Thursday, June 20, 2024

क्या कहते हैं ये पेड़

 




जो काट दोगे

कहाँ फिर पाओगे

इतने फल

 

कैसे मिलेगी

इतनी प्राणवायु

इतना बल

 

काट के मुझे

बन जाएगा सोफा

या एक कुर्सी

 

जिन पे बैठ

कर लेना बातें या

मिजाजपुर्सी

 

पर न भूलो

घुट जायेगी साँस

जो पेड़ काटे

  

रोयेगी कुर्सी

धूल फाँकेगा सोफा

सहोगे घाटे

 

कृतघ्न प्राणी

हमने सिर्फ दिया

तुमने लिया

 

कभी न माँगा

उदारतापूर्वक

दिया ही दिया

 

और तुमने ?

हमें ही काट डाला

यह क्या किया ?

 

कितना क्रूर

हमारे सौहार्द्र का

बदला दिया ?

 

कैसे पाओगे

ताकत के प्रतीक

रसीले फल


शीतल हवा

जीने को प्राणवायु

सुखद पल

 

तपी धरती

झुलसता ब्रह्माण्ड

अब तो जागो

 

छोड़ो मूढ़ता

लगाओ हरे पेड़

इन्हें न काटो

 

हरे वृक्ष हैं

जीवन का आधार

यही सत्य है

 

इनकी सेवा

इनका संरक्षण

पुण्य कृत्य है !

 

साधना वैद

 


6 comments:

  1. पेड़ प्रकृति का अमूल्य उपहार है जिसको मनुष्य अपने स्वार्थ की बलि चढ़ाने में क्षणभर भी नहीं सोचता ।
    बेहद जरूरी चिंतन,सराहनीय अभिव्यक्ति।ःसादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी !

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  3. काश ! हमको कभी तो अक्ल आए !

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    1. आयेगी ! कभी न कभी ज़रूर आयेगी गोपेश जी ! बस यही डर है कहीं बहुत देर न हो जाए !

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