कितने दिनों के
बाद बेटा गौरव बहू और बच्चों के साथ गाँव आया था ! खुशी के मारे अम्माँ के पैर
धरती पर पड़ते ही नहीं थे ! कभी उनके लिए हलुआ बनातीं कभी तरह तरह की पूरी कचौड़ी तो
कभी खीर और मालपुए ! आज के पिजा, बर्गर, हॉट डॉग, सैंडविच खाने वाली पीढी के लिए अम्माँ के हाथ के
ये पकवान किसी छप्पन भोग से कम नहीं थे !
“दादी और दो ना
खीर !” पोता प्रतुल कटोरा लेकर अम्माँ के पास आता तो अम्माँ निहाल हो जातीं !
“ऐसा करो
प्रतुल दादी को अपने साथ दिल्ली ले चलो वहाँ तुम्हें रोज़ खीर पूरी मालपुए बना कर
खिलायेंगी दादी !” गौरव प्रतुल के गाल थपथपा कर कहता तो अम्मा गदगद हो जातीं !
आँखों पर चश्मा
चढ़ चुका था लेकिन बहू के दुपट्टे पर बड़े सलीके से उन्होंने जरी के फूल और बेल टाँक
कर उसे बेहद खूबसूरत बना दिया था ! यही दुपट्टा किसी बुटीक में तीन चार हज़ार से कम
का नहीं मिलता ! नन्ही पोती अन्वेषा के लिए उन्होंने बहुत ही खूबसूरत क्रोशिये का
मल्टी कलर्ड स्कर्ट टॉप बन दिया था !
गौरव बहू से
कहता, “अम्माँ के हाथों में आज भी कितनी सफाई है ! देखो अन्वेषा की ड्रेस किसी
डिज़ाईनर की बनाई ड्रेस से कम नहीं ! तुम भी सीख लेतीं अम्माँ से कुछ !”
“हाँ, अगली बार
जब आऊँगी तब पक्का सीखूंगी !” और अम्माँ उत्साहित हो बहू के लाये सारे कपड़ों की
साज सज्जा में जुट जातीं ! किसी में बोर्डर लगाना तो किसी में तुरपन, किसी में लेस
तो किसी में फूल ! बच्चों के वेकेशंस गाँव में खूब बढ़िया गुज़र रहे थे ! रोज़ रोज़
बच्चों की तरह तरह की फरमाइशें और दिल्ली चलने के आमंत्रण ने अम्माँ के मन में भी
दिल्ली जाने की लौ लगा दी थी ! सालों से गाँव के बाहर कदम नहीं रखा था ! गौरव इतना
कह रहा है तो इस बार उसका मन रखने के लिए अम्माँ ने भी दिल्ली जाने का फैसला ले ही
लिया ! बच्चों की छुट्टियाँ ख़त्म होने को आ रही थीं ! दो दिन के बाद बच्चों के साथ
दिल्ली जाने के लिए अम्माँ ने भी अपनी अटेची चुपचाप ज़माना शुरू कर दिया था ! एकाध
साड़ी नयी लाना चाहती थीं ! वहाँ गौरव के धनवान पड़ोसियों के सामने वे अपनी जीर्ण
शीर्ण कपड़ों की नुमाइश नहीं लगाना चाहती थीं लेकिन संकोचवश न गौरव से कह पाईं न ही
बहू से !
दस बजे की ट्रेन थी ! अम्माँ सुबह से ही नहा धोकर तैयार हो गयीं थीं ! बच्चों को भी
बड़े प्यार से नाश्ता करा दिया था ! सफ़र के लिए भी खाना बना कर पैक कर लिया था !
ठीक नौ बजे ऑटो दरवाज़े पे आ खड़ा हुआ ! सारा सामान ऑटो में रख दिया गया था !
“अच्छा अम्माँ
! चलते हैं ! आप अपना ख़याल रखना ! दवाइयां वगैरह समय से लिया करना ! अगली बार
जल्दी आने का प्रोग्राम बनायेंगे ! पहुँचते ही फोन पर खबर कर देंगे !” और बेटा बहू
जल्दी से घुटनों तक झुक कर ऑटो में जा बैठे थे ! अम्माँ की अटेची दरवाज़े के पीछे
से बाहर आ ही नहीं पाई और रिक्शा निगाहों से ओझल हो चुका था !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-12-22} को "दरक रहे हैं शैल"(चर्चा अंक 4625) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद अभिलाषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत मन को छूने वाली ह्रदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका जीजी ! बहुत बहुत आभार !
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