15 मई – उदयपुर के दर्शनीय
स्थल
अगरतला आये हुए दो दिन बीत
चुके थे ! दोनों दिनों के अनुभव इतने रोमांचक और ज्ञानवर्धक रहे कि कितने भी पन्ने
रंग लें उस अनुभूति को अभिव्यक्ति देना संभव नहीं हो सकेगा ! हमारी मेघालय
त्रिपुरा यात्रा अब समापन की ओर बढ़ रही थी ! आज 15 मई का दिन अगरतला के आस पास के बचे
हुए शेष स्थानों को देखने के लिए नियत अंतिम दिन था ! 16 मई को इस बेहद सुन्दर नगर
से विदा लेकर हमें दिल्ली प्रस्थान करना था और हमारी इस सुखद यात्रा का अंत होने
वाला था ! लेकिन हम अभी से विदाई की बातें क्यों करें ! आज के जो दर्शनीय स्थल
देखने हैं पहले वहाँ तो चलें ! सुबह रोज़ की तरह डाइनिंग रूम में अपने मनपसंद नाश्ते
के साथ अपने ग्रुप के सभी साथियों के संग खूब गपशप हुई और सारे दिन की योजना का
प्रारूप बना कर हम सब समय से अपनी अपनी गाड़ियों में सवार होकर आज के सफ़र पर निकल
पड़े ! आज हमें अगरतला से 55 किलोमीटर्स दूर उदयपुर जाना था और वहाँ के विशेष रूप
से प्रसिद्ध स्थलों को देखना था ! हमारा पहला गंतव्य था उदयपुर का भुवनेश्वरी
मंदिर !
भुवनेश्वरी मंदिर उदयपुर
सुप्रसिद्ध हिंदू मंदिरों
में से एक भुवनेश्वरी मंदिर अगरतला के उदयपुर में स्थित है और यह भारत के
पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 55 किलोमीटर दूर है ! अतीत में उदयपुर
माणिक्य वंश के शासकों का प्रसिद्ध मनपसंद स्थान था ! हालाँकि यह एक छोटा शहर था
लेकिन वास्तव में यह प्राचीन काल से ही बहुत सुंदर था ! अगरतला में राजधानी स्थानांतरित करने से पहले उदयपुर ही माणिक्य राजवंश का आधिकारिक निवास और राज्य की
राजधानी था !
भुवनेश्वरी मंदिर त्रिपुरा
राज्य के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है ! भुवनेश्वरी मंदिर का निर्माण 17 वीं सदी में महाराज गोविंद माणिक्य द्वारा 1660 से 1665 ई. के बीच
कराया गया था ! यह मंदिर देवी भुवनेश्वरी को समर्पित है ! भुवनेश्वरी मंदिर को नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने अपने उपन्यास 'राजर्षि' और नाटक 'विसर्जन' में अमर बना दिया ! यह मंदिर गोमती नदी के किनारे पुराने शाही महल के करीब स्थित है जो वर्तमान
में खंडहर हो चुका है ! भुवनेश्वरी
मंदिर राज्य के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है और त्रिपुरा का एक दर्शनीय
स्थल है ! राजर्षि उत्सव के दौरान बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल से अधिकांश लोग
भुवनेश्वरी मंदिर आते हैं ! यह स्थल हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र स्थान
है और लोग यहाँ शांति, स्वास्थ्य और
समृद्ध जीवन के लिए प्रार्थना करने आते हैं !
मंदिर का निर्माण खूबसूरती
से किया गया है जिसमें चार चाल छतें, प्रवेश द्वार
पर स्तूप और एक मुख्य कक्ष है जो मंदिर की वास्तुकला को पूरा करता है ! मंदिर के
स्तंभों में फूल-पैटर्न वाले रूपांकनों को अंकित किया गया है ! इस मंदिर की
वास्तुकला बंगाल की चर्चला वास्तुकला से प्रभावित है ! यहाँ एक सपाट ऊँचा मंच है जिसके ऊपर एक मेहराबदार प्रवेश द्वार
वाला कक्ष बनाया गया है ! इसमें
फिनियल के साथ एक घुमावदार छत है ! एक बात और
ध्यान देने योग्य है कि मंदिर में स्थापित मूर्ति को इस मंदिर से हटा कर नीचे
परिसर में बने एक छोटे से मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया है ! इसके चारों ओर
पसरा प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है ! गुलमोहर, खजूर, नारियल के सघन
पेड़ आस पास की वातावरण को और आकर्षक बनाते हैं ! इसीके परिसर में कविवर
रबीन्द्रनाथ टैगोर की बहुत बड़ी प्रतिमा भी स्थापित है जहाँ सबने खूब तस्वीरें
खिंचवाईं ! कहते हैं रबीन्द्रनाथ टैगोर अक्सर यहाँ आते थे और वे जब भी त्रिपुरा आते
थे यहीं ठहरते थे ! उन्होंने अपनी कई साहित्यिक कृतियों की रचना यहीं पर की ! होटल
से भुवनेश्वरी मंदिर का रास्ता लम्बा ज़रूर था लेकिन पूरे मार्ग में बाँस, रबर, आम, लीची, आदि के इतने सुन्दर और घने पेड़ थे कि हम तो मंत्रमुग्ध से
उन्हीं के सौदर्य में खोये रहे और रास्ता कब ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला !
कल्याण सागर झील उदयपुर
बीच में एक सुन्दर सी झील
भी पड़ती है जिसका नाम कल्याण सागर है ! इस झील में बहुत सारी मछलियाँ और दुर्लभ
प्रजाति के कछुए पले हुए हैं ! कल्याण सागर त्रिपुर सुन्दरी मंदिर के पूर्वी हिस्से में स्थित है ! 6.4 एकड़ में फैला, 224 गज की
लंबाई और 160 गज की चौड़ाई के साथ पानी का यह विशाल विस्तार
मंदिर परिसर में सुंदरता का एक मनोरम आयाम
जोड़ता है, जिसकी पृष्ठभूमि में सुरम्य रूप से उभरी हुई
पहाड़ियाँ हैं ! पानी
दुर्लभ बोस्टामी कछुओं से भरा हुआ है ! उनमें
से कुछ कछुए तो आकार में बहुत बड़े
हैं जो भोजन के टुकड़ों की तलाश में किनारे तक आ जाते हैं ! आगंतुक किनारों पर
स्थित स्टाल्स से कछुओं
और मछलियों को खिलाने के लिए बिस्किट्स आदि खरीदते हैं और
इन सरीसृपों को खिलाते हैं ! इस
तालाब में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ भी पाई जाती हैं ! झील को पवित्र माना जाता है और भक्त मछलियों और बोस्टामी कछुओं की पूजा भी
करते हैं ! कछुओं को भी पवित्र माना जाता है
क्योंकि माता त्रिपुर सुंदरी का मंदिर परिसर भी एक पहाडी पर स्थित होने के कारण एक
कूर्मपीठ जैसा ही दिखाई देता है ! इसके अलावा त्रिपुर सुन्दरी का यह मंदिर पहले एक विष्णु मंदिर ही था और चूँकि कूर्म विष्णु का अवतार है इसलिए
ये बोस्टामी कछुए (बोस्टामी बंगाली शब्द बोस्टाम से आया है
जिसका अर्थ है "वैष्णव ब्राह्मण" या "विष्णु की पूजा
करने वाले भिक्षु") मंदिर में आने वाले भक्तों द्वारा पवित्र माने जाते हैं ! .
इस झील के पास एक रेस्टोरेंट
में हम लोग वाश रूम इस्तेमाल करने के लिए गए थे ! वहाँ संतोष जी के साथ एक दुर्घटना
हो गयी ! वाश रूम में ताजा ताज़ा फिट किया हुआ चीनी मिट्टी का वाश बेसिन, जो ठीक से
सूख नहीं पाया था, हाथ से छूते ही नीचे ज़मीन पर गिर कर टूट गया ! संतुलन बिगड़ जाने
से संतोष जी भी उन टुकड़ों पर गिर गईं ! टूटे हुए वाश बेसिन के टुकडे उन्हें चुभ गए
और उन्हें काफी चोट आ गयी ! उनकी तबीयत पहले से ही कुछ नासाज़ थी ! इस एक्सीडेंट से
हम सभी लोग घबरा गए ! जल्दी ही उन्हें एक क्लीनिक में फर्स्ट ऐड दिलवाई गयी !
गनीमत यही हुई कि कोई भी घाव बहुत गहरा नहीं था ! झील के किनारे मीठे मीठे डाब बिक
रहे थे ! डाब का बहुत ही मीठा तृप्तिदायक पानी पीकर हम सबने अपनी प्यास बुझाई और
चल पड़े त्रिपुर सुन्दरी का मंदिर देखने !
त्रिपुर सुन्दरी मंदिर उदयपुर
त्रिपुर सुन्दरी मंदिर
अगरतला शहर से 55 किलोमीटर दूर उदयपुर के पास स्थित है ! यह उदयपुर से तीन
किलोमीटर दूर है ! इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य के
शासनकाल में 1501 ई. के दौरान करवाया गया था ! यह मंदिर भारत के 51 महाशक्तिपीठों में से एक है ! यह मंदिर राज्य के प्रमुख पयर्टन
स्थलों में से एक है। हज़ारों की संख्या
में भक्त प्रतिदिन मंदिर में माता के दर्शनों के लिए आते हैं !
दीवाली के दौरान माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में भव्य स्तर पर
दीवाली मेले का आयोजन किया जाता है ! प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में लोग इस
मेले में सम्मिलित होते हैं ! राजमाला के अनुसार इस मंदिर के निर्माण के साथ एक रोचक कथा जुडी हुई है ! यह
मंदिर महाराज धन्य माणिक्य द्वारा भगवान् विष्णु के लिए ही बनवाया गया था और
निर्माण के पश्चात् मंदिर में सर्वप्रथम भगवान विष्णु की मूर्ति ही स्थापित की गई थी ! लेकिन एक रात महाराजा धन्य
माणिक्य के सपने में देवी महा माया आईं और उन्होंने राजा से कहा कि वह उनकी मूर्ति
को चित्तौंग से लाकर इस मंदिर में स्थापित कर दें ! इसके बाद माता त्रिपुर सुंदरी
की स्थापना इस मंदिर में कर दी गई ! ऐसा माना जाता है कि यह देश के इस हिस्से में सबसे पवित्र हिन्दू मंदिरों
में से एक है और असम में कामाख्या
देवी के मंदिर के बाद
उत्तर-पूर्व भारत में सबसे अधिक पर्यटक इसी मंदिर में आते हैं ! त्रिपुरा राज्य का नाम इसी मंदिर के नाम पर रखा गया है ! लोकप्रिय रूप से माताबारी के नाम से जाना जाने वाला यह
मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थापित है जो कछुए ( कूर्म ) के कूबड़ जैसा दिखता है ! कूर्मपृष्ठी नामक इस आकृति
को शक्ति मंदिर के लिए
सबसे पवित्र स्थान माना जाता है इसलिए इसे कूर्म पीठ का नाम भी दिया गया है ! देवी की सेवा पारंपरिक
ब्राह्मण पुजारियों द्वारा की जाती है !
मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है ! किंवदंती है कि सती के बाएं पैर की छोटी उँगली यहाँ गिरी थी ! यहाँ शक्ति को त्रिपुरसुंदरी के रूप में पूजा जाता है और उनके
साथ आने वाले भैरव त्रिपुरेश हैं ! मुख्य मंदिर त्रिस्तरीय छत वाला एक
घनाकार भवन है जिसका निर्माण 1501 ईस्वी में
त्रिपुरा के महाराजा धन्य
माणिक्य द्वारा करवाया गया था, इसका निर्माण बंगाली एक-रत्न शैली में किया गया है !
मंदिर के गर्भगृह में देवी
की दो समान लेकिन अलग-अलग आकार की काले पत्थर की मूर्तियाँ हैं ! 5 फीट ऊँची बड़ी और अधिक प्रमुख मूर्ति देवी त्रिपुर
सुंदरी की है और छोटी मूर्ति, जिसे छोटो-माँ
(शाब्दिक रूप से, छोटी माँ) कहा
जाता है, 2 फीट ऊँची है और देवी चंडी की मूर्ति है ! कहा जाता है कि छोटी मूर्ति को त्रिपुरा के
राजा युद्ध के मैदान के साथ-साथ शिकार अभियानों में भी अपने साथ ले जाते थे ! मंदिर
में पशु बलि देने की प्रथा भी यहाँ पर
प्रचलित एक लोकप्रिय प्रथा है ! हालाँकि इस पर अक्टूबर 2019 में प्रतिबंध
लगा दिया गया था लेकिन 57 दिनों
के प्रतिबंध के बाद दिसंबर 2019 से इसे फिर से शुरू कर दिया गया !
इस मंदिर में दर्शन के लिए
काफी पहले ही हमारी गाड़ी के ड्राईवर राजा के एक परिचित की प्रसाद की दूकान में हमने
अपने जूते चप्पलों को उतार दिया था ! कितनी दूर जाना होगा इसका तो कोई अनुमान तब था
ही नहीं ! वहाँ से प्रसाद और फूल इत्यादि लेकर बड़े भक्तिभाव से हम लोग मंदिर की ओर
चले ! टीले पर चढ़ने के लिए काफी सीढ़ियाँ थीं ! नंगे पैर चलने की आदत नहीं है तो
पैरों में कंकड़ चुभ रहे थे ! ऊपर मंदिर में शायद कुछ देर पहले ही बकरों की बलि दी
गयी थी ! सीढ़ियों पर ताज़े ताज़े खून के छींटे पड़े हुए थे ! मन विचलित हो रहा था !
कहीं पैरों में खून न लग जाए ! बड़े सम्हलते सम्हलते ऊपर चढ़े ! बहुत भीड़ थी !
दर्शनार्थियों की बड़ी लम्बी कतार थी ! प्रसाद और फूलों की डलिया सम्हाले हम भी
लाइन में देर तक धीरज धारे खड़े रहे ! अंतत: हमारा नंबर भी आ गया और हमें भी दर्शन
का सौभाग्य मिल गया ! फोटोग्राफी बिलकुल भी अलाउड नहीं थी ! इसलिए तस्वीरें बाहर
से ही ले सके भवन की ! पैर जल रहे थे ! लौट कर नीचे भी जाना था दूकान तक ! वहाँ का
वातावरण मुझे एकदम कट्टर व रूढ़ीवादी सा लगा ! खून के छीटों ने मन खराब कर दिया था
! वहाँ से जल्दी निकलना चाहते थे ! नीचे दूकान पर पहुँच कर जल्दी से जूते चप्पल
पहन अपनी अपनी गाड़ियों में हम लोग सवार हो गए !
हमारा अगला पड़ाव था नीर महल
! लेकिन उससे पूर्व हमें रास्ते में राजा के साथ रबर के जंगलों में रबर निकालने की
प्रक्रिया को भी देखना था ! राजा को इन सारी चीज़ों का बहुत बढ़िया अनुभव था और बड़ी
अच्छी जानकारी भी थी ! बीच रास्ते में रबर के घने जंगलों के बीच राजा ने गाड़ी रोक
दी ! वहाँ हमने देखा कि किस तरह से सारे रबर के पेड़ों के तनों पर एक कटोरा बाँधा
गया था ! उस कटोरे के ठीक ऊपर तने में गहराई से चीरा लगाया गया था ! उस चीरे से जो
रस निकलता है वह बह बह कर उस कटोरे में जमा होता रहता है ! कटोरा जब भर जाता है तो
उसे खाली करके दोबारा बाँध दिया जाता है ! इस तरह से जब पर्याप्त रस जमा हो जाता
है तब बाद में उसे प्रोसेस करके उससे रबर के उत्पाद बनाए जाते हैं ! राजा के
द्वारा दी गयी यह जानकारी हम लोगों के लिए बिलकुल नयी थी ! बहुत ज्ञानवर्धन हुआ हम
सबका ! इससे पहले शहरों में कहीं कहीं रबर का एकाध पेड़ देखा था ! हमारे बगीचे में
भी थे रबर के दो पेड़ जिन्हें हम बड़े खुश होकर सबको दिखाते थे कि कितने विरले पेड़
हमारे बगीचे में हैं ! वहाँ इन्हीं रबर के पेड़ों के दूर दूर तक फैले जंगलों को हम
विस्फारित नेत्रों से देख रहे थे और विस्मय विमुग्ध हो रहे थे !
यूँ देखने लिए अब बस एक ही
प्रमुख स्थल शेष रह गया है लेकिन पोस्ट काफी बड़ी हो गयी है और मैं यह बिलकुल नहीं
चाहती कि आप बोर होकर मेरी पोस्ट को पढ़ें इसलिए आज की पोस्ट यहीं तक ! अगली पोस्ट
में मैं ले चलूँगी आपको यहाँ के बहुत ही सुन्दर नीर महल में जो भवन तो बेहद
खूबसूरत है ही वहाँ तक पहुँचने का मार्ग और माध्यम भी उतने ही दिलचस्प हैं ! तो आज
मुझे इजाज़त दीजिये ! जल्दी ही आपको लेकर चलूँगी नीर महल यह मेरा वायदा है आपसे !
शुभ रात्रि !
साधना वैद