दुनिया गाती है गुण चतुर सयानों के
लेकिन हमको प्यार ‘अनाड़ी’ लोगों से,
दुनिया को छल बल की लीला है प्यारी
हमको प्यारे वो जो बरी इन रोगों से !
दुनिया घिरती हानि लाभ का सौदों में
मगर ‘अनाड़ी’ प्यार का सौदा करते हैं,
दुनिया छल से अपनी झोली है भरती
ये खुद लुट कर जान का सौदा करते हैं !
कहते लोग ‘अनाड़ी’ ऐसे बन्दों को
जिनको बस देना ही देना आता है,
करते जो दूजों का सारा माल हड़प
उन्हें ‘सयाना’ कहना जग को भाता है !
जग की ऐसी रीत नहीं हमको प्यारी
हमको निश्छल प्रेम सुहाना लगता है
नहीं चाहिये हमें ‘सयानों’ की दौलत
हमें ‘अनाड़ी’ दोस्त खज़ाना लगता है !
साधना वैद
सुप्रभात
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति |
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
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