शोभा के घर से स्कूल काफी दूर था । छोटा सा कस्बा होने के कारण शहर में आने जाने के लिए सवारियों का भी प्रबंध आसानी से नहीं हो पाता था । स्कूल जाने के लिए वह घर से एक घंटा पहले ही निकलती क्योंकि उसे पैदल ही जाना होता था । सर्दी, गर्मी, बरसात कोई भी मौसम हो शोभा को स्कूल जाने के लिए मौसम की हर ज़्यादती को सहना ही पड़ता था ।
इन दिनों भी सावन की झड़ी लगी हुई थी । शोभा बहुत ही प्रतिभाशाली और नियमित छात्रा थी । स्कूल एक दिन भी मिस नहीं करती किसी भी हाल में । आज भी सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी । लेकिन रेनकोट और छाता लेकर शोभा निश्चित समय से और भी काफी पहले स्कूल के लिए निकल गयी । टूटीफूटी सड़क के पानी भरे गड्ढों को कूदते फलाँगते, सड़कों पर रेंगते केंचुओं और भाँति भाँति के कीड़ों मकोड़ों से बचते बचाते, कहीं कहीं घने पेड़ की छाँव में या किसी शेड के नीचे रुकते रुकाते जब वह डेढ़ घंटे में स्कूल पहुँची तो बिल्कुल भीग चुकी थी । लेकिन उसे तसल्ली थी कि कपड़े तो घंटे आधे घंटे में सूख ही जायेंगे उसकी पढ़ाई नहीं छूटेगी और अगले महीने होने वाली परीक्षा के लिए उसे किसी सहेली से मदद लेने की ज़रूरत नहीं होगी । स्कूल के गेट पर पहुँच कर उसने इत्मीनान की साँस ली । लेकिन यह क्या ! गेट पर तो बड़ा सा ताला लगा हुआ था और 'रेनी डे' का बोर्ड शोभा का मुँह चिढ़ा रहा था ।
साधना वैद
वाह! सुंदर और सामयिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विवेक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteशोभा जैसे बच्चे मिलते ही कहाँ आज कल । वैसे इतनी बारिश में अभिभावकों को भी बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहिए । कोई दुर्घटना भी हो सकती थी ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! लेकिन शोभा जैसे बच्चे भी होते तो हैं ना ! बहुत बहुत आभार आपका !
DeleteNice post
ReplyDeleteमहत्पूर्ण संदेश देती अच्छी लघुकथा
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अपर्णा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसंदेशप्रद लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteगाँव के स्कूली दिन याद आने लगे
ReplyDeleteजी कविता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteअच्छी लघुकथा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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