उखड़ा है मन
क्षुब्ध हैं विचार
रौंदे हुए हैं सपने
टूटे हुए हैं हार
स्तब्ध हैं भावनाएं
मुरझाये हैं फूल
हारा हुआ है हौसला
छूटा हुआ है कूल
बेख़ौफ़ हैं मौजें
हैं तूफ़ान के आसार
डूबी जाती है कश्ती
कमज़ोर हैं पतवार
सच यह है कि
किसी भी बात में अब
मन नहीं रमता
क्या कहें कि अब
ऊब और विरक्ति का
दौर नहीं थमता
न कोई मंज़िल है
न कोई रास्ता ही है
न कोई लक्ष्य है
न कोई वास्ता ही है
जिंदगी जैसे दर्द की
रवानी बन कर
रह गयी है
क्या कहें कि ज़िंदगी
बेवजह बेस्वाद सी
कहानी बन कर
रह गयी है !
साधना वैद
चित्र - गूगल से साभार
बीता चौमासा
भूले क्या इंद्र
देव ?
रुकी न वर्षा
शरद पूनो
ढूँढती रही कोना
भोग के लिए
मेघों की माया
सुदीर्घ किरणों से
उठा न पाया
अछूती रही
मेवा मिश्रित खीर
चख न पाया
चाँदनी संग
चाँद हुआ उदास
भूखा ही रहा
क्रुद्ध है चाँद
यही होगा कल भी
नहीं दिखेगा
बदला लेगा
पर्व करवा चौथ
नहीं उगेगा
क्या होगा फिर
कैसे होगी संपन्न
पूजा हमारी
न दिखा चाँद
कैसे व्रत खुलेगा
औ’ देंगे अर्ध्य
युक्ति बताओ
रूठा बैठा है
चंदा
चिंता है भारी
कैसे मनाएं
क्या युक्ति
अपनाएं
मन जाए वो
खुश हो जाए
और समय पर
नभ में आये !
साधना वैद
देखो रावण
प्रतिबिम्बित होता
अंतर्मन में
काम वासना
मद मोह लालच
स्वार्थ औ’ ईर्ष्या
क्रोध, अहम्
घमंड और घृणा
के दर्पण में
जो चाहते हो
मारना रावण को
त्यागो विकार
धारो शुचिता
करुणा, प्रेम, दया
भुला दो बैर
त्याग दो घृणा
ध्वंस करो अहम्
बनो विनम्र
तभी मरेगा
मन का दशानन
छाएगा सुख
और मनेगा
असली दशहरा
पूर्ण श्रद्धा से
साधना वैद
" जय जवान ! जय किसान " यह नारा दिया था हमारे स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ! शास्त्री जी, जिनकी सादगी, निष्ठा एवं संघर्षशीलता के बारे में जितना भी कहा जाये शब्द कम पड़ जायेंगे !
बचपन में उनके अभावग्रस्त जीवन के बारे में हर व्यक्ति जानता है ! कैसे वे मीलों दूर नंगे पैर पैदल चल कर विद्या ग्रहण करने के लिये स्कूल जाया करते थे ! कई बार तो नाव के पैसे ना चुका पाने की स्थिति में उन्होंने तैर कर भी नदी पार की है ! आज के बच्चे कार, बाइक, बस या स्कूटर्स पर सवार होकर स्कूल जाते हैं फिर चाहे स्कूल फर्लांग भर दूर ही क्यों न हो ! शास्त्री जी के बचपन के इन संघर्षों से भरे दिनों के किस्सों को सब कहानी की तरह पढ़ कर भूल भी जाते हैं ! शायद इसीलिये कि उनके जीवन के प्रसंगों को ना तो किसी पाठ्य पुस्तक में स्थान मिलता है, ना ही उनके ऊपर किसी फिल्मकार को कोई फिल्म बनाने की प्रेरणा हुई है कदाचित इसलिए कि कहीं यह घाटे का सौदा ना बन जाये ! उनके व्यक्तित्व के ऊपर कभी कोई सार्वजनिक चर्चा भी आयोजित नहीं की गयी ! आज शास्त्री जी के बारे में बहुत कम बच्चे जानते हैं ! जिन व्यक्तियों के जीवन के प्रसंग युवा पीढ़ी के लिये प्रेरक हो सकते हैं , उनके जीवन को प्रभावित कर सकते हैं और उनकी सोच को एक नयी सकारात्मक दिशा की ओर मोड़ सकते हैं उन्हें हमारे देश के प्रबुद्ध वर्ग ने भी भुला दिया है ! बस उनके जन्मदिन एवं निर्वाण दिवस पर चंद पलों के लिये उन्हें याद कर एक रस्म सी अदा कर दी जाती है और फिर उनके अध्याय को साल भर के लिये बंद कर दिया जाता है !
शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जब वे रेल मंत्री थे एक छोटी सी रेल दुर्घटना हो जाने पर उन्होंने स्वयं नैतिक जिम्मेदारी ले अपने पद से इस्तीफा दे दिया था ! जब वे गृहमंत्री थे और देश भीषण खाद्य समस्या से जूझ रहा था तब उन्होंने प्रत्येक सोमवार की रात एक समय का भोजन त्यागने की अपील देशवासियों से की थी ताकि भूखे व्यक्तियों के मुख को चंद निवाले मिल सकें ! वे स्वयं इस पर अमल करते थे ! उनके इस आह्वान पर तमाम भारतवासियों ने सोमवार की शाम का भोजन त्याग दिया था ! ऐसे करिश्माई नेता थे शास्त्री जी ! क्या आज के नेताओं से उनकी तुलना की जा सकती है जो भूखी जनता के मुख से निवाले छीन कर अपने बैंक बैलेंस को बढ़ाने में लगे हैं ! देश में कुछ ऐसे भी नेता हैं जो निजी हेलीकोप्टर में बैठ कर घर से ऑफिस जाते हैं और दोपहर के भोजन के लिये घर आने के लिये हेलीकोप्टर का ही प्रयोग करते हैं ! ऐसे नेताओं से क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वे देश की निर्धन जनता का ध्यान रख एक समय का अपना भोजन त्याग देंगे ? शास्त्री जी के समय में ही देश को पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करना पड़ा था ! और इसी युद्ध के निराकरण के लिये जब वे कोसीजिन के आमंत्रण पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान के साथ बात करने रूस गये तो वहाँ हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया ! देश हित में देश के वीर सपूत ने अपने प्राणों की आहुति दे दी !
शास्त्री जी का मानना था कि देश की आतंरिक खाद्य समस्या का समाधान खेतिहर किसान ही कर सकते हैं और देश की सीमाओं की रक्षा की जिम्मेदारी हमारे सेना के जवानों के फौलादी कन्धों पर रहती है ! शास्त्री जी इस तथ्य से भली भाँति परिचित थे ! वे जानते थे खेतों में जब किसानों की मेहनत से फसलों का सोना उगेगा तभी देश की खाद्य समस्या का निराकरण हो सकेगा और देश की सीमाओं पर तैनात जवान जब तक सतर्क और चौकस रहेंगे देशवासी अपने अपने घरों में चैन की नींद सो सकेंगे ! इसीलिये उन्होंने यह नारा दिया था , " जय जवान ! जय किसान " !
आज उनके जन्म दिन पर हमारी भावपूर्ण श्रद्धांजलि उन्हें समर्पित है ! आज देश को ऐसे ही नेताओं की ज़रूरत है जो अपनी सोच में खुद से ऊपरदेश को रखें और विश्व फलक पर देश के परचम को सबसे ऊँचे फहराने की इच्छा रखें ! शास्त्री जी को हमारा नमन !
साधना वैद