एक सखी के दूसरी सखी के साथ संवाद
१
तन का काला मन का गोरा
कुछ कठोर कोमल भी थोड़ा
हमको नीको लागे दढ़ियल
को सखी साजन ?
ना री नरियल !
२
हर पल मेरी लट उलझाए
चूनर मेरी ले उड़ जाए
फिरता वो चहुँ ओर अधीरा
को सखी साजन ?
ना री समीरा !
३
हरदम मेरा पीछा करता
धमकाने से तनिक न डरता
देख भाई हो जाता हवा
को सखी साजन ?
ना री कुकरवा !
४
बहुत रंगीला बहुत सजीला
बहुत हठीला बहुत गठीला
चले हुलस कर थोड़ा थोड़ा !
को सखी साजन ?
ना सखी घोड़ा !
५
मीठी मीठी उसकी बातें
मुझे जगातीं सारी रातें
भेजे लिख लिख प्यारी पाती
को सखी साजन ?
ना सखी नाती !
६
बातों में मीठा रस घोले
बोली मीठी मीठी बोले
मन चाहे वो पास में होता
को सखी साजन ?
ना सखी तोता !
७
सुबह सवेरे घर आ जाता
जो मिलता सब चट कर जाता
चिढ़ते सब जब आता अन्दर
को सखी सजन ?
ना सखी बन्दर !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह. सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteअति सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteक्या बात है वाह्ह
ReplyDeleteबहुत सराहनीय कहमुकरियाँ है।
सादर।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...लाजवाब।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरनीय साधना जी।इस विधा को ब्लॉग पर बहुत रचनाकारों ने नये आयाम दिए हैं।आपने बहुत हीबढिया कहमुकरियाँ लिखी हैं।सादर 🙏
ReplyDeleteआपको पसंद आईं मेरा लिखना सफल हुआ ! हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! आभार आपका !
Deleteसोचने को मजबूर करती सुंदर और रोचक कहमुकरियां।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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