14 मई – अगरतला के दर्शनीय
स्थल
त्रिपुरा प्रदेश की राजधानी
अगरतला शहर के बारे में इतनी विस्तृत विषद जानकारी प्राप्त करने के बाद उसके हर
दर्शनीय स्थल को देखने की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी ! होटल एयर ड्राप से निकलने
के बाद सबसे पहले हमारा काफिला जगन्नाथ मंदिर पहुँचा !
जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर अगरतला का एक
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ! 19वीं शताब्दी
में माणिक्य राजवंश के तत्कालीन महाराजा राधा किशोर माणिक्य देवबर्मन द्वारा
निर्मित, जगन्नाथ मंदिर उज्जयंत महल के परिसर में स्थित
है और हिंदू देवताओं, जगन्नाथ, बलभद्र और
सुभद्रा को समर्पित है ! इस मंदिर के बाहरी हिस्से में वास्तुकला की इस्लामी शैली
प्रमुख है, लेकिन अंदरूनी हिस्से को हिंदू वैभव से सजाया
गया है ! मंदिर परिसर में पौराणिक गाथाओं के प्रसंगों की अनेक बहुत भव्य और सुन्दर
झाँकियाँ हैं जो भक्तों एवं पर्यटकों को आकर्षित करती हैं !
यह व्यापक रूप से माना जाता
है कि पुरी में प्रतिष्ठित नीलमाधव की मूर्ति त्रिपुरा के जगन्नाथ बाड़ी मंदिर से
दान में दी गई थी ! शाम की आरती के साथ नित्य पूजा, भोग और प्रसाद का वितरण यहाँ के प्रमुख
अनुष्ठान हैं जिनका पालन नियमित रूप से किया जाता है ! मंदिर की सुंदरता और सादगी की सराहना करने के लिए और
सर्वशक्तिमान की भक्ति में लीन हो जाने के लिए आरती का आयोजन विशेष रूप से एक
अनिवार्य परम्परा है ! रथ यात्रा, मंदिर का
वार्षिक उत्सव, एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे बड़े उत्साह और
उमंग के साथ मनाया जाता है और इसमें हर साल सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं !
जगन्नाथ मंदिर की लोकप्रियता इस तथ्य में निहित है कि यह
मंदिर जितना अधिक धार्मिक महत्व के लिए
जाना जाता है, उतना ही यह अपने हिन्दू एवं इस्लामी स्थापत्य के
गंगा जमुनी सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है ! यह भव्य इमारत आज भी अपनी वास्तुकला की भव्यता की वजह से त्रिपुरा का गौरव है
! जगन्नाथ मंदिर का आधार चमकीले नारंगी रंग की दीवारों के साथ अष्टकोणीय आकार का
है ! पिरामिडनुमा शंकु संरचनाएँ
मंदिर के स्तंभों को सुशोभित करती हैं !
हम जब मंदिर में दर्शन के
लिए पहुँचे तो गर्भ गृह के द्वार बंद थे ! लेकिन पुजारी जी सबको तिलक लगा कर
चरणामृत वितरित कर रहे थे ! अन्दर जाकर तो नहीं देख सके लेकिन ग्रिल की सलाखों से
प्रभु के दर्शन हमने बाहर से ही कर लिए !
लक्ष्मीनारायण मंदिर
हमारा अगला गंतव्य था
अगरतला का एक और बहुत ही प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय लक्ष्मीनारायण मंदिर ! लक्ष्मी
नारायण मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो अगरतला शहर के उज्जयंता राजमहल के बिलकुल पास स्थित है ! यह मंदिर भगवान लक्ष्मी नारायण और विष्णु जी को
समर्पित है ! इस
मंदिर का निर्माण त्रिपुरा के राजा बीरेंद्र किशोर माणिक्य देवबर्मन ने 1909-1923 में करवाया था ! यह मंदिर प्रसिद्ध उज्जयंता महल के
मुख्य द्वार के पास स्थित है ! अगरतला
के अन्य पर्यटन स्थलों की तुलना में यहाँ सबसे
ज्यादा पर्यटक आते हैं ! यहाँ के राजा भगवान कृष्ण के भक्त थे और
उन्होंने इस मंदिर के अलावा महल के चारों ओर और भी कई मंदिरों का निर्माण करवाया ! चूँकि भगवद् गीता के अनुसार भगवान कृष्ण और तामल
वृक्ष के बीच गहरा संबंध है, इसलिए इस मंदिर में आप तामल वृक्ष भी
देख सकते हैं ! हर दिन हज़ारों लोग इस मंदिर में मन्नत माँगने के लिए आते हैं ! मंदिर
के शिल्प को देख स्वयमेव इस बात का अनुमान हो जाता है कि
इसमें प्रचीन और आधुनिक कला का बेजोड़ संगम है ! यह मंदिर त्रिपुरा के राजाओं के गौरवशाली अतीत का जीता जागता उदाहरण है ! यह मंदिर भी अगरतला का एक दिव्य पर्यटन
स्थल है ! मंदिर परिसर में भगवान
शिव, हनुमान जी का भी मंदिर है ! यह मंदिर एक झील के
किनारे बना हुआ है, जिससे इसकी
सुंदरता और बढ़ जाती है ! यहाँ हर साल जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया
जाता है ! इतने खूबसूरत स्थान हों तो फोटो सेशन होना तो आवश्यक हो ही जाता है ! लिहाजा
सबने झील के पास और मंदिर के प्रवेश द्वार पर खूब तस्वीरें खींची भी और खिंचवाई भी
!
चतुर्दश मंदिर
इस मंदिर को चौदह
देवी मंदिर भी कहते हैं ! यह अगरतला से लगभग 14 किलोमीटर की
दूरी पर ओल्ड अगरतला में स्थित है ! शमसेर गाज़ी के साथ लगातार युद्ध होने के कारण महाराजा
कृष्ण किशोर माणिक्य ने अपनी राजधानी को उदयपुर से पुराने अगरतला
में स्थानांतरित कर दिया था ! नवीन अगरतला में स्थानांतरित होने तक यह नगर ही त्रिपुरा राजवंश की राजधानी बना रहा ! पवित्र 14 देवी मंदिर के
पास हर साल जुलाई के महीने में खारची उत्सव का आयोजन किया जाता है और हजारों
तीर्थयात्री और श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के
लिए आते हैं ! इस पूजा में काफ़ी संख्या में सभी धर्मों के लोग
सम्मिलित होते हैं !
यह एक स्थानीय कहावत है कि जो एक बार त्रिपुरा के
चौदह देवी मंदिर के दर्शन करता है वह चौदह बार अगरतला आता है ! यहाँ पर पशु बलि देने के साथ रूढ़िवादी तांत्रिक विधि विधान से पूजा करने की
पद्धति का निर्वाह अभी भी किया जाता है ! इस मंदिर के अलावा त्रिपुर सुन्दरी मंदिर
में भी बकरों की बलि दी जाती है ! हम जिस दिन दर्शन के लिए गए उस दिन भी चतुर्दश
मंदिर में चार बकरों की बलि दी गयी ! दिल दहल गया और मूड भी खराब हो गया ! बकरों
की करूण चीत्कारें कानों में अभी तक गूँज रही हैं ! लेकिन वहाँ के लोगों के लिए जैसे
यह एक सामान्य दैनिक क्रिया ही थी ! तमाम लोग निस्पृह भाव से इस क्रूर और वीभत्स दृश्य
के चश्मदीद गवाह बन कर खड़े रहे और मंदिर का एक सेवक बड़ी ज़ोर ज़ोर से ढोल बजाता रहा
! वहीं के एक सज्जन ने बताया कि कार्तिक मास में त्रिपुरा सरकार की ओर से एक दिन
में १०१ बकरों की बलि दी जाती है ! हमारे तो रोंगटे खड़े हो गए यह सुन कर !
उज्जयंता पैलेस
उज्जयंता पैलेस, जिसे नुयुंगमा के नाम से भी जाना जाता है, त्रिपुरा के राजघराने का पूर्व
शाही महल है ! इस महल को यह नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था ! इस महल का निर्माण 1899 और 1901 के बीच महाराजा
राधा किशोर माणिक्य देवबर्मन के द्वारा किया गया था ! इस महल में यूरोपीय शैली से प्रेरित बहुत खूबसूरत बगीचे
हैं और यह दो झीलों के किनारे एक वर्ग किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ है ! अक्टूबर
1949 में त्रिपुरा के भारत में विलय तक यह सत्तारूढ़ माणिक्य राजवंश का घर था ! महल को 1972-73 में त्रिपुरा सरकार द्वारा शाही परिवार से 2.5 मिलियन
रुपयों में खरीदा गया ! जुलाई 2011 तक यह राज्य का
विधान सभा भवन हुआ करता था ! उज्जयंता पैलेस अब एक राज्य संग्रहालय है और यह मुख्य
रूप से पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले समुदायों की जीवन शैली, कला, संस्कृति, परम्परा और व्यावसायिक कारीगरी
के शिल्प को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रदर्शित करता है ! इस संग्रहालय का रख रखाव देखते ही बनता है ! प्रदर्शित झाँकियों में पुतलों
को पहनाई गयी वेशभूषा और आभूषण देखने लायक हैं ! यह संग्रहालय हमें हर प्रकार से
ज्ञान और अनुभव के आधार पर बहुत समृद्ध करता है ! इस संग्रहालय का
उद्घाटन 25 सितंबर 2013 को भारत
के तत्कालीन उपराष्ट्रपति मोहोम्मद हामिद
अंसारी द्वारा किया गया !
यह एक दो मंज़िला हवेली है, जिसमें तीन ऊँचे गुंबदों के साथ मिश्रित प्रकार की
वास्तुकला के संयोजन दिखाई देते हैं !
केंद्रीय गुंबद
86′
ऊँचा है ! शानदार टाइल वाले फर्श, घुमावदार लकड़ी
की छत और खूबसूरती से तैयार किए गए दरवाजे विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ! ऊपर की मंज़िल
में एक विशाल तोप भी रखी हुई है ! संग्रहालय का निकास एक बहुत ही सुन्दरता से
नक्काशी किये हुए विशाल द्वार से हमें महल के सामने बनी हुई सीढ़ियों पर ला खड़ा
करता है जिनसे नीचे उतरते हुए हम भी राजसी गर्व से भर जाते हैं ! महल की विशाल गुम्बदों, खूबसूरत बगीचों, सुन्दर झीलों, भव्य फ्लड
लाइटिंग और फव्वारों ने इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा
दिए हैं ! यहाँ आकर हम लोगों का कला
प्रेमी मन पूरी तरह से तृप्त हो गया ! अन्दर फोटोग्राफी प्रतिबंधित थी तो कुछ बहुत
ही सुन्दर दृश्यों को कैमरे में कैद न कर पाने का अफ़सोस बना रहा !
भव्य एवं विशाल उज्जयंत
पैलेस में घूम घूम कर सबको ज़ोरों की भूख लग आई थी ! हमारी फरमाइश पर राजा हमें एक
बहुत ही बढ़िया रेस्टोरेंट में खाने के लिए ले गए ! रेस्टोरेंट का नाम था ‘शंकर’ और
यहाँ का खाना बेहद लज़ीज़ और लाजवाब था !
हेरीटेज पार्क
भोजन से निबट कर हमारा अगला
गंतव्य था हेरीटेज पार्क ! हेरिटेज पार्क शहर के मध्य में त्रिपुरा सरकार द्वारा
बनाया गया है जिसका उद्घाटन वर्ष 2012 में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था !
पार्क का प्रवेश द्वार
कलात्मकता का एक अद्भुत नमूना है जो त्रिपुरा के इतिहास के आदिवासी और गैर आदिवासी
दोनों वर्गों की कला और संस्कृति को मिश्रित करके कला संरचना की एक अनूठी बानगी
प्रस्तुत करता है ! बगीचे को
लैंडस्केप डिजाइनरों द्वारा बहुत अच्छी तरह से सजाया और सँवारा गया है ! 12 एकड़ का पार्क 1.1 किमी लंबे पार्क पथ से घिरा है जो हेरिटेज पार्क के तीन खंडों, मिनी त्रिपुरा, प्राकृतिक वन और औषधीय पौधे वाले टेबल टॉप को जोड़ता है !
हेरिटेज पार्क का मुख्य
आकर्षण यह है कि यह यात्रियों को एक ही स्थान पर त्रिपुरा की सभी विशेषताओं के
दर्शन करा देता है ! त्रिपुरा के आकर्षक
पर्यटन स्थलों के लघु संस्करण, अर्थात्
उनाकोटि की मूर्तियाँ, नीरमहल महल, उज्जयंता महल, त्रिपुरा
सुंदरी मंदिर, पिलक, महामुनि, चंद्रपुर आदि के पत्थर के मॉडल हेरिटेज पार्क को और अधिक
शोभा प्रदान करते हैं ! पार्क के प्राकृतिक वन भाग पर वानिकी लगाई गई है ! पार्क के इस हिस्से में देशी पेड़ों और विदेशी फूलों और
जानवरों को संरक्षित किया गया है ! पार्क को हेरीटेज बेंचों, पत्थर की
मूर्तियों, स्मारकों, मिट्टी के
बर्तनों से सजाया गया है ! यहाँ पर हमने प्रवेश द्वार पर ही अगर का वह पेड़ भी देखा
जिसके नाम पर इस शहर का नाम ‘अगरतला’ पड़ा ! पार्क
के अन्दर एक सोवेनियर्स के दूकान से कुछ सामान भी खरीदा ! उस दूकान के मालिक ने
पेड़ से ताज़ी ताज़ी तोड़ी हुई लीचियाँ भी हम लोगों को खिलाईं ! उसकी मेहमान नवाज़ी
हमें अभिभूत कर गयी !
14 मई को हेरीटेज पार्क
देखने के बाद हम लोगों ने तीन भव्य स्थानों को और देखा था ! उनका वर्णन भी उतना ही
रोचक है ! लेकिन पोस्ट बहुत लम्बी हुई जाती है और मैं यह बिलकुल नहीं चाहती कि आप
बोर होकर, ऊब कर या जमुहाई लेते हुए पोस्ट को पढ़ें !
इसलिए आज के लिए इतना ही काफी है ! बचे हुए स्थानों की सैर कराने के लिए आपको
जल्दी ही ले चलूँगी ! बस थोड़ा सा इंतज़ार कर लीजिये ! अभी तो इस पोस्ट का आनंद
लीजिये और मेरी आँखों से अगरतला को देखिये ! मुझे विश्वास है आपको भी खूब आनंद आ
रहा होगा ! तो अब विदा लेती हूँ आपसे ! शुभ रात्रि !
साधना वैद
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