों में बन बदली
छा जाया करती हैं,
हमें तो जीने का हुनर
सिखाया है इन यादों ने ही
कभी दोधारी तलवार पर
चला देती हैं
तो कभी आसमान में परिंदों सी
उड़ा जाया करती हैं !
मन के किसी कोने में
दबी छुपी ये यादें ही कभी
आज की ठहरी हुई ज़िंदगी को
रवानी दे जाया करती हैं
तो कभी उम्रदराज़ होती
दिल की थकी हुई
लस्त तमन्नाओं को
नयी जवानी और नया जोश देकर
फिर से जी उठने का
नायाब सलीका
सिखा जाया करती हैं !
साधना वैद
यादें यूँ ही जोश भरती रहें ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! हृदय से आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
Deleteसादर
कुछ यादे हैं जो गुदगुदाया करती हैं
ReplyDeleteकभी अधरों पर बन मुस्कुराहट
तो कभी आँखों में बन बदली
छा जाया करती हैं,///////
वाह साधना जी | यादें में डूबे मन की मधुर अभिव्यक्ति | यादें उम्रदराज व्यक्ति को भी चिरयुवा बनाने की क्षमता रखती हैं | भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|
अहा रेणु जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदा मुग्ध कर जाती है ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमन के किसी कोने में
ReplyDeleteदबी छुपी ये यादें ही कभी
आज की ठहरी हुई ज़िंदगी को
रवानी दे जाया करती हैं.... बहुत सुन्दर!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद हृदयेश जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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