Wednesday, November 23, 2022

कह मुकरी

 

एक सखी के दूसरी सखी के साथ संवाद

तन का काला मन का गोरा

कुछ कठोर कोमल भी थोड़ा

हमको नीको लागे दढ़ियल

को सखी साजन ? 

ना री नरियल !

हर पल मेरी लट उलझाए

चूनर मेरी ले उड़ जाए

फिरता वो चहुँ ओर अधीरा

को सखी साजन ? 

ना री समीरा !

हरदम मेरा पीछा करता

धमकाने से तनिक न डरता

देख भाई हो जाता हवा

को सखी साजन ? 

ना री कुकरवा !

बहुत रंगीला बहुत सजीला

बहुत हठीला बहुत गठीला

चले हुलस कर थोड़ा थोड़ा !

को सखी साजन ? 

ना सखी घोड़ा !

मीठी मीठी उसकी बातें

मुझे जगातीं सारी रातें

भेजे लिख लिख प्यारी पाती

को सखी साजन ? 

ना सखी नाती !

बातों में मीठा रस घोले

बोली मीठी मीठी बोले

मन चाहे वो पास में होता

को सखी साजन ? 

ना सखी तोता !

सुबह सवेरे घर आ जाता

जो मिलता सब चट कर जाता

चिढ़ते सब जब आता अन्दर

को सखी सजन ? 

ना सखी बन्दर !



चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

16 comments:

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. वाह. सुंदर सृजन

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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    1. हार्दिक धन्यवाद विभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. क्या बात है वाह्ह
    बहुत सराहनीय कहमुकरियाँ है।
    सादर।

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    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. वाह!!!
    बहुत सुन्दर ...लाजवाब।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरनीय साधना जी।इस विधा को ब्लॉग पर बहुत रचनाकारों ने नये आयाम दिए हैं।आपने बहुत हीबढिया कहमुकरियाँ लिखी हैं।सादर 🙏

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    1. आपको पसंद आईं मेरा लिखना सफल हुआ ! हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! आभार आपका !

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  8. सोचने को मजबूर करती सुंदर और रोचक कहमुकरियां।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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