Tuesday, July 14, 2009

पता नहीं क्यों

पता नहीं क्यों
पलकों मे बंद तुम्हारी छवि
मेरी आँखों में चुभ सी क्यों जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे जुड़ी हर बात
छलावे के प्रतिमानों की याद क्यों दिला जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे जुड़ी हर याद
गहराई तक अंतर को खरोंच क्यों जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे मिलने के बाद
आस्था अपना औचित्य खो क्यों बैठी है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे मिले हर अनुभव के बाद
विश्वास की परिभाषा बदली सी क्यों लगती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे बिछुड़ने के बाद
हार की टीस की जगह जीत का दर्द क्यों सालता है ?
पता नहीं क्यों
तुम्हें देखने की तीव्र लालसा के बाद भी
आँखे खोलने से मन क्यों डरता है ?
पता नहीं क्यों
सालों पहले तुम्हारे दिये ज़ख्म
पर्त दर पर्त आज तक हरे से क्यों लगते हैं ?
पता नहीं क्यों
जीवन के सारे अनुत्तरित प्रश्न
उम्र के इस मुकाम पर आकर भी
अनसुलझे ही क्यों रह जाते हैं ?
पता नहीं क्यों .....
साधना वैद

2 comments:

  1. पता नहीं क्यों
    जीवन के सारे अनुत्तरित प्रश्न
    उम्र के इस मुकाम पर आकर भी
    अनसुलझे ही क्यों रह जाते हैं !

    ---पता नहीं क्यों!!

    -बहुत भावपूर्ण रचना!

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  2. बहुत अच्छा लिखा है आपने। भावपूर्ण विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति सहज ही प्रभावित करती है । भाषा की सहजता और तथ्यों की प्रबलता से आपका शब्द संसार वैचारिक मंथन केलिए भी प्रेरित करता है।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-शिवभक्ति और आस्था का प्रवाह है कांवड़ यात्रा-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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