तुम ही तो चाहते थे
आज के फास्ट फ़ूड जैसी
त्वरित इंस्टेंट शादी,
बिना किसी आडम्बर के
बिना शोर शराबे के
बिना भीड़ भाड़ के
बिना पंडित पुरोहितों के
बिना धार्मिक विधि विधान के !
कोर्ट मेरिज का सुझाव भी तो
तुम्हारा ही था !
फिर क्यों अनमने हो उठे थे तुम
मजिस्ट्रेट के कक्ष में
विवाह के परिपत्र पर
हस्ताक्षर करने के बाद ?
क्यों पूछा था घर आकर
हो गयी शादी ?
क्या हम अब सच में
पति पत्नी बन गए ?
अगर हाँ तो ऐसा
महसूस क्यों नहीं हो रहा ?
मैंने देखा है वर वधु को
मंडप के नीचे
हर वचन को दोहराने के बाद
उनके चहरे के हाव भाव कैसे
बदलते जाते हैं !
सप्तपदी के हर फेरे के साथ
कैसे उनकी चाल
धीर गंभीर होती जाती है !
माँग में सिन्दूर पड़ते ही
कैसे वधु बनी अल्हड बालिका
अनायास ही सात जन्मों के
बंधनों को निभाने के लिए
अपने पति का हाथ थाम
संसार की हर बाधा को
पार करने के लिए
तत्पर हो जाती है !
ये सारे विधि विधान केवल
मनोरंजन भर नहीं,
विवाह की गुरुता को
समझने के लिए
भी बहुत ज़रूरी हैं !
तभी तो आसान नहीं रह जाता
इन बंधनों से
आसानी से मुक्ति पाना !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 25 जनवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteसच विवाह जैसा जीवन भर का साथ इस हाथ से उस हाथ को पकड़ने भर का नाम नहीं है
ReplyDeleteरीति रिवाज यूँ ही हवा में तो नहीं बने होंगे, इस बात को आपने बखूबी रचना के माध्यम से व्यक्त किया है
बिना रीति रिवाज, परम्परा की शादियों वालों के मन में एक कसक जीवन भर रह ही जाती है
हार्दिक धन्यवाद कविता जी ! आपको रचना अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ! आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया है और विवाह का महत्वपूर्ण समझाया है आपने! बहुत ही खूबसूरती से प्रश्नों को उठाया है आपने बिना एहसास की कोई भी चीज अधूरी ही रहती है! कभी हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा 🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति !@
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महाजन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👌👏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteओह! बहुत ही अछूता और मार्मिक विषय चुना है आपने । सप्तपदी सनातन संस्कृति का संस्कार मात्र नहीं, एक सपना भी है जो हर युवा आँखो में पलता है। आजकल लोग भीड़भाड़ से बचने के लिए अथवा घरवालों की असहमति के फलस्वरूप प्रेमविवाह की रस्म पूरी करने के लिए कोर्ट मैरिज का सहारा लेते हुए सप्तपदी की जरूर मिस करते होंगे। हमारी परंपराएं हमारा नैतिक बल और मूल्य हैं इनका सम्मान जरूरी है। एक उत्तम औरबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका 🙏🙏🌷🌷❤️❤️
ReplyDeleteआपकी सुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया सदैव मेरा मन मोह लेती है रेणु जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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